*देवेन्द्र कुमार बघेल की खास रिपोर्ट_____*



*दुर्ग* (DNH) – पाटन क्षेत्र के गांवों में पिछले कई वर्षों से लकड़ी तस्कर सक्रिय हैं। क्षेत्रो में प्रतिबंधित पेड़ों की कटाई धड़ल्लेे से की जा रही है। 2 जून दिन मंगलवार लकड़ी से भरी मेटाडोर को वन विभाग की टीम ने पकड़ा। मेटाडोर को लकड़ी सहित पाटन डिपो में खड़ा करवाया गया है। जानकारी के मुताबिक कौहा के बड़े-बड़े गोले को गाड़ाडीह स्थित तिवारी सा मिल में खपाने ले जाया जा रहा था। लेकिन इसकी सूचना वन विभाग को मिल गई। मुखबीर की सूचना पर एसडीओ वन विभाग अभय पांडे के निर्देश पर टीम ने कार्रवाई की। अधिकारियों के मुताबिक लकड़ी से भरी गाड़ी का पीछा किया गया, जैसे ही वह आरा मिल पहुंंची, उसे जब्त किया गया। मिल को भी सील कर दिया गया। कार्रवाई में डिप्टी रेंजर पाटन अजय कुमार चौबे, हर्ष वीर कंकडे शामिल थे।
*क्या क्षेत्र में मौजूद तस्करो की जानकारी नहीं है , वन विभाग को ?*
क्या क्षेत्र में मुस्तैद लकड़ी तस्करों को जिला अधिकारी और वन विभाग नहीं जानता ? क्या लगातार हो , लकड़ी तस्करी और कटाई को नहीं जानते अधिकारी ? दशकों से हो रही है , क्षेत्र में लकड़ी की तस्करी और कौहा पेड़ो की कटाई ? पेड़ो की कटाई कर , कई तस्कर जहां आज कुबेर पति बन बैठे है ? तो वहीं कई बेगुनाह , शासन प्रशासन की मदद करने के कारण , कानूनी शिकंजा में फंस कर , अपनी मान प्रतिष्ठा गंवा चुके है ? तस्करी रात के अंधेरे में नहीं हो रही है ? अपितु दिन दाहडे , खुलेआम कानून और कानून के रखवाल के नजरो के सामने और उनके संरक्षण में हो रही है ? जिला अधिकारी सबकुछ जानते है ? कौन कर रहा है ? कौन करवा रहा है ? लकड़ी कहां खपत हो रही है ? लकड़ी तस्कर की गाड़ी , कब – कहां से – कितने बजे गुजरेगी , चालक कौन होगा ? ये सभी जानकारी जिला आधिकारियों के पास , पदस्थ होते ही मिल जाती है ? अब तक जितनी भी कार्यवाही हुई , सब दिखावा रहा है ? अपनी जेब भरने और महीना बंधवाने के लिए ? लोगो का दावा इसलिए है कि , क्षेत्र में लकड़ी की तस्करी और कटाई , १२ महीना खुलेआम , दिन के उजाले में , जिला के सभी आरा मिल संचालकों के द्वारा की जाती है ? जबकि विभाग , साल में एक दो कार्यवाही कर , अपने आय का स्रोत बना लेती है ? और यदि तस्करो की जानकारी विभाग को , किसी ग्रामीण के द्वारा दे दी जाती है , तो विभाग अपने आय के स्रोत को बंद होते हुए देखकर , तस्करो के साथ मिलकर , प्रार्थी को ही कानूनी शिकंजा में फांसकर रख दिया जाता है ? इसके बाद कोई दुबारा हिम्मत जुटा नहीं पाता , तस्करो के खिलाफ लड़ाई लडने के लिए ? लकड़ी की तस्करी सिर्फ दुर्ग जिला में ही सीमित नहीं है ? अपितु पूरे छत्तीसगढ़ के भीतर लकड़ी तस्करों का पूरा गिरोह सक्रिय है ? जिन – जिन क्षेत्रों में , जिस किसी पेड़ो की बहुलियता है , उन पेड़ो की कटाई कर तस्करी की जा रही है ? चुकीं दुर्ग जिला में काैहा पेड़ो की बहूलियता है , इसलिए पिछले दो दशकों से पेड़ो की कटाई की जा रही है ? जिसमे गांव के कोटवार से लेकर पंच – सरपंच – पटवारी सहित क्षेत्र का थानेदार शामिल होकर , तस्करो को संरक्षण प्रदान करता है , इसलिए तस्करो के हौसले बुलंद हैं और वे बेखौफ है ?
