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    Home»छत्तीसगढ़»घर वापसी कर रहे मजदूरों का , सभी जगह हाल – बेहाल ?
    छत्तीसगढ़

    घर वापसी कर रहे मजदूरों का , सभी जगह हाल – बेहाल ?

    adminBy adminJune 13, 2020No Comments14 Mins Read

    रायपुर (DNH) :- केंद्र सरकार सिर्फ अपनी प्रशंसा में लगी है , रोज नए दावे कर , अपने झूठे आश्वासन को सच साबित करने के लिए , टीवी चैनलों में प्रचार – प्रसार कर रहे है ?* केंद्र और राज्य सरकार के भरसक प्रयाशो के बाद भी दिल्ली , महाराष्ट्र , हैदराबाद सहित कई बड़े शहरों के मजदूर अपने कार्य क्षेत्र में रुकने का नाम नहीं ले रहे है , और जैसी स्थिति बनती है , वैसे ही अपने घर से निकाल कर मूल घरों की तरफ वापसी कर रहे है , इस बीच मजदूरों ने ना तो , ये देखा की रास्तों में कई बड़ी परेशानियों का करना पड़ेगा सामना , लेनिक साथ ने मासूम बच्चो और गर्भवती पत्नियों को लेकर भूख – बेरोजगारी और मौत के कारण बदहवाश हो कर सबको पर पैदल ही चल रहे है , तपती दोपहरी में उन्हें ये भी परवाह नहीं है  कि , वो बीमार हो सकते है ? शासन प्रशासन की गैरजिम्मेदारी हरकतों और वादा खिलाफी के कारण मजदूर आज सड़कों और पटरियों पर है , हालाकि इसका खामियाजा मजदूर को ही भुगतना पड़ रहा है , पिछले सप्ताह महाराष्ट्र से अपने घर वापसी कर रहे 16 मजदूर औरंगाबाद के समीप एक गांव के पास रेल कि पटरी में सो जाने के कारण उनकी मौत हो गई , नींद इतनी गहरी थी कि , उन्हें ट्रेन के आने का जरा भी आभास नहीं हुआ , रेल पटरी के नजारे इतने भयावह थे की पटरी के एक तरफ मजदूरों की कटी पिटी लाशे बिखरी हुई थी , की उनके बीच में और लाशों के आस पास रोटियां बिखरी हुई थी , जिसे मजदूरों ने रास्ते के लिए ले लिया था , तो यही 16 मई दिन शनिवार को यूपी के समीप औरैया के पास एक ट्रक में 50 मजदूर बैठ कर वापस आ रहे थे , तभी ट्रक ,  एक खड़ी ट्रक को टक्कर मार दी , ट्रक कि रफ्तार इतनी तेज़ थी कि , जहां खड़ी ट्रक का डाला टूट गया तो वही ट्रक पलटी होकर गिर गई , परिणाम स्वरूप 24 मजदूर घटना स्थल पर ही मर गए , बाकी घायलों को जिला अस्पताल इलाज के लिए भिजवाया गया है , तो वहीं मध्यप्रदेश के छतर पुर के पास सवार 6 मजदूरों की , ट्रक पलटने के कारण मौत हो गई , मजदूरों की स्थिति काफी दयनीय है ? वे मजबूरी में घर वापसी कर रहे है और जो घर वापसी कर चुके है , उन्होंने पूछ ताछ करने पर बताया कि , बाहर राज्यो में मजदूरों की स्थिति ठीक नहीं है , ना तो खाने के लिए खाना मिल रहा है , और ना ही रहने के लिए कोई मकान ? सरकार के सभी दावे गलत है , किसी को भी सरकार से फिलहाल कोई फायदा नहीं मिल रहा है , हैदराबाद