*रायपुर* (DNH):- सप्ताह भर से अा रही कुछ समाचारों ने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया है , समाचारों को पढ़ने और देखने के बाद ऐसा लगता है कि , अब दुनिया से इंसानियत लगभग खत्म सी हो गई है , क्योंकि , अब इंसान के भीतर का जानवर जाग उठा है या यूं कहे , इंसान अपने आदि काल की जिंदगी को भुला नहीं पाया है ? वो सिर्फ कपड़ों में इंसान है ? वास्तव में इंसान , कभी भी अच्छा इंसान बन ही नहीं पाया है ? क्योंकि , उनके कारनामे देश दुनिया में , प्रतिदिन , प्रति मिनट , दिखाई दे ही देती है , जब इंसान कही ना कहीं किसी की अमानवीय तरीके से हत्या कर देता है या कर रहा है ? आज भी इंसानों की कई आदतें और हरकते जानवरो से भी बदतर है ? वो कभी ना कभी , अपनी औकात को दिखा ही देता है ? एक बार शेर – बाघ – सांप जैसे जीवो से , जो जानलेवा है , खतरनाक है , से ईमानदारी – वफादारी की उम्मीद की जा सकती है , परन्तु इंसान कहे जाने वाले जीव से ना तो ईमानदारी की उम्मीद की जा सकती है और ना ही वफादारी की , जबकि इस धरती पर , इंसान को नेक माना गया है ? लेकिन इंसान की नेकी कही भी नजर नहीं आती ? यदि कभी कभार दिखाई दे भी दे , तो उसके पीछे इंसान का स्वार्थ छुपा हुआ रहता है ? पिछले सप्ताह केरल में , एक गर्भवती हथिनी को कुछ स्वार्थी तत्वों ने , अनानास फ़ल के भीतर विस्फोटक सामग्री भरकर खिला दिया , भूखी हथनी इन स्वार्थी तत्वों को , अपनी तरह ईमानदार – वफादार समझी और विश्वास में फ़ल को खा लिया , मुंह में जाते ही फल विस्फोट हो गया और फट गया , परिणाम यह हुआ कि , हथनी का जबड़ा फट गया और वह अंततः कई दिनों तक दर्द से तड़फती रही , आखिरकार उसने दम तोड़ ही दिया ? इस मामले में स्वार्थी तत्वों का कमिना और दोगलापन जहां सामने आया , तो वहीं विश्वास को भी कुचलकर रख दिया गया , हथनी ने सिर्फ विश्वास में उस फ़ल को खाया था , लेकिन वाह रेे इंसान , तूने तो दोगलेपन की सारी सीमाएं तोड़ दी ? इस अमानवीय कृत्य के पश्चात , हिमाचल प्रदेश में फिर कुछ स्वार्थी तत्वों ने , एक गाय को विस्फोटक सामग्री खिला दी , गाय की स्थिति भी हथनी की तरह हुई और वह भी दर्द में तड़फ कर , अपनी जान गंवा दी , इसके बाद एक कुत्ते को , उसके मुंह में टेप सिर्फ इसलिए बांध दिया गया , क्योंकि , वह भौकता बहुत था , तीन चार दिन पश्चात पुलिस वालो को जानकारी हुई , तो उन्होंने कुत्ते की मुंह से टेप को काटकर अलग किया और उसका इलाज कराकर , उसे छोड़ दिया गया , ठीक इस घटना के बाद , एक व्यक्ति अपनी मोटर साइकिल के पीछे , रस्सी से कुत्ते को बांधकर घसीटता दिखाई दिया , अब इन दोनों मामलों में , वो व्यक्ति विचार करे , जो वास्तव में , अपने आपको को , अपने कर्तव्यों के कारण , इंसान समझता हो , कि आखिरकार कुत्ता कौन है ? जबकि इसी बीच बिहार का एक व्यक्ति , अपनी सारी संपति पाले हुए हाथियों के नाम कर दी , वो सिर्फ इसलिए क्योंकि , हाथियों ने बिना किसी स्वार्थ के , उस शख्स की जान बचाई थी , उसके मरने के बाद , हाथी भूख ना मरे , उनका पालन पोषण ठीक ठाक हो , इसलिए उस व्यक्ति अपनी सारी संपति हाथियों के नाम कर दी , एक तरफ पूरा देश कोरोना से बचने के लिए , एकजुट होकर , कोरोना के खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ रहा है , तो वहीं सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए