दुर्ग (DNH) – लोग बेबस है , लाचार हैं , फिर भी गांव और परिवार के बीच पहुंचने की जिद है कि, मरे तो मरे , लेकिन परिवार के बीच मरे ? कोरोना महामारी ने , अपने कहर और आतंक के तहत पूरी दुनिया और देश को , खून के आंसू रोने के लिए मजबुर कर दिया है , करोड़ों लोग जहां दुनिया भर में बेरोजगार हो गए , तो वहीं कईयों के घर बार बर्बाद हो गए , तो लाखो लोगो ने , इस महामारी के कारण , असमय अपनों को खो दिया , इस तबाही ने , ना तो धर्म देखा और ना ही जात देखी , अमीर गरीब सबको एक नजरो से देखा और पूरी दुनिया में तांडव कर , बर्बाद करके रख दिया है ? ये पहला मौका है , जब देश की आधी से ज्यादा आबादी ने , महामारी का ऐसा वीभत्स रूप , जीवन में पहली बार देखा है ? भुखमरी और बीमारी का सामना हजारों बार किया हो , लेकिन ऐसी महामारी सामना लोगो का , अपनी जिंदगी में पहली बार हुआ है ? देश के भीतर चारो तरफ तरफ तबाही ने आने वाली भुखमरी – बेरोजगारी – अपराध – बीमारी का , एक छोटा सा नमूना पेश कर दिया है ? इससे कैसे निपटना है , ये बाद की बात है , परंतु वर्तमान स्थिति मानवता को झकझोर कर रख दी है , सब लाचार है , बेबस है ,। एक दूसरे की मदद , कही कोई नहीं कर पा रहा है , सब अपने और अपने परिवार को बचाने में जुटे हुए हैं , अन्य राज्यो में फंसे हुए लोगों की स्थिति काफी दयनीय है , वे आज ना तो घर के हो पा रहे हैं और ना ही घाट के , इनके सामने देश भर की समस्या आकर खड़ी हो गई , कि , अब आगे क्या करे ? ऐसे लोगो के सामने , जहां बेरोजगारी तो थी , वहीं भुखमरी भी दस्तक दे रही थी , क्योंकि महामारी की लंबी मार और बाजार की गिरावट को देखते हुए , देश भर के उद्योग मालिक और व्यापारियों ने , अपने अपने मजदूरों को , जहां नौकरी से निकाल दिया , तो वहीं घर मालिकों ने , घर से निकाल दिया , पास में रखे जमा पूंजी लॉक डाउन के पहले ही दौर में खत्म हो गए , कम्पनी मालिकों ने मजदूरों को काम पर रखने से साफ इंकार कर दिया , अब मजदूरों के सामने , पहले पेट की भूख और मौत सामने दिखाई देने लगी , जब मजदूरों के दिलो दिमाग में , यह सच्चाई भीतर तक , घर कर गई और फिर , मजदूरों ने सिर्फ एक फैसला किया , घर वापसी का , चाहे जैसे हो , इस बीच मजदूरों ने , ये भी नहीं सोचा कि , उनके घर की दूरी कितनी है ? शुरुवाती दौर में ही लाखो मजदूर , अपना और अपने परिवार की जान जोखिम में डालकर , हजारों किलोमीटर की यात्रा , बिना किसी सुरक्षा के निकल पड़े ? जहां रास्ते में हर पल मौत का मंजर दिखाई दे रहा था ? कभी भूख के रूप में , तो कभी प्यास के रूप में , तो कभी थकान के रूप में , तो कभी रात दिन जागने – पैदल चलते रहने के रूप में दिखाई दे रहा था , फिर भी बिना किसी खौफ और सुरक्षा के लगातार चलते रहे , मजदूरों की इस दयनीय स्थिति को देखते हुए , लॉक डाउन के तीसरे चरण में , देश भर के सरकारों ने मजदूरों की घर वापसी का फैसला किया और आज देश के सभी मुख्यमंत्री ने , अपने अपने मजदूरों की , रेल के माध्यम से घर वापसी करवा रहे हैं , परंतु इस योजना की नीति कई मजदूरों को समझ नहीं आई , तो आज वे व्यवस्था से नाराज़ होकर , लाचार – बेबस – निराश – मजबुर होकर , घर वापसी कर रहे हैं , जो घातक है , जानलेवा है , फिर भी चल पड़े हैं , जिसे देखकर , सुनकर दिल भीतर से रो रहा है , कि आखिर ये कैसी महामारी है ? और कब तक ?