से रायपुर पहुंचे , जांजगीर – चांपा के 25 मजदूर , 35,000 रुपए में ट्रक किराए पर लेकर घर वापसी की है , एक सवाल के जवाब में , उन्होंने स्पष्ट कहा कि , वे अब कभी भी ना तो अपने गांव को छोड़ेंगे और ना ही परदेश कमाने जाएंगे ? जैसे भी हो अपने गांव में ही गुजर – बसर , वहीं 15 मई को मुंबई से ओडिसा घर वापसी कर रहे 60 मजदूरों को यह पता नहीं है कि ,सरकार मजदूरों के लिए स्पेशल रेल चलवा रही है , मजदूरों की घर वापसी का तांता लगा हुआ है , वहीं दुर्ग – अंजोरा बायपास रोड पर महाराष्ट्र पुणे से वापस झारखंड जा रहे मजदूरों को जब सहायता केंद्र में रोका गया तो वहां के दृश्य काफी मार्मिक थे , एक ट्रक में छोटे – छोटे बच्चो और महिलाएं दर्जनों कि संख्या में लौट रही थी , जब वे ट्रक से उतरी तो , ना तो बच्चो के पैरो  में चप्पल था और ना ही महिलाओं के पैरो में चप्पल था , सहायता केंद्र में बैठे जवानों ने तुरंत बच्चो और महिलाओं के लिए  चप्पल उपलब्ध करवाए और उन्हें खाना खिला कर घर वापस भेजा गया , छत्तीसगढ़ के प्रदेश मुखिया भूपेश बघेल का स्पष्ट आदेश है कि , अपने जिला अधिकारियों को , जो भी मजदूर छत्तीसगढ़ की सीमा से या फिर छत्तीसगढ़ के भीतर से घर वापसी कर रहे है , चाहे वो किसी भी राज्य के हो उन्हें यथा सकती अधिकार क्षेत्र के तहत मदद करे ? और इस आदेश के बाद जिला अधिकारी भी मजदूरो को खाना पीना से लेकर प्रत्येक आवश्यक वस्तुओं की मदद कर रहे है , छत्तीसगढ़ का एक श्रमिक परिवार अहमदाबाद में फस गया है , 15 दिन से घर वापसी के लिए आवेदन जिला अधिकारियों के पास दिया गया है , लेकिन जब कोई उचित जवाब नहीं मिला तो लग भग 19 मजदूर 1200 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए , सूरत होते हुए , नागपुर के लिए पैदल ही चल पड़े है , साथ में एक डेढ़ बरस का बच्चा भी है , मजदूर घर वापसी के लिए हर परेशानियों का सामना कर घर पहुंचना चाहते है , पिछले दिनों दो दिन के भीतर कई मजदूरों को करनाल , हरियाणा , और यूपी के पास लबालब भरी हुई नदी को पार करते हुए देखा गया है , मजदूरों का दावा है कि , अभी भी गुजरात , महाराष्ट्र सहित अन्य 6 राज्यो में लग भग 51 लाख मजदूर फसे हुए है , जो घर वापसी करना चाहते है , परन्तु सरकार टीवी चैनलों में आ कर सिर्फ अपनी प्रशंसा करने में जुटी हुए है , जब की उनके दावो को मजदूर नकर रहे है , 21 वर्षीय चंद्रिका केवट जो कि पैरो से दिव्यांग है , वह अपनी मां गंगा बाई के साथ और 32 मजदूर सहित गुरुग्राम , हरियाणा में इट बनाने के लिए गए थे , चंद्रिका 170 किलोमीटर की दूरी घिशत कर चली और वे सभी मजदूर 15 मई को बिलासपुर से जांजगीर चांपा के समीप मुड़पार के लिए निकल पड़े है ।