जी रहे स्वार्थी तत्वों ने स्वार्थ की सारी सीमाएं लांघ दी है ? और बेजुबान जीवो को दर्दनाक तरीके से मौत के घाट उतार रहे है ? सरकार और उनका प्रशासनिक अमला इन मामलों में सिर्फ जांच – जांच का खेल , खेल रहा है ? जबकि वन्य जीवो की सुरक्षा के लिए कई कड़े ठोस कानून बनाए गए है ? जो अब लगता है कि , कानून सिर्फ दिखाने के लिए , अपनी तिजोरी भरने के लिए , पद और कुर्सी की प्राप्ती के लिए , बनाया गया है ? क्योंकि पिछले कई दशकों से वन जीवो की तस्करी और उनकी हत्या खुलेआम कानून की नजरो के सामने बेखौफ रूप से हो है ? आज तक किसी भी बड़े तस्कर को विभाग गिरफ्तार नहीं कर पाई है ? यदि कोई कार्यवाही सामने आती है , तो वह भी दिखावा होता है ? वन क्षेत्रों के भीतर वन्य जीवों की कम होती जनसंख्या और वन सम्पदा का सर्वनाश ? एक चिंता का विषय है ? लेकिन इन लगातार के सर्वनाश को शासन प्रशासन ने कभी भी गंभीरता से नहीं लिया और आज परिणाम , यह है कि , वन सम्पदा सभी स्तर के बर्बाद हो चुके है ? यदि इन बातो को आम भाषा में कहा जय कि , सबकुछ शासन प्रशासन के नजरो के सामने , उनके संरक्षण में हो रहा है ? तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ? सच यही है ?






*ऐसे मामलों में राजनीति – शर्मनाक , फिर भी राजनीति ?*
देश के राजनेताओं को समय और मामला मिलना भर चाहिए , फिर उनकी राजनीति कही भी , कभी भी शुरू हो जाती है ? बजाय देश या जनसमूह के सामने खड़ी समस्या का समाधान करने के , जो कि , बेहद शर्मनाक और निंदनीय होती है ? लोग तो यहां तक कहते है कि , ऐसे लोगो का बस चले तो ये मां बाप की मौतों पर भी राजनीति करने लगेंगे ? जो वर्तमान रणनीति को देखकर सच भी लगता है कि , राजनीति कभी भी – कही भी हो सकती है ? और ऐसा वर्तमान राजनीति में देखा भी गया है ? जहां मां बाप को सामने लाकर राजनीति की जा रही है ? जब ऐसी सोच देश के राजनेताओं की हो , तब इनसे हाथी के मारे जाने और कोरोना पर राजनीति करना कोई बड़ी और शर्मनाक बात हो ही नहीं सकती है ? जबकि देश के जनप्रतिनिधि होने के नाते , इनका सर्वप्रथम फर्ज बनता है कि , मामले की जड़ तक जा कर , समस्या का समाधान पहले करे ? लेकिन ऐसा होते हुए कभी भी नहीं देखा गया है ? वरन् बनते हुए मामले को और भी उलझा दिया जाता है ? देश आज हथनी सहित अन्य जानवरो पर हो रहे जुल्मों से आहत है , लोग इंसाफ की मांग कर रहे है , तब ऐसे में राजनेताओं की राजनीति शुरू हो गई है ? सब एक दूसरे को नीचा दिखाने में भिड़े हुए है , भाषा की मर्यादा इतनी खराब और अशोभनीय हो चुकी है कि , सुनने में भी शर्म आती हैं , हथनी मर गई पेट में बच्चा लेकर , कुत्ते की मुंह को टेप से बांध दिया गया , जबकि दूसरे मामले में कुत्ते को बांधकर घसीटा गया , गाय को विस्फोटक खिलाकर मार डाला गया , छत्तीसगढ़ में भी लगातार चौथा हाथी मारा गया , इन सब मामलों की जांच कर आरोपी को जेल भेजने के बजाए , राजनेता देश के भीतर राजनीति ही कर रहे है ? जो ऐसे माहौल में उचित नहीं है ? बल्कि राजनेताओं को चाहिए कि , कानूनों का पालन करते हुए देश के धरोहर को बचाए , उन्हें इंसाफ दिलवाए , आरोपियों को जेल भेजे , वर्ना ऐसी स्थिति का फायदा तस्करो का गिरोह उठाएगा और काफी हद तक उठाया जा रहा है या उठा लिए है ? आपस में झगडा छोड़कर , मुक मवेशियों को इंसाफ दिलवाए तो , अच्छी राजनीति कही जाएगी ?
