जिला अस्पताल में चल रहा रेफर का खेल 30000 रुपए में हुआ था बेड का सौदा, दस्तावेज(रसीद) के उपलब्ध है, ज्वाला एक्सप्रेस के पास



कोविड – 19 का डर दिखाकर वसूला जाता है लाखों
राजू से आलू तक , भोला से भंडार तक कैसे होता है खेल करेगे पूरा खुलासा
रास्ता था 10 मिनट सफर लग गए 30 मिनट 20 मिनट तक चलता रहा सौदा सात अस्पताल में से एक हुआ फाईनल ओम हॉस्पिटल ।
जिला अस्पताल में किसी नेता /बनाम सरकार के मंत्री का सरक्षण यह भी करेगे खुलासा

दुर्ग। जिला अस्पताल में इलाज से महिलाओं का भरोसा उठता जा रहा है। यह अस्पताल आज पूरी तरह से दलालों के कब्जे में है। इनकी मिलीभगत से रेफर का खेल चल रहा है।
अस्पताल में मरीज परेशान ही नहीं हैं, बल्कि आकर पछता रहे हैं। यहां गेट से मरीज को निजी क्लीनिक में ले जाने के लिए दलाल आगे-पीछे लग जाते हैं।

अस्पताल कर्मी भी इस खेल को पूरा साथ देते हैं। लोग चाह कर भी जरूरतमंद सरकारी सेवाएं नहीं ले पा रहे हैं। सरकार जच्चा-बच्चा को सुरक्षित रखने के लिए जननी सुरक्षा योजना चला रही है।
कैसे खेल करते है, बहु बेटियों और मातृ शिशु का जिसकी पीड़ा को नही भूल पाता है परिवार।
जो भी गर्भवती महिला सरकारी अस्पताल में प्रसव को आती है उनको 1400 रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है। अगर प्राइवेट वार्ड लिया, तो उसको यह लाभ नहीं मिलेगा। यही नहीं प्रसव के दौरान भर्ती महिला को भोजन व दूध दिए जाते हैं।

यह सेवा लेने की लाख कोशिश गर्भवती महिलाएं व उनके परिजन कर लें, लेकिन, इन सब तथाकथित दलालों का गिरोह इन सेवाओं का लाभ उन्हें लेने नहीं दे रहे हैं। हालत यह है कि गेट पर ही संबंधित से उसके पर्चे दलालों द्वारा ले लिए जा रहे हैं और मरीज व परिजन को सरकारी सेवा में न जाकर प्राइवेट में जाने की सलाह देकर वहां से उठा ले जा रहे हैं।
इस खेल की भनक न सिविल सर्जन को लग पा रही है और न ही प्रशासन को। जबकि दलालों से निजात के लिए ही अस्पताल में सीसी टीवी कैमरे लगाए गए हैं। बावजूद इसके इसमें सफलता नहीं मिल रही है।

आए दिन होती है कहासुनी
अस्पताल परिसर में मरीज को इधर-उधर ले जाने के लिए वहां आए दिन कुछ महिलाएं आपस में ही भिड़ जाती हैं। गेट के सामने बकायदा मरीजों को निजी नर्सिंग होम का नाम बताया जाता है कि वहां ले जाइये वहां ठीक हो जाएगा। इसको लेकर अक्सर झगड़े तक की नौबत आ जाती है।
अस्पताल स्टाफ भी भूमिका संदिग्ध
माना जाता है कि अस्पताल में तैनात कर्मचारी ही इस खेल में शामिल हैं। कुछ चिकित्सक तो मरीज को देखते ही बिना किसी परीक्षण के ही सलाह दे देते हैं कि यहां इलाज नहीं हो पाएगा। यहां के चिकित्सक मरीज को तत्काल हायर सेंटर के नाम पर मेकाहारा रायपुर रेफर कर देने में माहिर हैं, रायपुर जाने की बात से घबराकर मरीज के परिजन दलाल के चंगुल में फंसकर निजी अस्पताल में पहुंच जाते हैं। जहां पीड़ित को 30 से 50 हजार रुपये तक की चपत लग जाती है।
इसी रेफर के खेल और कमीशन के चक्कर में जिला अस्पताल के द्वारा बालोद की एक कोविड गर्भवती महिला को रायपुर रेफर करके दलाल के हवाले कर दिया गया। दलाल के द्वारा गर्भवती महिला को अपने निजी एम्बुलेंस में बिठाकर मालवीय नगर के एक नॉन कोविड निजी नर्सिंग ले जाकर छोड़ दिया गया। जबकि गाईडलाईन के अनुसार कोविड मरीज की डिलीवरी नॉन कोविड हॉस्पिटल में नहीं कराई जा सकती है।
निजी नर्सिंग होम में 16 दिसम्बर की शाम को आनन फानन में कोविड गर्भवती महिला की डिलीवरी ऑपरेशन से करवा दिया गया और 24 घण्टे के पहले ही महिला को कोरोना संक्रमित होने की बात कहते हुए जच्चा बच्चा को डिस्चार्ज कर दिया गया।
निजी नर्सिंग होम के द्वारा महज कुछ घण्टे की भर्ती और ऑपरेशन के लिए महिला के परिजनों से 30000/- तक ले लिए गए।
जिला अस्पताल के बाहर निजी अस्पतालों के दलाल सक्रिय रहते हैं। अस्पताल द्वारा किसी भी मरीज को रिफर करने पर जानबूझकर 108 एम्बुलेंस को बुलाये जाने में विलम्ब किया जाता है, ताकि मरीज को निजी अस्पतालों की एम्बुलेंस में बिठाकर प्राइवेट नर्सिंग होम भेजा जा सके।