नौ माह की गर्भवती , छह दिन में पैदल चली १९६ किलोमीटर , दो मासूम बच्चो और पति के साथ ?
यह नजारा देखने को मिला डूंगरपुर के समीप टामटिया गांव के पास , जहां मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के सैलना गांव के समीप स्थित एक छोटे से गांव कुपड़ा निवासी लक्ष्मण भाभर , अपनी नौ माह की गर्भवती पत्नी बापुडी, दो वर्ष की पुत्री और एक वर्ष के पुत्र को लेकर , अहमादाबाद से पैदल निकले थे , लगातार ६ दिन पैदल चलने के बाद , लक्ष्मण अपने परिवार के साथ टामटिया चेक पोस्ट पर पहुंचे , तब परिवार १९६ किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था , चेक पोस्ट में मौजूद अधिकारियों ने , जब लक्ष्मण और उसकी पत्नी – बच्चो की हालत देखी तो वे भी सहम गए , अधिकारियों ने सबसे पहले परिवार को भरपेट खाना खिलाया और फिर कुछ पैसे देकर , परिवार को अपनी गाड़ी से , उनके घर तक पहुंचाया , ये ऐसा नजारा था जिसे देखकर , सुनकर , मौजूद अधिकारियों के आंखो में भी आंसू आ गए , लेकिन शर्म तब महसूस हुआ , जब रास्ते में मिले और अधिकारियों ने , लक्ष्मण की कोई मदद नहीं की ओर उसे रास्ते में जीने मरने के लिए छोड़ दिया गया ?
तीन हजार की सायकल को छह हजार में खरीदकर , महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश जा रहे है, मजदूर १२०० किलोमीटर की दूरी को तय करके ?
मजदूरों को जब कम्पनियों ने काम पर रखने से इंकार कर दिया , सरकार के आश्वासन झूठ साबित होने लगे , महाराष्ट्र के भीतर महामारी का प्रकोप लगातार बढ़ने लगी और फिर जब भूख मरने की स्थिति आईं , तब सातारा की एक कंपनी में काम कर रहे , मजदूरों घर वापसी करने की सोची , पास में पैसे नहीं थे , ट्रक वाले हजारों – लाखो रुपए मांग रहे थे घर तक पहुंचाने के लिए , सरकार भी निराश कर चुकी थी , तब सभी मजदूरों ने सायकल से घर वापसी करने की ठानी , अपने अपने घरों से पैसे मंगवाए , जब सायकल के दुकान पहुंचे , तो वहां भी दुकान मालिक ने परिस्थिति और मज़बूरी का फायदा उठाया और उसने ३००० की सायकल को ६००० रुपए में बेचा , मजदूर , मजबुर थे , और फिर क्या करते सायकल से ही , अपने घर , मध्यप्रदेश के रींवा जिले के पांडेन बरौली गांव की तरफ चल पड़े, इन्हीं मजदूरों में से एक शिवकुमार ने बताया कि , हमारी मज़बूरी का फायदा सब जगह उठाया , सरकार के तरफ कोई व्यवस्था नहीं थी और यदि थी , तो वहां तक हमारी पहुंच नहीं थी , मोटर वालो ने घर वापसी के लाखो रुपए मांगे , कम्पनी मालिक ने नौकरी से निकाला अलग , और काम के बचत पैसे भी नहीं दिए , तब मजबूरन सायकल से घर वापसी करनी पड़ रही हैं, यहां भी दुकानदार ने सायकल के दुगुने दम लिए , रास्ते में कोई खाना खिला देता है तो अच्छा , वर्ना भूखे प्यासे भी चलना पड़ रहा है , शिवकुमार ने ये भी बताया कि , यदि लगातार चलते रहे तो १० से १२ दिन में घर पहुंच जाएंगे ?