*कुत्ते से हैवानियत, टेप से मुंह को कसकर बांधा ।*
केरल के त्रिशूर से एक मासूम जीव के साथ इंसानों द्वारा हैवानियत करने का मामला सामने आया है, जिसमें एक कुत्ते के मुंह को किसी ने टेप से पूरी तरह बांध दिया था. पीपल फॉर एनिमल वेलफेयर सर्विसेज (पीएडब्ल्यूएस) के सदस्यों ने उस कुत्ते का मुंह टेप से बंधा देखे जाने के करीब 2 हफ्तों बाद उसे बचाया. बतौर पीएडब्ल्यूएस सचिव, कुत्ता कई दिनों तक मिल नहीं पाया था. क्योंकि वह डर की वजह से कहीं छिप गया था. उन्होंने बताया कि वह बहुत दिनों से भूखा-प्यासा था. टेप हटने के बाद उसने 2 लीटर पानी पिया.
इस कुत्ते की उम्र लगभग तीन साल है और इसे त्रिशूर के ओल्लूर से रेस्क्यू किया गया. पीएडब्ल्यूएस के सदस्यों का कहना है कि जैसे ही हमें इसकी जानकारी मिली है हम वहां पहुंचे और कुत्ते के मुंह से टेप हटाया. इसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. कुत्ते के मुंह पर टेप के कई रोल बांधे गए थे. जिसकी वजह से मुंह पर घाव के निशान बन गए और नाक के आसपास की हड्डियां तक दिखाई देने लगी थीं.
पीएडब्ल्यूएस के सचिव रामचंद्रन का कहना है कि यह कुत्ता हमें त्रिशूर में ओल्लूर जंक्शन में मिला था. पहले हमने सोचा कि टेप का सिर्फ एक रोल ही कुत्ते के मुंह से बंधा होगा. लेकिन हमने देखा कि टेप की कई परतें कुत्ते के मुंह पर लिपटी थीं.
*पुलिस में मामला दर्ज किया ?*
रामचंद्रन का कहना है कि कुत्ते कुछ हफ्तों तक ही बिना खाने के जिंदा रह सकते हैं. लेकिन वो काफी कमजोर हो जाते हैं. इस कुत्ते को एंटीबायोटिक दिया गया है और अब स्थिर हो रहा है. हम इस मामले की पुलिस में शिकायत करेंगे. गौरतलब है कि बीते दिनों केरल में ही एक गर्भवती हथिनी को शरारती तत्वों द्वारा विस्फोटक खिलाने का मामला सामने आया था. हथिनी कई दिनों तक नदी में खड़ी रही और बाद में उसकी मौत हो गई थी. इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने जमकर गुस्सा उतारा था.