*दुर्ग जिला में काऊहा समूल नष्ट हो चुका है तस्करो के कारण ?*
दुर्ग जिला एक ऐसा जिला था , जिसे आम ग्रामीण भाषा में , क़ौहा पेड़ो के कारण , कौहा राज कहा जाता था , क्योंकि , जिले के भीतर , कई ऐसे क्षेत्र थे , जहां कौहा पेड़ो की बाहुलियता थी ? खासकर पाटन , गुण्डरदेही , रानितराई , रनचिराई , बालोद , धमतरी , भखारा , कुरूद , अभनपुर , के आस पास के गांवों में कौहा पेड़ो की भरमार थी , लेकिन आज ये सभी क्षेत्र कौहा , विहीन हो गए है , इसका सबसे बड़ा कारण था , क्षेत्रो में तस्करो की सक्रियता , स्थानीय ग्रामीणों की दलाली , और पंच – सरपंचों – पटवारी – पुलिस – वन अधिकारियों के सांठ गांठ के कारण , पेड़ो की अंधाधुंध कटाई के कारण , क्षेत्र कौहा से वीरान हो गया है ?
एक तरफ तस्करो ने , जहां क़ौहा पेड़ो को काटकर , पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाया , तो वही दूसरी तरफ किसानों को , पेड़ो की कम कीमत देकर , उन्हें लुटा भी , जबकि तस्कर , इन पेड़ो की कटाई – चिराई कर , लाखो रुपए में बेच देते है , जबकि सरकार को सीधे तौर पर , राजस्व का बड़ा नुक़सान होता रहा है ? अगर कमाई किया तो तस्कर ने , लेकिन सबसे बड़ा नुक़सान पर्यावरण का हुआ , लेकिन इस नुक़सान की भरपाई आने वाले दिनों में , इंसानों और अन्य जीवों को भरना पड़ेगा , अपनी जान देकर ? लोग समझ नहीं पा रहे है कि , उनके चंद पैसों के लालच के कारण , आने वाली पीढ़ियों को , इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा ? क्योंकि , पेड़ो की अंधाधुंध कटाई के कारण , पर्यावरण पूरी तरह से नष्ट होकर , अपना आस्तित्व खो चुका है , और शायद यही कारण है कि , मौसम चक्र भी परिवर्तित हो चुका है ? इसलिए गर्मी में बरसात , तो बरसात में गर्मी और ठंड का मौसम तो लगभग गायब हो चुका है ? आज कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति – अधिकारी , ये दावा नहीं कर सकता कि , सभी मौसम यथावत है और अपने ४ – ४ महीने के कार्यकाल को पूरा करते है ? एक तरफ जहां देश – प्रदेश के भीतर मौसम चक्र परिवर्तित हुआ ? तो वहीं इसका सीधा असर किसानों पर दिखाई देने लगा , आज देश भर के किसान , अपनी पैतृक धरोहर किसानी को बचा नहीं पाए है ? जिस फसल की खेती , जहां ज्यादा होती थी , वो फसल , अब उस क्षेत्र में नहीं है ? किसानों को फसल बदलकर खेती करने के लिए , शासन – प्रशासन द्वारा आग्रह किया जा रहा है और किसान भी मजबूरन , जिसकी जानकारी नहीं , उसकी खेती कर बर्बाद हो रहे है ? पिछले कुछ दशकों से किसानों की , जो दुर्दशा हुई है , वो और कभी देखने को नहीं मिली थी ? आज देश का किसान रो रहा हैं ? आत्महत्या कर रहे है ? रसूखदारों के कर्जदार हो चुके है किसान ? इस मामले में , छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार सत्ता में बैठते ही , कुछ घंटो के भीतर ही , किसानों का समूल कर्ज माफ किया और आज भी किसानों के प्रत्येक समस्या का समाधान , भूपेश सरकार दिल खोलकर कर रही है , खैर मुख्य मुद्दा यह है कि , सिर्फ दुर्ग जिले के भीतर ही नहीं , अपितु पूरे छत्तीसगढ़ के भीतर , पेड़ो की अंधाधुंध कटाईऔर तस्करी को सख्ती पूर्वक रोकनी होगी , तभी किसान और वन के साथ साथ पर्यावरण को , देश के भीतर बचाया जा सकता है ?