    मजदूरों की बर्बादी और उनके मौतों के जिम्मेदार कौन ?

    लॉक डाउन के लागू होते ही आनन – फानन में , सरकार के द्वारा , सख्ती पूर्वक नियमो को मनवाना शुरू कर दिया , एक तरह से, यह सही भी था , लेकिन समुचित देश में लॉक डाउन के कारण पूरा व्यापार ही बंद हो गया  ? छोटे बड़े सभी कारोबार के बंद हो जाने और कारोबारियों के द्वारा , हाथ पीछे खींच लिए जाने के कारण तथा साथ ही मजदूरों का पैसा ना दिए जाने के कारण , मजदूरों के सामने , जीने से सम्बन्धित सभी समस्या आकर खड़ी हो गई , लॉक डाउन का समय बढ़ता ही गया , मजदूर परेशान होने लगे कि , परिवार का पेट कैसे भरे ? और सामने कोरोना के रूप में मौत खड़ी थी ? मजदूर घबरा गए और आनन फानन में , जो फैसला लिया वो खतरनाक था ? जिसमे जाने भी जा सकती थी और गई भी ? अब तक ५२ दिनों में १३४ मौतें हो चुकी है , ये जो आंकड़ा है , सरकारी रिकार्ड के अनुसार है ? जबकि कई मौतें रिकार्ड के बाहर भी हुई है ? ६१ मौतें तो सिर्फ ८ दिन के भीतर ही हो गए ? यू पी के औरैया में चुना से भरे ट्रक में बैठे लगभग १०० मजदूरों में से २४ की घटना स्थल पर ही ट्रक के दूसरे ट्रक में टकराकर , पलट जाने के कारण , मौत हो गई , तो वहीं मध्यप्रदेश के छतरपुर के पास ट्रक के पलट जाने से ६ मजदूरों की मौत हो गई , मजदूरों की हो रही , लगातार मौतों ने , अब सवाल खड़े करना शुरू कर दिए हैं ? कि , मजदूरों की सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों का जिम्मेदार कौन ? क्या मौतों के जिम्मेदार , शासन – प्रशासन है ? वो इसलिए मर रहे मजदूर देश के नागरिक है और उनके सुरक्षा की जिम्मेदारी शासन – प्रशासन पर होती है ? बल्कि में महामारी के , इस दौर में जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है ? ऐसे में एक सवाल और उठता है कि , क्या सरकार ने जानबूझकर लापरवाही की ? मजदूरों को उनके घर में ही क्यों नहीं रोका गया ? जबकि सरकार मजदूरों को सख्ती पूर्वक रोक सकती थी ? क्योंकि , खाने पीने , राशन देने और ठहराने की व्यवस्था सरकार ने , जब कर ली थी , तो सख्ती पूर्वक मजदूरों को रोका क्यों नहीं ? वहीं दूसरी गलती कारोबारियों ने की ? वे भी चाहते तो मजदूरों को रोक सकते थे ? सरकार मजदूरों को , जब पालने के लिए तैयार थी और आज भी है ? तो फिर कारोबारियों ने मजदूरों को रोका क्यों नही ? जबकि सिर्फ सरकार की व्यवस्था और उनके आदेशों का पालन व समर्थन करना था ? लेकिन ऐसा हुआ नहीं , ना तो सरकार , मजदूरों का विश्वास जीत पाई और ना ही कारोबारियों ने ? जबकि सच्चाई यही है कि , मजदूरों के बलबूते पर ही देश और कारोबार चलता है ? जरा सोचो अगर , यही मजदूर वापसी ना करें और यदि करे तो , अपने शर्तों पर , तब क्या होगा ? क्योंकि , मजदूरों का विश्वास सरकार और कारोबारियों पर से उठ चुका है ? उनके संरक्षण में रहते हुए , मौत और भूख को काफी करीब से देखा है ? सरकार और मालिकों को वादाखिलाफी करते हुए जाना है ? क्योंकि , महामारी की सच्चाई को सरकार और मालिक , दोनों अच्छी तरह से जानते थे ? फिर भी मजदूरों के साथ धोखा किया ? जो सहन करने लायक नहीं था और छोड़ दिया सड़कों पर जीने मरने के लिए ? क्या आने वाला समय तय करेगा , सरकार – कारोबारियों और मजदूरों के भविष्य का फैसला ?

    सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि , कोई रेलवे ट्रैक पर सो जाए , तो क्या कर सकते है ?