*कुत्ते को बाइक के पीछे रस्सी से बांधकर घसीटा, सोशल मीडिया पर वीडियो हुआ वायरल ?*
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एक कुत्ते के साथ दो शख्स ने ऐसा काम किया है, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. कुत्ते के साथ शख्स द्वारा किए गए इस व्यवहार पर सोशल मीडिया यूजर्स कई तरह के सवाल उठा रहे हैं. दरअसल, इस वायरल वीडियो में दो शख्स मोटरसाइकिल के पीछे एक कुत्ते को बांधकर रोड पर घसीटते हुए नजर आ रहे हैं. कुत्ते के साथ हो रहे इस क्रूरता का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. वीडियो में आप देख सकते हैं कि जिस दौरान दोनों शख्स कुत्ते को मोटरसाइकिल के पीछे घसीट रहे हैं एक शख्स मोटरसाइकिल के पीछे बैठकर कुत्ते को गलियों में घसीट रहा था तो वहीं दूसरा शख्स मोटरसाइकिल दौड़ा रहा था. उस दौरान पीछे से एक कार आ रही है. कार में बैठे शख्स ने कुत्ते का साथ हो रही इस क्रूरता का वीडियो मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिया.
औरंगाबाद में कुत्ते के साथ हुए इस व्यवहार का वीडियो सामने आने के बाद पुलिस प्रशासन हरकत में आ गया है और दोनों आरोपियों को हिरासत में लिया गया है. ट्विटर पर वायरल हो रहे इस वीडियो के बाद यूजर्स कई तरह के सवाल पूछ रहे हैं. एक यूजर ने कमेंट करते हुए पूछा कि क्या ये वाकई इंसान कहलाने लायक हैं या नहीं. वहीं, एक यूजर ने कमेंट किया कि जो लोग जानवरों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं असल में वो मनुष्य कहलाने लायक नहीं हैं.
*जानवरों की हम इंसानों के बारे में क्या है राय ?*
अरे शेरू, क्या लगता है? कहां चले गए ये सारे इंसान? अचानक से यह क्या हो गया? न कोई सड़क पर है, न दफ़्तर जा रहा है, न गाड़ी चला रहा है और न पार्क में आ रहा है। न कोई पत्थर मार रहा, न कोई लतिया रहा, न कोई रोटी डाल रहा। आपकी गली के आवारा कुत्ते, पेड़ों पर चहकते पंछी या उछल-कूद मचाने वाले बंदर आजकल क्या बात कर रहे होंगे? इंसान अगर एकाध दिन के लिए घरों में बंद हो जाते और फिर लौट आते तो ठीक था। लेकिन इतने लंबे लॉकडाउन में जो कुछ देखने को मिल रहा है, उससे तो ऐसा लगता है जैसे दुनिया ही उलट-पलट हो गई है।
लेकिन वे कुछ सोचें उसके लिए पहले एक बात ज़रूरी है। और वह है जानवरों में सोचने-समझने की क्षमता। क्या कहते हैं आप, क्या जानवर सोच सकते हैं? आम तौर पर इंसानों की धारणा तो ऐसी नहीं है। ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि जानवरों में न तो बुद्धि होती है और न ही भावनाएं। न तो वे खुश होते हैं और न ही दुखी। दूसरी तरफ़, अगर धर्म के नजरिए से देखें तो ऐसा माना गया है कि जानवरों में इंसानों जैसी ही सोचने-समझने और तर्क करने की क्षमता होती है। हमारे अवतार, हमारे अनगिनत देवी-देवता स्वयं विभिन्न जंतुओं के शरीर में अवतरित हुए। पौराणिक ग्रंथों में जटायु, वानर सेना, चूहे-गरुड़-नंदी-मोर जैसे देवताओं के वाहनों, कामधेनु और ऐरावत जैसी दैवीय कृतियों के उदाहरण भरे पड़े हैं, जो बहुत मेधावी हैं।
