देश के ग्रामीण इलाकों में रोजगार की सबसे बड़ी केंद्रीय योजना मनरेगा में मांगने पर भी 1.89 करोड़ लोगों को काम नहीं मिल पाया है। वित्त वर्ष 2021-22 (जनवरी 2022 तक) में देशभर में कुल 11.6 करोड़ लोगों ने मनरेगा में रजिस्ट्रेशन कराया था। इनमें से 9.7 करोड़ को काम मिला, जबकि 16.3% को नहीं मिला। काम नहीं पाने वालों का यह औसत पिछले चार वर्षों में सर्वाधिक है।



केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मांगने के बावजूद काम नहीं पाने वालों का सबसे ऊंचा औसत गुजरात, बिहार और मध्यप्रदेश में है। गुजरात में पिछले साल 25.45 लाख लोगों ने काम मांगा था। इनमें से 8.84 लाख (34.7%) को काम नहीं मिला।
एक्सपर्ट व्यू-
मनरेगा का बजट इस बार 25% घटाया, गंभीर न हो जाएं हालात- प्रो. दीपा सिन्हा, अर्थशास्त्री, डॉ. बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी, दिल्ली
केंद्र सरकार की मनरेगा स्कीम ग्रामीण भारत में रोजगार की सबसे मजबूत कड़ी रही है। कोरोनाकाल के दौरान लोग पलायन कर गांवों में लौटे थे। इसीलिए, 2020 में सबसे ज्यादा 13.3 करोड़ लोगों ने मनरेगा में रजिस्ट्रेशन कराया था। 2021 में 11.6 करोड़ लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया, यानी 2 करोड़ लोग वापस शहरों में काम के लिए गए होंगे। लेकिन, अहम बात यह है कि 2021 में भी 1.89 करोड़ लोगों को 193 रु. से लेकर 315 रु. तक की दिहाड़ी पर भी गांवों में काम नहीं मिल पाया।
यह स्थिति तब है, जब केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत 98 हजार करोड़ रु. आवंटित किए थे। अब वित्त वर्ष 2022-23 के लिए यह राशि घटाकर 73 हजार करोड़ रु. कर दी गई है। यानी 25% कम। मौजूदा हालात में गांवों में बेरोजगारी की यह स्थिति बेहद गंभीर है। ऐसे में अगले साल के लिए जब बजट ही घटा दिया गया है। जरा सोचिए, फिर स्थिति आगे और कितनी खतरनाक होगी। हालांकि, सरकार चाहे तो साल के बीच में भी इस मद में बजट बढ़ा सकती है।
हिमाचल, बंगाल, पंजाब में स्थिति अच्छी

काम नहीं मिलने का औसत हर साल बढ़ रहा