    सर्वोच्च न्यायालय ने औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर हुई मज़दूरों की मौत के मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर लोग रेलवे ट्रैक पर सो जाएं तो क्या किया जा सकता है? जिन्होंने पैदल चलना शुरू कर दिया, उन्हें हम कैसे रोकें? जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के बाद ये आदेश दिया। याचिका वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने दायर की थी। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा गया कि क्या किसी तरफ रोड पर चल रहे आप्रवासियों को रोका नहीं जा सकता है। तब मेहता ने कहा कि राज्य सरकारें ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था कर रही हैं लेकिन लोग सूचना के अभाव व जल्दबाजी में पैदल ही निकल रहे हैं। इंतजार नहीं कर रहे हैं। ऐसे में क्या किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें केवल उनसे पैदल नहीं चलने के लिए आग्रह ही कर सकती है। इनके ऊपर बलप्रयोग भी तो नहीं किया जा सकता है। कोरोना वायरस महासंकट के बीच जारी लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों का काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. अभी हाल ही में महाराष्ट्र से अपने घर जाने की चाह में पैदल निकले 16 मजदूर औरंगाबाद में ट्रेन की चपेट में आने से दर्दनाक मौत के शिकार हो गए. पैदल चलते हुए थक कर ये मजदूर रेल पटरियों पर सो गए थे तभी अचानक एक मालगाड़ी से कट कर इनकी मौत हो गई। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई करने से इनकार कर दिया । उनका कहना है कि अगर मजदूर ट्रैक पर सो जाए तो क्या किया जा सकता है? उन्होंने सरकार से पूछा कि जिन लोगों ने पैदल चलना शुरू कर दिया है, उन्हें कैसे रोका जाए? इसके जवाब में सरकार की तरफ से कहा गया है कि सबके घर लौटने की व्यवस्था की जा रही है. लेकिन लोगों को अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी होगी, जो वो नहीं कर रहे हैं । सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमलोग कैसे निगरानी कर सकते हैं कि सड़क पर कौन चल रहा है? राज्य निगरानी करने के लिए ही है. वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य सरकार बसों का प्रबंध कर रही है. लेकिन अगर लोग गुस्से में सड़क पर चलने लग जाएं और अपनी बारी का इंतजार ही ना करें तो क्या किया जाए? वहीं एक अन्य याचिका में सर्वोच्च न्यायालय में कहा गया कि मुंबई में प्रवासी मजदूरों के लिए तय किए गए नोडल ऑफिसर काम नहीं कर रहे हैं. मजदूरों के आवास आदि सुविधा सुनिश्चित करने के लिए इनका होना अत्यंत आवश्यक है. जिसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि राज्यों को ऐसा करना चाहिए. हमने उन्हें मजदूरों के लिए आवास की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और महाराष्ट्र सरकार से इस मामले में अगले सप्ताह तक जवाब देने को कहा है.

    घर वापसी कर रहे मजदूरों के वेतन की याचिका पर वक़्त लगेगा ?

    वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय ने 15 मई दिन शुक्रवार को राज्य सरकार और रेलवे को निर्देश दिया है कि कोई भी मजदूर पैदल घर वापस ना जाए. हाई कोर्ट ने सरकार इसके लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाए और सुनिश्चित करे कि मजदूरों को पैदल ना जाना पड़े । कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि अखबारों, टीवी पर विज्ञापन निकालें जाएं ताकि मजदूरों को पता चल सके. अदालत में रेलवे की ओर से कोर्ट को बताया गया कि जब भी दिल्ली सरकार उनसे ट्रेन उपलब्ध कराने को कहेगी, हम करवा देंगे । दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें प्रवासी मजदूरों के पैदल घर जाने का मुद्दा उठाया गया था. बता दें कि लॉकडाउन की वजह से देश में सबकुछ बंद है, सार्वजनिक वाहन भी नहीं चल रहे हैं. ऐसे में प्रवासी मजदूरों को घर जाने के लिए कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है । हाल ही में भारतीय रेलवे की ओर से श्रमिक ट्रेन और स्पेशल ट्रेनों का प्रबंध किया गया है. श्रमिक ट्रेन सिर्फ मजदूरों के लिए है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी हजारों की संख्या में मजदूर पैदल ही घर लौटने को मजबूर हैं ।

    औरैया में ट्राला ने DCM को मारी टक्कर, 24 की मौत और 25 से अधिक घायल , भेजा अस्पताल ?

