दुर्ग। कश्मीर के रजौरी में पदस्थ सेना के एक जवान की जमीन पर भू – माफिया ने अवैध प्लाटिंग कर उसे कई लोगों को बेच दिया है। इस मामले में नंदिनी थाना में अपराध पंजीबद्ध है।






प्रकरण में आरोपित पटवारी ने अग्रिम जमानत के लिए जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में आवेदन लगाया था। जिसे सुनवाई के बाद न्यायालय ने खारिज कर दिया।
प्रकरण के मुताबिक जुनवानी निवासी लुकेश साहू भारतीय सेना में जवान है। उसने वर्ष 2010 में अपने पार्टनर अश्वनी चंद्राकर के साथ मिलकर ग्राम अरसनारा में साढ़े पांच एकड़ जमीन ली थी। उक्त जमीन को अपने मामा तुलसी राम साहू जो पटवारी हैं उनसे ली थी।
जमीन लेने के बाद सैनिक के परिवार के अन्य सदस्य उक्त जमीन पर खेती कर रहे थे। सैनिक नवंबर 2020 में भिलाई आया था तो अपनी जमीन को जाकर भी देखा। जमीन संबंधी कार्य के लिए अपने भाई अक्षय कुमार साहू को आम मुख्तयार नामा दे दिया था। अक्षय साहू कुछ दिनों बाद जमीन पर गया तो वहां पर प्लाटिंग के लिए मार्ग संरचना तैयार किया जा चुका था। उन्होंने अपने स्तर पर मामले की पतासाजी की तो जानकारी मिली कि जमीन का कुछ हिस्सा 45 लाख रुपये में बेच दिया गया है।
इसके अलावा कुछ अन्य लोगों को भी प्लाट बनाकर जमीन बेची गई थी। शिकायत पर नंदिनी पुलिस ने मामले की जांच की और मामले में प्रवीण पांडे,विजय दत्त हरहदा, मुकेश पांडेय, तुलसीराम साहू सहित अन्य लोगों के खिलाफ धारा 420 सहपठित धारा 120 बी के तहत अपराध पंजीबद्ध किया। इस मामले में पटवारी तुलसीराम साहू ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश दुर्ग की अदालत में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन लगाया था।
जहां सुनवाई के बाद न्यायालय ने आरोपित तुलसीराम साहू का अग्रिम जमानत आवेदन निरस्त कर दिया। न्यायालय का कहना था कि आरोपित एक शासकीय सेवक है। लेकिन शासकीय सेवक होने के बाद भी उसने मात्र इकरार नामा के आधार पर अचल संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण किया है जबकि उन्हें भलीभांति ज्ञात है कि अचल संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण मात्र इकरारनामा के आधार पर नहीं किया जा सकता है। बल्कि उसके पंजीकृत विक्रय पत्र की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त आरोपित तुलसीराम साहू की सहभागिता प्रारंभ से ही धारा 420 के अपराध में दर्शित होती है क्योंकि इसी ने अपने सगे भांजे लुकेश कुमार साहू को प्रवंचित किया है और आपत्तिकर्ता लुकेश कुमार साहू एवं उनके सह स्वामी अश्वनी चंद्राकर की जानकारी के बगैर मात्र आम मुखत्यार नियुक्त होने के बाद मोदित पटेल को अधिकार पत्र दिया है।
जबकि आम मुख्तयार के द्वारा मुख्तयार की गई संपत्ति के संबंध में अन्य किसी व्यक्ति को अधिकार पत्र नहीं दिया जा सकता है।