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    Home»देश-विदेश»क्या लोग अब भी मोदी के साथ है ?
    देश-विदेश

    क्या लोग अब भी मोदी के साथ है ?

    adminBy adminJune 13, 2020No Comments5 Mins Read

    नई दिल्ली (DNH):-  लॉकडाउन है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। कुछ जगहों पर बहुत सारी छूट ज़रूर है, लेकिन आख़िर जीवन है तो बंदिशों के बीच ही। फिर भी कुछ अच्छाई है। इस लॉकडाउन के दौरान ही जीवन में बहुत लंबे समय बाद ख़ुद से रूबरू होने का मौका मिला।

    अप्रैल के पहले हफ़्ते में टेलीविजन स्टूडियो को अलविदा कहकर उत्तराखंड के एक छोटे-से गांव में अगले दो महीने बिताए। एक ग्रामीण की तरह। अब तक एक समाज को महज़ चुनावी माहौल के नज़रिए से देखने के बाद, जब आप ख़ुद उस समुदाय में रहते हैं, तो तथ्य कितनी बार बहुत अलग दिखते हैं।

    क़रीबन दो महीने से लगातार सोशल मीडिया और मुख्यधारा में दिखाया गया कि देश का गरीब, देश का किसान सड़क पर छोड़ दिया गया है। ट्रेनों की हालत के बारे में जितना कहा जाए, वो कम। लेकिन इस सबके बावजूद, जब आप किसी किसान से बात करें, तो अब भी वह मोदी सरकार के साथ ही खड़ा दिखता है। भोवाली शहर से लेकर भूरा धूरा गांव तक, ज़्यादातर किसान यही कहते दिखे, ‘दिक़्क़त ज़रूर है, लेकिन फिर भी सरकार ने जो किया, ठीक ही किया।’

    जंगलियां गांव के निवासी पूरण का कहना है कि अच्छा होता अगर कई दिनों का सफ़र कर महानगरों से गांव आने वाले गरीब लोगों को कुछ दिनों की मोहलत दी गई होती। फिर भी हमें विश्वास है की मोदी सरकार ने जो कुछ इस महामारी से निपटने के लिए किया, वो ठीक है।

    यशवंत देशमुख की सी वोटर एजेंसी के डेली कोरोना मीटर की ओर निगाह डालें तो भी स्थिति कमोबेश यही मिलती है। लगभग 87 प्रतिशत लोगों की राय में केंद्र सरकार ने महामारी से निपटने के लिए सही कदम उठाए हैं। एक बड़े वर्ग का मानना है कि कोविड-19 एक ऐसी महामारी है, जिसका असर कम आंकना ग़लत होगा। इसका अर्थ हुआ कि इस बड़े वर्ग ने कोरोना को बड़ी समस्या माना, जिस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है। हालांकि वो यह भी मानता है कि सरकार का काम संतोषजनक है।

    इसी संख्या में देश के बड़े किसान भी शामिल हैं। अपनी जन्मभूमी बनारस में किसान वर्ग के नेताओं से बात हुई। लोगों ने ग़ुस्सा ज़रूर जताया, लेकिन उसी सांस में यह भी कहा कि पीएम मोदी जो करेंगे, ठीक करेंगे। हमने यह जानने का प्रयास किया कि अगर अनाज बिके ही नहीं, तो ये ज़िम्मेदारी किसकी होगी? उस पर भी जवाब यही, ‘दिक़्क़त तो है, लेकिन प्रधानमंत्री जो सोचेंगे, कुछ भला ही सोचेंगे।’

    तमाम संकट के बाद भी सरकार के पक्ष में यह आवाज़ क्यों? हाल में सरकार ने कृषि क्षेत्र में जो कदम उठाए, उन्हें यदि असलियत में ज़मीन पर लागू किया जाए तो किसानों को बहुत लाभ हो सकता है। कृषि उत्पाद को असेन्शल कमोडिटीज़ ऐक्ट से हटाने से किसानों को सुविधा मिलेगी कि वो अपना अनाज किसको बेचना चाहते हैं। एक किसान लगभग कितना अनाज स्टोर में रख सकता है, उस पर भी सरकार सिर्फ़ इमरजेंसी की हालत में ही पाबंदी लगा सकती है। निजी क्षेत्र के लोगों को सीधे किसानों से जोड़ने से भी फायदा होगा।

    इन सबसे हटकर भी एक धारणा है। साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल पश्चिम बंगाल का नंबर है। दोनों ही प्रदेशों में किसानों की बड़ी तादाद है। एक बड़े किसान वर्ग का यह भी मानना है कि सरकार शायद चुनाव के नज़दीक कोई आर्थिक पैकिज का ऐलान करे। उत्तराखंड के किसानों से बात करने पर भी यही सोच सामने आई।

    इसीलिए, जब आजकल कांग्रेस पार्टी के मित्रों से चर्चा होती है, तो उनका राजनीतिक दृष्टिकोण मुझे 2016 के नोटबंदी के फ़ैसले की याद दिलाता है। उस वक़्त भी कुछ ऐसा ही माहौल बना था। विरोध में आवाज़ें आ रही थीं- किसान मर रहा है, ग़रीब आदमी मुश्किल में है और मोदी सरकार ने कितना कठोर फ़ैसला लिया! नतीजा, उत्तर प्रदेश में बीजेपी को स्वतंत्र भारत के इतिहास में तीसरी सबसे बड़ी जीत हासिल हुई।

    सचाई यह है कि ग़रीब आदमी आज भी पीएम मोदी की तरफ़ टकटकी लगाए है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भले ही एक बार फिर प्रयास किया अपने को सजा-संवार कर प्रस्तुत करने का, लेकिन उसका कोई ज़मीनी असर फ़िलहाल नहीं दिखता। कांग्रेस को यह समझने की आवश्यकता है कि अंग्रेज़ी मीडिया में राहुल जब अभिजीत बनर्जी से विचार विमर्श करते हैं तो वह एक अच्छी तस्वीर बनती है, लेकिन शायद राजनीति की बिसात पर कमजोर दिखती है।

    कुछ वर्ष पहले तक राहुल गांधी कोशिश करते थे भारत भ्रमण की। उनकी यात्राएं उन्हें भारत की एक नयी सोच की तरफ़ अग्रसर करती थीं। यदि कांग्रेस वाक़ई यह दर्शाना चाहती है कि मोदी सरकार ने कोविड-19 के समय ग़रीब व्यक्ति का ख़्याल नहीं रखा, तो उसे ग़रीब आदमी के साथ उसकी भाषा में जुड़ना होगा। उदाहरण के लिए यह ट्वीट मुझे अच्छा लगा, जिसमें राहुल ने सरकार को आर्थिक मोर्चे पर घेरने की कोशिश की है।

    लेकिन इतना पर्याप्त नहीं। इस ट्वीट के ज़रिए सरकार को घेरने के लिए और मज़बूत कदम उठाने पड़ेंगे। सौ बात की एक बात। विपक्षी दलों के भरपूर प्रयास के बावजूद भारत का राजनीतिक माहौल अब भी मोदी के पक्ष में ही दिखता है। अगर कोरोना महामारी को राजनीतिक तौर पर ग़रीब व्यक्ति के ख़िलाफ़ राजनीतिक लड़ाई के रूप में प्रस्तुत करने की बात थी, तो बात बनती दिखाई नहीं देती।

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