आखिरी ‘खुशी’ की मौत:छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा ने तोड़ा दम; टाइगर प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश में एकमात्र मादा बची थी, दो दिन से था बुखार
प्रदेश में लगातार कम होती वन भैंसों की संख्या को देखते हुए साल 2001 में इसे राजकीय पशु घोषित किया गया।
दिल्ली ले जाने चार्टर प्लेन पहुंचा, सुबह CM भूपेश भी जाएंगे; यहां ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का है विवाद, कांग्रेस विधायकों की दिल्ली में परेड
छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा के संवर्धन को जोर का झटका लगा है। प्रदेश की इकलौती मादा वन भैंसा ‘खुशी’ की गुरुवार तड़के मौत हो गई। उसे गरियाबंद के उदंति अभ्यारण्य में रखा गया था। टाइगर प्रोजेक्ट के तहत वन विभाग उसके प्रजनन के प्रयास में लगा था। बताया जा रहा है कि खुशी को दो दिन से बुखार था। डॉक्टरों की टीम उसका उपचार करती रही, लेकिन बचाया नहीं जा सका। सूचना मिलने पर अफसर भी मौके पर पहुंचे हैं।
प्रदेश में राजकीय पशु की संख्या बढ़ाने के लिए वन विभाग कई सालों से प्रयास कर रहा था। इसके लिए वैज्ञानिक पद्धति से खुशी के जरिए ब्रीडिंग की जा रही थी, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिल सकी थी। इससे पहले ही तड़के करीब 4 बजे मादा वन भैंसा खुशी की मौत हो गई। मौत की पुष्टि अभ्यारण्य के उपनिदेशक आयुष जैन ने की है।
आशा की एकलौती बची बेटी थी खुशी, क्लोन नहीं हुआ सक्सेस
खुशी की मां का नाम आशा था। वह पांचवीं संतान थी। उसके जरिए पशु वैज्ञानिक प्रदेश में वन भैंसों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयासरत थे। कुछ साल पहले करनाल के वैज्ञानिकों ने आशा का एक क्लोन भी तैयार किया था, जिसे आशादीप नाम दिया गया। इसे जंगल सफारी में रखा गया है। वह करीब 4 साल की हो चुकी है, लेकिन नस्ल से मुर्रा भैंस लगने लगी है। वैज्ञानिकों ने उसका DNA भी टेस्ट नहीं किया। अब इस मामले में शिकायत भी की गई है।
राज्य में 35 वन भैंसे होने का अनुमान, पर गिनती सिर्फ 13 की
वन विभाग के अनुमान के मुताबिक, प्रदेश में वन भैंसों की संख्या 25 से 35 तक हो सकती है। हालांकि जिनकी गणना संभव हो पाई है, उनमें सिर्फ 13 की संख्या का ही पता चल सका है। इसमें 10 वन भैंसे सीतानदी उदंती टाइगर रिजर्व में थे, अब एक की मौत हो गई। जबकि असम से लाए गए दो वन भैंसों को बारनवापारा में रखा गया है और क्लोन वन भैंसे को जंगल सफारी में जगह दी गई है। हालांकि नर भैंसे को छोड़कर अब कोई भी मूल नस्ल की मादा नहीं बची है।
साल 2001 में घोषित किया गया था राजकीय पशु
प्रदेश में लगातार कम होती वन भैंसों की संख्या को देखते हुए साल 2001 में इसे राजकीय पशु घोषित किया गया। उस समय प्रदेश में वनभैंसों की संख्या करीब 80 थी, लेकिन घटत-घटते सिमटती चली गई। 20वीं सदी के शुरुआत में वन भैंसा की प्रजाति अमरकंटक से लेकर बस्तर तक में बहुत अधिक संख्या में पाई जाती थी। वर्तमान में वनभैंसा प्रमुखत: दंतेवाड़ा जिले के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान और उदंती अभारण्य में ही रह गया है।