*कौहा की तस्करी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही है , क्योंकि दिल की बीमारी की सबसे बड़ी दवाई है कौहा ?*
छत्तीसगढ़ के भीतर कौहा की तस्करी का इतने बड़े पैमाने पर होना , सीधे इस बात को दर्शाता है कि , कौहा से हजारों की नहीं लाखो – करोड़ों रुपए का फायदा हो रहा है ? इसलिए तस्कर हर जोखिम का सामना करते हुए , कानून को खुलेआम तोड़ रहे है और तस्करी कर रहे है , अपने कारोबार को चलाने के लिए , तस्कर किसी भी स्तर तक जा सकते है , यहां तक , अपने विरोधियों को मौत की नींद सुला सकते है ? कानून को लगातार तोड़ते हुए , अपने दहशत को कायम रखते हुए खुलेआम तस्करी किए जाने का अंदाजा , इसी बात से लगाया जा सकता है कि , कौहा की तस्करो के बाजार में मांग कितनी है ? और आज तस्कर कुबेर पति कैसे बने है ? कौहा की तस्करी आज विदेशो तक इसलिए हो रही है , क्योंकि कौहा से दिल की बीमारी का इलाज किया जाता है और दिल से ही संबधित दवाई बनाई जा रही है ? वैसे देश के भीतर वर्षो से कुछ दवाई कम्पनियां कौहा से अर्जुनारिष्ट नामक दवाई का निर्माण कर रही है , जो दिल के साथ साथ , अन्य बीमारियों के इलाज में कारगर साबित हो चुकी है ? इसलिए इसकी तस्करी विदेशो तक हो रही है ।
*रायपुर और कुम्हारी है तस्करो का गढ़ , जहां प्रतिदिन लाखो के लकड़ी खपा दिए जाते है ?*
राजधानी रायपुर और कुम्हारी लकड़ी तस्करो का गढ़ व शरण स्थली बन चुका है ? छत्तीसगढ़ का अधिकांश कारोबार , इन्हीं दोनों जगह से संचालित होता अा रहा है ? क्षेत्र के तस्कर , अपना लकड़ी इन्हीं जगहों पर खपाते है ? और इनके ही बलबूते पर , पूरा कारोबार किया जाता है ? सूत्रों का दावा है कि , शहरो में बैठे माफिया सरगनाओ के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के तस्करो को राजनैतिक संरक्षण से लेकर पुलिस संरक्षण तक दिए जाते है ? और यही कारण है कि , तस्करो के वाहनों को , सूचना देने के बावजूद , कही भी , किसी भी अधिकारी के द्वारा नहीं रोका जाता ? जबकि जिला के थाना प्रभारी से लेकर वन विभाग के अधिकारी , सबकुछ जानते है कि , कौन तस्कर , कहां सक्रिय है और अपना माल कहां खपा रहा है ? आज तक दिखावा के लिए , तस्करो पर छापे जरूर पड़े ? लेकिन कुम्हारी और रायपुर के क्षेत्रों में ना तो कभी जांच की गई और ना ही कभी छापे मारे गए हैं ? विभाग के द्वारा जब भी कार्यवाही की गई , तो सिर्फ छोटे मोहरो को पकड़ा गया और दिखावा कार्यवाही कर छोड़ दिया गया ? जबकि राजस्व और वन अधिकारियों सहित थाना अधिकारियों को अच्छी तरह से मालूम है कि , तस्करी कौन कर रहा है ? सारा कारोबार खुले रूप से संचालित हो रहा है , जिले के प्रत्येक आरा मिलो और टिंबर कारोबारियों के द्वारा , लकड़ी की तस्करी और पेड़ो की कटाई की जा रही है ? क्षेत्र के गांव गांव में कोचिया सक्रिय है ? जिनके माध्यम से तस्कर , किसान तक पहुंचते है और पेड़ो की कटाई करते व करवाते है ?