१७ दिन पैदल चल कर, गर्भवती पत्नी और बच्ची को ८०० किलोमीटर की दूरी तय कर , घर पहुंचा रामू ?
हैदराबाद रोजी मजदूरी के लिए गया रामू घोरमारे , अपनी पत्नी और बच्ची के साथ लॉक डाउन के चलते , हैदराबाद में ही फंस गया , जैसे तैसे मजदूरी कर , अपना और अपने छोटे से परिवार का पेट पालने वाले , रामू के पास , महामारी के दौर में , संकट उस समय और विकराल हो गई , जब ठेकेदार ने , अपना काम बंद कर दिया और रामू को कम से निकाल दिया , साथ ही उसके पैसे भी नहीं दिए , कुछ दिन तक दूसरे काम की तलाश में , इधर उधर भटकता रहा , ना तो कोई काम मिला और उल्टा कुछ रखी हुई जमापूंजी भी खत्म हो गई , लॉक डाउन की तारीख बढ़ते ही जा रही थी , अब रामू को चिंता थी , गर्भवती पत्नी और दो वर्ष की मासूम बच्ची का , कि इनका पेट कैसे भरा जाय , सरकार की तरफ से कोई मजबूत मदद नहीं मिल रही थी , पैसों की तंगी और बदहाली ने , आखिरकार रामू को घर वापसी के लिए मजबुर कर दिया , परंतु जाने की चिंता थी कि घर कैसे जाय ? जब सभी रास्ते बंद हो गए तो रामू ने अपने परिवार के साथ पैदल जाने की ठानी और अंततः एक दिन हैदराबाद के घर से पैदल निकल गए , कुछ किलोमीटर पैदल चलने के पश्चात पत्नी और बेटी ने जवाब दे दिया कि , वे और अब पैदल नहीं चल सकते , रामू ने इतने पर भी हिम्मत नहीं हारी , जंगल के ही बांस – बल्लियों से एक छोटी सी हाथ गाड़ी बनाई और उसी में पत्नी और बेटी को बैठकर लगातार पैदल चलता रहा , १७ दिनों में रामू लगभग ८०० किलोमीटर पैदल चलकर , अपनी पत्नी और बेटी के साथ , मध्यप्रदेश के बालाघाट जिला के समीप लांजी की सीमा के पास मौजूद गांव मोहगांव पहुंचा । रामू के हौसले बुलंद थे , उसने महामारी के इस दौर में भी , भूखे प्यासे रहकर , हिम्मत नहीं हारी , ८०० किलोमीटर का लंबा फैसला , रास्ते में कई बड़ी चुनौतियों थी , मासूम बच्ची और गर्भवती पत्नी साथ में थी , जहां रास्ते में कुछ भी हो सकता था , लेकिन रामू ने अपना और अपनी पत्नी का हौसला बढ़ाया और चल पड़े घर वापसी के लिए , हालाकि , लांजी की सीमा में प्रवेश करने पर अनुविभागीय अधिकारी पुलिस नितेश भार्गव द्वारा , रामू को उसके घर मोहगांव पहुंचा कर , मानवता का परिचय जरूर दिया , लेकिन काश , ऐसी मदद रामू कोशो दूर मिल गई होती ?
बैल गाड़ी में , बैल के साथ जुता दिखा व्यक्ति, परिवार के साथ , घर वापसी कर रहा था ?
