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    Home»छत्तीसगढ़»रक्तांचल समीक्षा: सीरीज नहीं जलजला है रक्तांचल ?
    छत्तीसगढ़

    रक्तांचल समीक्षा: सीरीज नहीं जलजला है रक्तांचल ?

    adminBy adminJune 13, 2020No Comments5 Mins Read

    रायपुर (DNH):- बदले की कहानी किसे नहीं पसंद आती? महाभारत के काल से लेकर आधुनिक 21वीं सदी तक बदले की कहानियां सभी को रोचक लगी है। पर असल छाप वही कहानी छोड़ती है, जो अपने चरित्रों और अपने मूल संदेश से श्रोताओं को बांधे  रखे, जैसे पूर्व में गॉडफादर और गैंग्स ऑफ वासेपुर ने किया था। तो क्या रक्तांचल इस पैमाने पर खरी उतर पाई है, आइए देखते हैं।

    हाल ही हमने देखी है एमएक्स प्लेयर पर स्ट्रीम हो चुकी वेब सीरीज रक्तांचल। ये एक क्राइम ड्रामा है, जिसमें प्रमुख रोल में है क्रांति प्रकाश झा और निकितिन धीर, और इनका साथ दिया है दया शंकर पांडेय, रोंजिनी चक्रवर्ती, विक्रम कोचर जैसे कलाकारों ने।

    कहानी

    ये कहानी है पूर्वांचल के दो अपराधी गुटों के बारे में, जिनमें एक का नेतृत्व करता है वसीम खान, और दूसरे का नेतृत्व करता है विजय सिंह। दोनों की नजर है टेंडर माफिया पर वर्चस्व कायम करने पर। कैसे ये दोनों एक दूसरे से भिड़तें हैं, और कौन किसपर भारी पड़ता है, रक्तांचल इसी के बारे में है।

    सीरीज में क्या है अच्छा

    जैसा पहले बताया गया, एक अच्छी रिवेंज स्टोरी वही होती है जिसकी कहानी से श्रोता अपने आप को जोड़ सकें, और जिसके नायक के लिए उसके मन में एक सकारात्मक भावना उत्पन्न हो सके। इस परिप्रेक्ष्य में रक्तांचल ने हमारी सभी शंकाओं को दूर भी किया है, और एक अच्छी रिवेंज स्टोरी के रूप में सामने आया है। जिन्हें पाताल लोक ने पकाया है या फिर बेताल जैसी सीरीज ने रुलाया है, उनके लिए रक्तांचल किसी ठंडे हवा के झोंके से कम नहीं होगी।

    निस्संदेह रक्तांचल 80 के दशक में पूर्वांचल में हो रहे गैंगवॉर पर आधारित है। चूंकि पूर्वांचल के परिवेश में पहले ही मिर्ज़ापुर और रंगबाज (प्रथम संस्करण) जैसे सीरीज सामने आए हैं, इसलिए कई लोगों को शंका थी कि कहीं रक्तांचल उम्मीदों पर पानी ना फर दे, परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ।

    लेखक ने यहां पर अपने स्क्रीनप्ले से सुनिश्चित किया है कि श्रोता कहीं भी असहज या उबाऊ ना महसूस करें। जहां कई फिल्मकार और लेखक आजकल कूल और Edgy दिखने के चक्कर में हिन्दू धर्म को नीचा दिखाकर इस्लाम का महिमा मंडन करना कूल समझते हैं, रक्तांचल में ऐसा कुछ भी नहीं है।

    चाहे हिन्दू मुस्लिम दंगों को दिखाना हो, या फिर विलेन द्वारा एक हिन्दू परिवार की निर्मम हत्या को दिखाना हो, या फिर एक भ्रष्ट और स्यूडो सेक्यूलर नेता को एक मस्जिद में मार गिराते हुए ही क्यों ना दिखाना हो, ऐसे कई दृश्य हैं जो हमारे वामपंथी मित्रों को फूटी आंख नहीं सुहाएंगे।