*विरोधियों को निपटाने का पूरा जुगाड होता है तस्करो के पास ?*
छत्तीसगढ़ के भीतर दो – तीन दशकों के बीच , तस्कर अपनी जड़े , इतनी मजबूती के साथ गड़ा चुके है कि , उनका अब कोई विरोध नहीं कर पाता , शुरुवाती दौर में कुछ पर्यावरण संरक्षक और जागरूक ग्रामीणों द्वारा , तस्करो का विरोध किया गया था ? लेकिन तस्करो का गिरोह एक जुट होकर , पुलिस के माध्यम से , ग्रामीणों को ही कानूनी शिकंजो में फंसा दिया गया , तो कई ग्रामीणों पर जानलेवा हमला कर चुप करा दिया गया, इसके बाद भी , जब ग्रामीणों का विरोध नहीं रुका तो , उन्हें मरवा दिया गया है ? इसलिए अब ग्रामीण विरोध नहीं करते और इसी बात का फायदा उठाकर तस्कर बेखौफ होकर , अपना कारोबार जिला के भीतर कर रहे है ? ग्रामीण इस सच्चाई को भी जानते है कि , पूरा सरकारी तंत्र , तस्करो के हाथो बिका हुआ है , इसलिए ग्रामीणों द्वारा शिकायत भी कही नहीं की जाती है ?
*जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है ?*
शुरुवाती दौर में , जब ग्रामीणों के द्वारा , पुलिस थाना से लेकर जिलाधीश और जिलाधीश से लेकर वन प्रमुख अधिकारियों के पास , लकड़ी तस्करी और पेड़ो की अवैध कटाई की शिकायत व जानकारी दी जाती थी तो , किसी भी अधिकारियों के द्वारा मामले को गंभीरता पूर्वक नहीं लिया जाता था और उल्टा शिकायत कर्ता का नाम पता तस्करो को बता दिया जाता था ? फलस्वरूप तस्करो का पूरा गिरोह सक्रिय होकर शिकायतकर्ता को निपटा देते थे ? वहीं शिकायत के दौरान , यह भी देखा और पाया गया कि , पुलिस अपना पल्ला , यह कह कर झाड़ लेती थी कि , यह काम उसका नहीं है ? वहीं जिलाधीश , पेड़ो की कटाई को वन क्षेत्र का अधिकार बताकर , अपना हाथ खींच लेते थे ? जबकि वन प्रमुख अधिकारी , कटाई क्षेत्रों को राजस्व विभाग का क्षेत्र बताकर , शिकायत को टाल देते थे ? और यही सिलसिला अधिकारियों का आज भी कायम है ? शिकायत करने पर कोई कार्यवाही , तस्करो के खिलाफ ,आज भी नहीं की जाती है ? इसलिए तस्कर बेखौफ है और सरकारी तंत्र की सुरक्षा में , अपना कारोबार संचालित कर रहे है ? जबकि ग्रामीण दावे के साथ कहते है कि , जिला प्रशासन का हर जिम्मेदार अधिकारी , अपने अधिकारों का दुरुपयोग और दोहन कर , तस्करो को संरक्षण दे रहा है ? और इनके धन के बदौलत ही अपना व अपने परिवार का पालन पोषण कर , उनके भौतिक सुखो को पूरा कर रहे है ? वर्ना तस्करो की क्या मजाल कि , वन या राजस्व क्षेत्रों में पेड़ो की कटाई कर , तस्करी कर सके ?
*विभाग अपने दिखावे की कार्यवाही के बजाय , असल कारवाही करे ?*
अब तक वन विभाग हो या राजस्व विभाग के द्वारा , तस्करो के खिलाफ , जो भी धर पकड़ की कार्यवाही की ही , वह सब दिखावा है और ऐसी कार्यवाही कर , सरकारी विभाग सिर्फ अपनी पीठ थपथपाती है और आज भी थपथपा रही है , जबकि ग्रामीण कहते है कि , विभाग का प्रत्येक अधिकारी तस्करो को नामजद जानते और पहचानते है ? सब पैसों का खेल है , तस्करो के पैसों के आगे , कोई भी अधिकारी , तस्करो के खिलाफ , कभी भी कड़ी कार्यवाही कर ही नहीं सकता ? ग्रामीणों ने दावे के साथ कहा कि , यदि विभागीय अधिकारी ,अपने फर्ज के प्रति जागरूक है , ईमानदार है , निष्पक्ष है , तो करे कार्यवाही , जिले के प्रत्येक आरा मिलो और टिंबर कारोबारियों के संस्थानों में , अधिकारियों को छापा के दौरान , तस्करो के संरक्षण से , कानूनन लकड़ी मिल ही नहीं सकती ? जब भी माल बरामद होगा , तो तस्करी का ही , दो नम्बर का ही माल बरामद होगा ?