दुर्ग (DNH) :- शनि महाराज को न्याय का देवता कहा जाता है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि शनि देव व्यक्ति को कर्मो के हिसाब से दंड और फल देते है। नौ ग्रहों में शनि देव को न्यायाधीश कहा जाता है। जो कुछ कर्म इंसान करता है उसके हिसाब से उसको शनि महाराज उसको फल प्रदान करते हैं। वो गरीबों की सेवा से प्रसन्न होते हैं और दया-धर्म रखने वाले पर उनकी कृपा सदा बरसती रहती है। ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है। इस साल शनि जयंती 22 मई शुक्रवार को है। शनि महाराज भगवान सूर्यनारायण और देवी छाया के पुत्र हैं। पिता सूर्य के द्वारा माता छाया के अपमान के कारण शनिदेव हमेशा अपने पिता सूर्य से शत्रुवत भाव रखते हैं। शनि महाराज को क्रूर ग्रह माना जाता है और इनकी दृष्टि अशुभ फलदायी मानी जाती है। इसलिए इनकी दृष्टि से बचकर रहने की सलाह दी जाती है। शनि देव को क्रूर दृष्टि का श्राप उनकी पत्नी से मिला था। शनि महाराज के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका रंग काला है और 9 ग्रहों में इनका स्थान सातवां है। शनि महाराज एक राशि में तीस महीने तक रहते हैं और मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं। शनि देव को अशुभ ग्रह माना जाता है। शनि की महादशा की अवधि 19 वर्ष तक रहती है। इनकी सवारी गिद्ध है।






शनिदेव को पत्नी से मिला था श्राप ।
शनिदेव के श्राप की कथा का वर्णन ब्रह्मपुराण में मिलता है। इसके अनुसार शनिदेव का विवाह चित्ररथ की कन्या से हुआ था। एक बार वह रात्रि में पुत्र-प्राप्ति की कामना लेकर अपने पति शनिदेव के पास पहुंची। उस समय शनि महाराज भगवान विष्णु के ध्यान में मग्न थे। पत्नी उनका इंतजार करते-करते थक गई और इस तरह से उनकी इच्चा पूरी नहीं हो पाई। अपने पति से नाराज होकर शनिदेव की पत्नी ने उनके श्राप दे दिया। तुम जिसके ऊपर भी अपनी दृष्टि डालोगे उसका अनिष्ट होगा। इसके तुरंत बाद उनकी पत्नी को अपने किए पर पछतावा हुआ, लेकिन अपने दिए गए श्राप का तोड़ उनके पास नहीं था। इसलिए मान्यता है कि उसी दिन से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
शनि की वजह से महादेव को बनना पड़ा था बैल ।
शनि महाराज की दृष्टी एक बार महादेव पर पड़ी तो उनको बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा था। रावण पर जब उनकी दृष्टि पड़ी तो उनको भी असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। लेकिन हनुमानजी एक ऐसे देवता हैं जिन पर शनि का कोई असर नहीं होता और वे अपने भक्तों को भी उनके असर से बचाते हैं।