इंदौर जिले से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक – ३ – आगरा मुंबई राजमार्ग में पिछले दिनों एक बैल गाड़ी में , एक व्यक्ति दूसरी तरफ जुता हुआ दिखा , बैल गाड़ी में लगभग ५ – ६ सदस्य बैठे थे , गाड़ी में जूता व्यक्ति लगातार बैल के साथ , कदम से कदम मिलाकर चल रहा था , इस दृश्य को जिसने भी देखा , वो दिल से रो पड़ा , वास्तव में दृश्य भी इतना मार्मिक था , कि सहज आंखो से आंसू निकल ही जाते थे , गाड़ी में जूता व्यक्ति लगभग ४० वर्ष का था और अपना नाम राहुल बता रहा था , पूछने पर उसने बताया कि , वह इंदौर के समीप पत्थरमुंडला गांव का रहने वाला हूं , इंदौर के ही पास महू गांव में , लॉक डाउन के दौरान मेरा परिवार फंस गया था , जिसे लाने गया था , बैल गाड़ी में भाभी और मेरे बच्चे है , लॉक डाउन में सभी जमापूंजी खत्म हो गए , इसलिए घर चलाने के लिए , एक बैल को बेचना पड़ा , राहुल की आप बीती में एक सच्चाई जरूर है कि , वह भी लॉक डाउन के दौरान बरबादी का शिकार होकर अपनी आखिरी पूंजी बैल को बेच चुका है , अब तो समय बताएगा कि एक बैल से खेती कैसे होती है और जीवन यापन कैसे होगा ?
महाराष्ट्र के एक लाख आटो वाले , अपने आटो से ही , यूपी – बिहार – झारखंड के लिए निकल पड़े ?
लॉक डाउन की मार ने पूरे जनजीवन को बर्बाद करके रख दिया है , बेरोजगारी का भयानक स्वरूप , अब दिखाई देने लगा , लोग महामारी से तो निपट लेंगे ? लेकिन पेट की आग को कैसे शांत करेंगे , इसके लिए तो दो वक़्त की रोटी का जुगाड तो होना ही चाहिए ? लेकिन महामारी ने उसे भी छीन लिया है , लोगो के जहां रोजगार छीन गए तो वहीं सर से छत का साया भी छीन गया , सरकार की व्यवस्था , आम लोगो तक नहीं पहुंच पा रही है ? इसी व्यवस्था से नाखुश होकर , कई परिवार अपने वर्षो पुराने कारोबार – रोजी रोटी को त्याग कर , अपने घर वापस चले गए , जबकि इसी मूल निवास को , रोजी रोटी कमाने के लिए छोड़ कर , अन्य राज्यो में गए थे , परंतु महामारी ने उसे भी छीन लिया ? आज देश भर के मजदूर , महामारी के कारण घर वापसी कर रहे हैं , महामारी और सरकार की तंग हाली सहित अव्यवस्था को देखकर मजदूरों का कहना है कि , भूख से मरने के बजाय भले ही बीमारी से मर जाए , तो बेहतर है और यदि मरना ही है तो , अपने परिवार के सामने मरे ? मजदूरों की यह सोच बेतुकी नहीं है , क्योंकि भूख की आग , मनुष्य को सब कुछ करा देता है , इसी सोच ने मजदूरों को घर वापसी का रास्ता दिखाया और जिसको जैसे बन पड़ा , वैसे अपने घर के लिए निकल पड़े , इस बीच मजदूरों ने , ये परवाह नहीं की , कि उनके घर की दूरी कितनी है ? पास में पैसा है या नहीं ? रास्ते में आने वाली मुसीबतों का सामना कैसे करेंगे ? १५ दिन की मासूम बच्ची से लेकर , गर्भवती महिलाओं तक घर वापसी कर रहे है और आज भी भीषण गर्मी में , यह सिलसिला जारी है , जिसकी सुध सरकार को नहीं है ? हालाकि इलेक्ट्रानिक मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक , प्रतिदिन सरकार को सच्चाई से रूबरू करा रहे है ? लेकिन सरकार करे तो क्या करे , तो वहीं अब दिल्ली , हरियाणा के सीमा में तैनात पुलिस कर्मियों के द्वारा , मजदूरों के साथ लूटपाट किए जाने की शिकायत , स्वयं मजदूर कर रहे हैं ? महाराष्ट्र के लगभग एक लाख आटो चालक महाराष्ट्र को छोड़कर , अपने घर वापस चले गए हैं ? पूरे महाराष्ट्र के भीतर यूपी , बिहार , झारखंड से आए मजदूर जो आटो चलन का काम करते थे लगातार लॉक डाउन के चलते रोजगार छीन जाने के कारण वे सब घर वापसी कर गए है , सूत्रों का दावा है कि , एक – एक ऑटो में लगभग 4 – 5 की संख्या में लोग घर वापसी कर चुके है , हालाकि इन चालकों को 12 – 1400 किलोमीटर की दूरी तय करने पर डीजल – पेट्रोल का खर्चा ही 8 से 10 हजार के बीच पहुंच रहा है , लेकिन पूरे महाराष्ट्र में महामारी के लगातार बढ़ते हुए प्रकोप और बेरोजगारी को देखते हुए लगभग 4 लाख लोग अपने – अपने आटो से यूपी , बिहार , झारखंड तक की , घर वापसी कर चुके है ?
