दुर्ग। अंतरजातीय विवाह कर सामाजिक दंश की पीड़ा झेलने वालों का मनोबल बनाए रखने की दिशा में भिलाई की एक मानव समाज संस्था 12 साल से काम कर रही है। अंतरजातीय विवाह करने वालों को इस संस्था से जोड़ा जा रहा है और उनका सम्मान भी किया जा रहा है।



अंतरजातीय विवाह के बाद सामाजिक अथवा पारिवारिक दबाव के चलते परेशान होने वाले जोड़ों की काउसिंलिंग भी करता है ताकि उनका रिश्ता बना रहे।
अंतरजातीय विवाह को सामाजिक रूप से मान्यता नहीं मिली है। जाति-पाति से परे इस तरह का विवाह करने वालों को समाज व परिवार में अपमान की पीड़ा भी सहनी पड़ती है। अंतरजातीय विवाह कर सामाजिक दंश की पीड़ा झेलने वालों की मदद के लिए भिलाई में एक मानव समाज नामक संस्था बनाई गई है। रूआबांधा भिलाई निवासी सुबोध देव ने अपने आठ साथियों के साथ मिलकर वर्ष 2010 में संस्था का गठन किया।
मार्च 2014 में इस संस्था का पंजीयन कराया गया। संस्था का उद्देश्य अंतरजातीय विवाह कर समाज व परिवार की प्रताड़ना झेलने वालों के सम्मान व मनोबल को बनाए रखना है। साथ ही परिवार व समाज की दबाव के वजह से ऐसे जोड़ों को रिश्तों को टूटने से बचाए रखने की दिशा में काम कर रहा है।
संस्थापक सुबोध देव ने बताया कि अंतरजातीय विवाह करने वालों के संबंध में पता साजी कर उन्हें एक मानव समाज संस्था से जोड़ा जाता है। कार्यक्रम का आयोजन कर ऐसे जोड़ों का सम्मान किया जाता है। संस्था द्वारा अब तक राज्य के विभिन्ना जिलों में करीब साढ़े हजार जोड़ों का सम्मान किया जा चुका है।
संस्था का विस्तार राज्य के 12 जिलों में हो चुका है जिसमें दुर्ग,रायपुर,धमतरी,बिलासपुर,रायगढ़,कोरबा,राजनांदगांव,महासमुंद,बेमेतरा,सरगुजा,बालोद शामिल हैं। समय-समय पर इन जिलों में संस्था द्वारा बैठकों का आयोजन भी किया जाता है।
साढ़े 350 जोड़े का किया काउसिंलिंग
संस्थापक सुबोध देव ने बताया कि अंतरजातीय विवाह करने वालों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शादी के बाद भी समाज व परिवार के लोग तरह-तरह के उलाहने देकर इन्हें अलग करने का प्रयास करते हैं। दबाव के चलते कई बार रिश्ता टूटने के कगार पर पहुंच जाता है। ऐसे जोड़ों के रिश्ता को बनाए रखने संस्था द्वारा इनकी काउसिंलिंग भी की जाती है। काउसिंलिग के लिए 12 सदस्यीय टीम बनाई गई है।
जिसमें युवाओं के साथ साथ बुजुर्गों को भी शामिल किया गया है। सुबोध देव का कहना है कि अब तक करीब साढ़े तीन सौ जोड़ों की काउसिंलिंग कर उनके रिश्तों को टूटने से बचाया जा चुका है। कुछ मामले थाना व कचहरी तक भी पहुंच जाता है ऐसे मामलों में भी संस्था द्वारा लोगों को मदद करने का प्रयास किया जाता है।
खुद झेली पीड़ा,तब किया संस्था का गठन
सुबोध देव ने वर्ष स्वयं अंतरजातीय विवाह किया है। शादी करने के बाद सुबोध को भी समाज व परिवार के लोगों की उलाहना का सामना करना पड़ा। सुबोध ने बताया कि सामाजिक दंश की पीड़ा झेलने के बाद उनके मन में एक मानव समाज नामक संस्था गठन करने का विचार आया। जिसमें जाति पाति से परे अंतरजातीय विवाह कर सामाजिक कुंठा का शिकार हुए लोगों का सम्मान किया जा सके।
इस काम में उसने अपने साथियों की मदद ली। सुबोध देव ने बताया कि इस कार्य के लिए उन्हें वर्ष 2016 में ताल कटोरा नई दिल्ली में आयोजित समारोह में डा.भीमराव अंबेडकर नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया है।