पश्चिमी दुनिया की बात करें तो अरस्तू का कहना था कि इंसानों के पास बुद्धि या इंटेलिजेंस है, जबकि जंतुओं के पास सिर्फ इंस्टिंक्ट या तात्कालिक प्रतिक्रिया करने की प्रवृत्ति। वे अपना अस्तित्व बचाने और प्रजनन के लिए इसी क्षमता का प्रयोग करते हैं। इसके कोई दो हजार साल बाद, यानी सत्रहवीं शताब्दी में महान दार्शनिक देकार्त ने इंसानों की तुलना माइंड ऑफ़ गॉड, यानी ईश्वर के मस्तिष्क से की थी, जबकि जानवर हाड़-मांस से बनी हुई मशीनों जैसे थे, जैसे कोई रोबोट होता है। जानते हैं देकार्त के शिष्य निकोलस मेलब्रॉन्चे ने क्या कहा था? उन्होंने कहा कि जानवर बिना स्वाद लिए खाते हैं। बिना दर्द के रोते हैं। अपनी बढ़ती उम्र को महसूस किए बिना ही बढ़ते रहते हैं। उन्हें किसी भी चीज़ की चाह नहीं होती, उन्हें न डर होता है और न ही कोई ज्ञान।
लेकिन हमने देखा है कि जब कोई इंसान पत्थर या छड़ी लेकर किसी कुत्ते की तरफ भागता है या बंदर को डराने की कोशिश करता है तो दोनों ही इस पर तुरंत प्रतिक्रिया करते हैं। या तो वे वहां से भाग जाएंगे या फिर जवाबी हमला जैसा कुछ करेंगे। क्या इसमें दिमाग़ की कोई भूमिका है? शायद नहीं क्योंकि यह एक स्वाभाविक शारीरिक प्रतिक्रिया है, जिसे इंस्टिंक्ट कहा जाता है। भय और आक्रामकता इसी श्रेणी में गिने जा सकते हैं। सवाल यह है कि क्या जानवर ऐसी प्रतिक्रिया भी कर सकते हैं, जिसमें किसी किस्म की बौद्धिक आवश्यकता हो। जो प्रतिक्रिया सोच-समझकर या तर्क का इस्तेमाल करके की जाए?
जब विज्ञान के पटल पर डार्विन का आगमन होता है तो पश्चिम की इन धारणाओं को बड़ी चुनौती मिलती है। चार्ल्स डार्विन ने अपनी किताब, ‘द एक्सप्रेशन ऑफ़ इमोशंस इन मैन ऐंड एनिमल्स’ में लिखा है कि इंसानों और जानवरों की बुद्धि में सिर्फ़ परिमाण या मात्रा का फ़र्क है यानी कि कम-ज्यादा का। फिर यह सवाल पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है कि जानवरों के पास दिमाग़ है या नहीं। उन्होंने विकास के अपने चिर-परिचित कंसेप्ट के ही अनुरूप अरस्तू वाली बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इंस्टिंक्ट ही विकास होते-होते बुद्धि या इंटेलिजेंस में बदल सकता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि केंचुए एक ख़ास तरीका अपनाते हुए पत्तियों को अपने बिल में खींच ले जाते हैं। इसकी तुलना इंसानों से की जा सकती है, जो किसी बड़े आकार की चीज़ को खिसकाने या ढोने के लिए एक खास कोण का प्रयोग करते हैं।
इन दोनों बातों की तुलना करते हुए डार्विन लिखते हैं कि अगर हम इंसान दूसरे जीवों से विकसित होते हुए आज यहां तक पहुंचे हैं, तो हमारा मस्तिष्क भी उन जीवों के स्तर से विकसित होते-होते आज की स्थिति में पहुंचा है। सीधे शब्दों में कहें, तो जंतुओं के पास सोचने-समझने की क्षमता है, हालांकि किसी के पास कम है तो किसी के पास अधिक। पिछले चार दशकों में इस विषय पर और भी बहुत सारे प्रयोग और शोध हुए हैं। इनसे डार्विन की बात सिद्ध हुई है। मसलन हाथी अपनी पहुंच से दूर स्थित चीजों तक पहुंचने के लिए किसी ऊंची जगह का प्रयोग कर लेते हैं। कुछ समय पहले एक प्रयोग की खबर आई थी कि कौवे टहनियों, पत्तियों आदि का इस्तेमाल छोटे-मोटे औजारों की तरह कर सकते हैं।