पैरों में चप्पल नहीं , पास में पैसा नहीं , फिर भी तपती गर्मी में , महाराष्ट्र से पैदल छत्तीसगढ़ पहुंचे मजदूर ?
कोरोना महामारी ने पूरे देश के भीतर ऐसी खलबली मचा दी है कि , लोग मौत के डर में भागने लगे हैं ? अन्य राज्यो में कमाने – खाने गए मजदूर , अब घर वापसी करने लगे हैं , अब तक लौट चुके सभी मजदूरों ने , एक ही प्रकार की बाते बताई है , मजदूरों का सीधे तौर पर , सरकार के खिलाफ आरोप है कि , सरकार के द्वारा , अचानक लॉक डाउन कर लोगो को संभलने का मौका नहीं दिया और अचानक लॉक डाउन का एलान केद्र सरकार द्वारा कर दिया गया और उसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार पर थोप दी गई ? यदि लॉक डाउन को समय देकर किया जाता तो मजदूरों के बीच में भगदड़ नहीं मचती घर वापसी के लिए , जबकि केंद्र सरकार को कोरोना की जानकारी दिसम्बर – जनवरी में ही मिल गई थी , इस बीच कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी सहित राहुल गांधी बार बार , केंद्र सरकार को जानकारी देते रहे कि , पूरे विश्व में महामारी फैलने वाली है , जिसका भयानक प्रभाव भारत पर भी पड़ने वाला है , तब केंद्र सरकार ने , सब कुछ जानते हुए भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दावों को विपक्षी की चाल बताकर , मजाक में उड़ा दिया है , और इसका बुरा परिणाम , आज सबके सामने है ? लौटे मजदूरों ने बताया कि , महाराष्ट्र में लोगो की स्थिति काफी दयनीय है , वहां हालात प्रतिदिन बिगड़ते ही जा रहे हैं , मौत का बढ़ता हुआ आंकड़ा रुकने का नाम नहीं ले रहा है , एक तरह से महाराष्ट्र के भीतर दहशत का माहौल बना हुआ है ? तो वहीं एक ओर मजदूर ने बताया कि , सरकार भले दावे कर रही है कि , मजदूरों के लिए सभी बंदोबस्त किए गए है , लेकिन सरकार के ये दावे जमीनी स्तर पर सच नहीं है ? ना तो खाना मिल रहा था और ना ही रहने की कोई उचित व्यवस्था थी ? सब कुछ महामारी के तांडव में बिखर चुका था ? सरकार की जल्दबाजी ने मजदूरों को बेघर और बेरोजगार कर दिया , उपर से कम्पनी मालिकों और ठेकेदारों ने मेहनत के भी पैसे नहीं दिए ? इसी के चलते हालात और ज्यादा खराब हुए और महाराष्ट्र में मौजूद , लगभग अन्य राज्यो से गए मजदूर घर वापसी कर चुके है तो कई और आज भी कर रहे हैं ? महाराष्ट्र से लौट कर आए ५० मजदूरों में से कईयों के पैरो चप्पल तक नहीं थे , तो कईयों के पास पैसे लगभग ख़त्म हो चुके थे , आए हुए मजदूर छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिला के है , इनकी यात्रा भी भूख – प्यास – थकान – तंगहाली – बरबादी और महामारी की चक्की में पिसती हुई छत्तीसगढ़ पहुंची है ? आज भी हालात इतने मजबूत नहीं है , जितने दावे सरकार के द्वारा किए जा रहे हैं ?