    कोरोना वायरस से दिनों दिन बढ़ते संक्रमण के बीच में सड़क दुर्घटनाओं में भी इजाफा होता जा रहा है। लॉकडाउन में भी सरकारों के प्रवासी कामगार/श्रमिकों को उनके घरों तक पहुंचाने के तमाम इंतजाम के बीच भी लोग पैदल या फिर खतरा मोल लेकर घरों की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों से भरे ट्राला को 16 मई दिन शनिवार को औरैया में डीसीएम ट्रक ने पीछे से टक्कर मार दी, जिससे 25 लोगों की मौत हो गई जबकि 25 लोग घायल हैं। राजस्थान से बिहार और झारखंड जा रहे प्रवासियों के ट्रक और खड़ी डीसीएम में टक्कर हो गयी। जिनको अस्पतालों में भेजा गया है। गंभीर रूप से घायल 20 मजदूरों को सैफई मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है। जबकि अन्य घायल जिला अस्पताल में भर्ती है। औरैया की सीएमओ डॉक्टर अर्चना श्रीवास्तव ने बताया कि 24 लोगों को मृत अवस्था में अस्पताल लाया गया था। फिलहाल 35 लोग अस्पताल में भर्ती हैं और 15 लोग, जो गंभीर रूप से घायल थे, उन्हें सैफई पीजीआई में रेफर किया गया है। मौके पर कमिश्नर,आईजी भी पहुंच गए है। प्रशानिक अधिकारी और कर्मचारियों के साथ स्वास्थ्य विभाग की टीम भी मौके पर मौजूद है। पुलिस और स्वास्थ्य कर्मी राहत और बचाव कार्य में जुटे हैं। डीएम अभिषेक सिंह बताया कि घायलों को इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। गंभीर रूप से घायलों को सैफई मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया है, जहां 15 घायलों की हालत नाजुक बनी हुई है।

    घटना बहुत भयानक थी , देखने वाले भी रो पड़े ।

    औरैया में कोतवाली क्षेत्र के चिहुली में हाइवे पर शनिवार को नेशनल हाइवे पर एक ढाबे के बाहर खड़े कंटेनर में तेज रफ्तार डीसीएम ने टक्कर मार दी। टक्कर के बाद कंटेनर व डीसीएम दोनों खड्ड में जा गिरी। इसमें सवार 24 मजदूरों की मौत हो गई।  शनिवार की सुबह करीब चार बजे मजदूरों को लेकर गोरखपुर जा रहा कंटेनर एक ढाबे के बाहर रुका। मजदूर दिल्ली व फरीदाबाद से कंटेनर में सवार हुए थे और गोरखपुर जा रहे थे। चालक चाय पीने चला और मजदूर सो रहे थे। इसी बीच तेज रफ्तार डीसीएम ने कंटेनर में टक्कर मार दी। जिससे कंटेनर खड्ड में जा गिरा और डीसीएम भी खड्ड में पलट गई। ढाबे के लोग भागे। चीख- पुकार मच गई। पुलिस मौके पर पहुंची और पांच बजे से राहत कार्य शुरू हो गया। क्रेन से कंटेनर व डीसीएम को हटाकर दबे हुए लोगों को निकाला गया। जिला अस्पताल में 24 लोगों को मृत घोषित किया गया। 15 गंभीर घायलों को सैफई रेफर कर दिया गया। जबकि 20 मामूली घ्यालों का जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है। डीएम अभिषेक सिंह ने बताया कि मजदूर दिल्ली से गोरखपुर जा रहे थे। मजदूर झारखंड देवरिया व पश्चिम बंगाल के है। कई मृतको के नंबर मिलने पर उनके स्वजन को सूचना दी गई है। मंडलायुक्त सुधीर एम बोबड़े ने बताया कि घटना की जांच के आदेश दिए है।

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