रायपुर (DNH) – पिछले कई वर्षों से अफ़ग़ानिस्तान का काबुल आतंकी साए में जीवन यापन कर रहा है , यहां का पूरा जनजीवन बुरी तरह से अस्त व्यस्त हो गया है , लोग वहां के वर्षो से नरकीय जीवन जी रहे है , आतंकी हमले और मौत का साया चौबीस घंटे , काबुल में देखा जा सकता है , भुखमरी और बदहाली , अब वहां की पहचान बन चुकी है , जो देश वर्षो से आतंक के साए में जीते हुए , आतंकी हमले बर्दास्त कर है , उसकी कल्पना की जा सकती है कि , वहां के लोग कैसे जीवन यापन कर रहे होगे ? कब कहां से मौत आ जाय , इसकी कोई गारंटी नहीं ? १२ मई दिन मंगलवार को , काबुल के एक अस्पताल में ऐसी दर्दनाक – मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना घाटी की इंसानियत भी कांप उठी , काबुल के बारची मैटरनिटी अस्पताल में हुए आतंकी हमले में २४ लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए ? यह हमला इतना भयावह था कि , अधिकारियों तक की रूह कांप उठी , अस्पताल का मंजर , इतना भयानक था कि , चारो तरफ लाश के चीथड़े और खून से लाल दीवार और जमीन दिखाई दे रहे थे? आतंकी नरसंहार जब खत्म हुआ , तो वहां की तस्वीर मानवता को झकझोर कर देने वाली थी , १८ नवजात शिशुओं के पैदा होते ही , आतंकी हमले से मौत का सामना हुआ , इससे भी भयानक वो मंजर था कि , इन सभी नवजातों के माताओं की हत्या हो चुकी थी , इन १८ बच्चो में से , सबसे बड़ा बच्चा सिर्फ पांच दिन का था और सबसे छोटा घटना के समय ही पैदा हुआ था , इन दोनों बच्चो की माताएं खुशनसीब थी , जो मौत का सामना कर , जिंदा थी ? बाकी बच्चो को तो चौबीस घंटे भी नहीं हुए थे , इस दुनिया में आए , ये भगवान का करिश्मा ही था कि , बच्चे , इतने बड़े आतंकी हमले में मारे गए , उनकी हत्या हो गई , लेकिन माताओं की हत्या हो जाना , दिल को भीतर तक झकझोर कर रख देता है , आतंकी हमला होने और माताओं की हत्या पश्चात , डाक्टरों की एक टीम ने बच्चो की पहचान के लिए , मां का नाम लेकर पुकारना जरूरी था , लेकिन अफगानिस्तान में औरतों का नाम से पुकारा जाता पाप माना जाता है , डाक्टरों के सामने , एक बड़ी समस्या थी , परंतु इस बीच , एक बुजुर्ग व्यक्ति सामने आया , बच्चो की मां का नाम लेकर पुकारा , ताकि बच्चो की पहचान हो सके , कि , कौन किसका बच्चा है ? १८ बच्चो में से , दो बच्चो की मां सामने आई और अपना बच्चा लेकर , गले से लगा लिया , लेकिन शेष बच्चो की मां का , उनके ही आंखो के सामने आतंकियों ने हत्या कर दी ? जिन दो बच्चो की मां मिली , उनमें से एक सुराया थी और एक गुल मकाई , ३५ वर्षीय गुल मकाई ने बताया कि , जब हमला हुआ , तो वह हड़बड़ा गई थी , अचानक हुए हमला के कारण वह भयभीत हो गई और जान बचाने के लिए , बच्चे को छोड़कर अस्पताल से बाहर निकल गई थी , इसलिए वह बच गई , दूसरे दिन जैसे ही बच्चो के अनाथ हो जाने की जानकारी लोगो तक पहुंची , तो दर्जन भर महिलाए अस्पताल पहुंच गई , बच्चो को गोद लेने के लिए , इनमें से एक बुजुर्ग महिला ऐसी थी , जिसने एक रात पहले , अपनी बेटी को दफनाया था और आे , अपने नाती को लेने आई थी , गुलाम सखी नामक यह बुजुर्ग महिला अस्पताल प्रबन्धन के सामने गिड़गिड़ा रही थी कि , उसका सबकुछ बर्बाद हो गया , एक नाती ही अब उसका जीने का सहारा है , कृपया उसे दे दे । काबुल की यह घटना , काबुल के लिए कोई नई नहीं है , आतंकी हमला वहां वर्षो से होते अा रहा है अब तक कई परिवार कई बच्चे अनाथ हो गए , बर्बाद हो गए ? अस्पताल जैसे हमले वहां अचानक होते रहते है , वर्षो से चल रही , इस अमानवीय लड़ाई को रोकने के लिए , संयुक्त राष्ट्र को सामने आना चाहिए ? ताकि बेगुनाहों की मौतों को रोका जा सके ?