    अभिनय  क्षेत्र में भी अधिकांश कलाकारों ने अपनी छाप छोड़ी है। जहां सनकी पांडेय के किरदार में ‘सेक्रेड गेम्स’ और ‘ केसरी ‘ फेम विक्रम कोच्चर ने एक खांटी पूर्वांचली गैंगस्टर की छवि को बड़े कुशलता से पर्दे पर उतारा है, तो वहीं दया शंकर पांडेय ने बतौर साहिब सिंह एक राजनीतिज्ञ की सोच और उसके तौर तरीकों पर भी काफी मेहनत की है। चितरंजन त्रिपाठी और रवि खानविलकर ने भी अपने अपने किरदार के साथ न्याय किया है।

    पर यदि किसी व्यक्ति को उसके किरदार के लिए सर्वाधिक याद किया जाएगा, तो वो है विजय सिंह के रूप में क्रांति प्रकाश झा को। इस अभिनेता को अपनी प्रतिभा के अनुसार रोल नहीं मिले है। एमएस धोनी में धौनी को हेलीकॉप्टर शॉट सिखाने वाले संतोष लाल हो, या बाटला हाउस के आतंकी आतिफ अमीन, क्रांति ने छोटे से रोल में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है। सच कहें तो एक तरह से रक्तांचल ने उन्हें अपनी प्रतिभा निखारने का एक सुनहरा अवसर दिया है, और आशा करते हैं कि उनकी प्रतिभा के साथ आगे भी न्याय किया जाए।

    जिस तरह से क्रांति प्रकाश झा ने विजय सिंह को चित्रित किया है, वो एक ही समय पर प्रिय भी है और खतरनाक भी। पलक झपकते ही गायब होने में माहिर विजय सिंह एक ऐसे नेता के रूप में सामने आता है, जो अपने साथियों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर किसी भी मिशन को अंजाम देता है। वह महत्वकांक्षी भी है और कर्तव्यनिष्ठ भी, क्योंकि उसका सब कुछ उससे छीन लिया गया। वह दिलेर भी है और दिलदार भी, और सच कहें तो विजय सिंह एक उत्कृष्ट एंटी हीरो है, जिनका अभिनय ना केवल उत्कृष्ट है, अपितु उनकी बोली और लहजा भी पूर्वांचल के हिसाब से सटीक बैठता है। क्रांति प्रकाश झा के अभिनय और उनकी इंटेंसिटी में आपको अजय देवगन की याद भी आ सकती है, जो बॉलीवुड के उन चंद अभिनेताओं में से है, जो हीरो भी हैं, और एक उत्कृष्ट अभिनेता भी।

    सीरीज में क्या है खामिया

    हालांकि, रक्तांचल के कुछ अवगुण भी हैं, जिनके कारण ये सीरीज एक बहुत बढ़िया वेब सीरीज नहीं बन पाई। तकनीकी क्षेत्र में एडिटिंग ने निराश किया है, क्योंकि कुछ दृश्य और संवाद ज़बरदस्ती ठूंसे गए थे। जैसे एक जगह एक प्रभावशाली साधु और एक अभिनेत्री के बीच के अंतरंग संबंध का दृश्य ना तो वेब सीरीज की कहानी को आगे ले जा रहा था और ना ही इसका कोई औचित्य था।

    निकितिन धीर का किरदार यूं तो वास्तविक बाहुबली मुख्तार अंसारी से काफी मिलता जुलता है, और हाव भाव से उन्होंने एक क्रूर और कपटी राजनेता दिखने का प्रयास भी किया है, पर बोली में वे मात खा गए। पूर्वांचली की बजाए यदि गैंगस्टर की बोली मुंबैय्या लगे, तो श्रोताओं के मुंह तो लटकेंगे ही।

    इसके बावजूद रक्तांचल ने अपने विषय और अपने सधे हुए स्क्रीनप्ले से एक अलग छाप छोड़ी है।

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