प्यासे कौवे की जो कहानी है, वह उतनी काल्पनिक नहीं है, जितनी कि समझी जाती रही है। इसी तरह, ऑक्टोपस दूसरों की देखा-देखी डिब्बों के ढक्कन खोल सकते हैं और अपनी इस स्किल को आगे भी बरक़रार रख सकते हैं। ये सभी काम जटिल कौशल या कॉम्प्लेक्स स्किल्स की श्रेणी में आते हैं। यहां पर चिम्पैंजी से जुड़े कुछ मज़ेदार अनुभवों की बात करना लाज़िमी होगा। प्रयोगों में देखा गया कि चिम्पैंजी एक-दूसरे का ध्यान बंटाने में माहिर हैं। जैसे एक चिम्पैंजी के पास पड़े केले पर दूसरे चिम्पैंजी की नज़र है, तो वह उसके कंधे पर हल्की-सी थपकी देकर उसका ध्यान अपनी तरफ खींचता है और फिर उसके केले पर हाथ साफ कर देता है।
एक और मज़ेदार उदाहरण सैन्टिनो नाम के एक चिम्पैंजी का है, जो स्वीडन के एक चिड़ियाघर में रहता है। चिड़ियाघर के कर्मचारियों ने नोटिस किया कि वह चुपचाप कुछ छोटे आकार के पत्थर जमा करके उनको अपनी कोठरी के पीछे कहीं पर छिपा रहा है। वह ऐसा क्यों कर रहा था? उसके बर्ताव पर ध्यान दिया गया, तो पता चला कि वह उन लोगों पर फेंकने के लिए पत्थर जमा कर रहा है, जो भविष्य में उसे परेशान करेंगे। इसे क्या कहेंगे आप? क्या अब भी आप मानेंगे कि जानवर में न तो दिमाग़ है, न ही वह डरता है और न ही योजना बना सकता है? अब भावनाओं की भी बात हो जाए। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पालतू मादा कुत्ते का विडियो वायरल हुआ था, जिसका कुछ महीने का पिल्ला था। उसके मालिक ने उसे सिर्फ़ एक डबलरोटी और एक खीरा खाने के लिए दिया और उसके पिल्ले को कुछ भी नहीं। मजबूर होकर मां अपना भोजन अपने पिल्ले को दे देती है और ख़ुद भूखी ही रह जाती है। हाथियों के बारे में भी यह मशहूर है कि वे अपने समूह में किसी के मर जाने पर शोक मनाते हैं। यह बात आपने कुछ और जानवरों के साथ भी महसूस की होगी।
जैसा कि डार्विन ने कहा, अलग-अलग जंतुओं के मस्तिष्क की क्षमता अलग-अलग हो सकती है। उस लिहाज से शायद कुत्तों, बंदरों आदि के पास बहुत-सी क्षमताएं न हों, जैसे कि आश्चर्य करने, अफसोस जताने या विवेक के इस्तेमाल की क्षमता।
चलते-चलते एक और प्रयोग का ज़िक्र कर लिया जाए, जो अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डॉ. गॉर्डन गैलप ने सन 1970 में किया था। उन्होंने अनेक जानवरों के माथे पर एक निशान बनाया और उनके सामने शीशा रख दिया। शीशे में अपने आपको देखकर उनमें से कुछ जानवरों ने अपने ही शरीर पर बने उस निशान को छूने की कोशिश की, यह देखने के लिए कि क्या आईने में दिख रहा जानवर भी इसी तरह से अपने आपको छू रहा है।
इंसानों के एक से दो साल के शिशुओं में यह प्रवृत्ति देखने को मिलती है। ओरंगउटान, गोरिल्ला, हाथी और डॉल्फिन ने ऐसा ही किया। ज़ाहिर है कि वे बात को समझ पा रहे थे। लेकिन बंदर और कुत्ते इस परीक्षण में फेल हो गए। वे शीशे में मौजूद जानवर को प्रतिद्वंद्वी मानकर आक्रामक हो गए। तो क्या कहते हैं आप? क्या सोच रहे होंगे आपके आसपास के जानवर?