रायपुर (DNH):- आज पूरा देश कोरोना वायरस के महामारी से उबरने में लगा हुआ है, तभी सुपर साइक्लोन अम्फान का कहर टूट पड़ा। बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना यह मजबूत उष्णकटिबंधीय चक्रवात से पूर्वी भारत के साथ-साथ बांग्लादेश और श्रीलंका को भी अपने चपेट में ले लिया। इस तूफान में अब तक 103 जाने गई, जिसमें सबसे अधिक 79 लोग भारत के पश्चिम बंगाल से थे, शेष में से 20 लोग बांग्लादेश और 4 श्रीलंका से थे।
अम्फान के बाद अब हिका साइक्लोन गुजरात के आसपास मंडरा रहा है। जिस तरह अम्फान बंगाल की खाड़ी में पैदा हुआ था, उसी तरह हिका अरब सागर में पनपा है। अरब सागर के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बनते ही गुजरात के मछुआरों को चेतावनी दी गई कि वे कुछ दिन तक समुद्र में न जाएं। मौसम विभाग ने गुजरात के अलावा महाराष्ट्र के तटीय इलाकों को भी अलर्ट कर दिया गया है। मौसम विभाग का अनुमान है कि जमीन से टकराने के वक्त हिका चक्रवात की रफ्तार 120 किमी प्रति घंटे तक रह सकती है।
लॉकडाउन के चलते देश में काफी अफरातफरी मची हुई है। कुछेक राज्य सरकारों को छोड़, केंद्र और बाकी राज्य सरकार कोविड-19 के संकट विफल नजऱ आ रही है। ऐसे में अम्फान से परिस्थितियां और भी दुर्गम हो गई है। अभी हिका के वास्तविक स्वरूप और नाश-नुक्सान का अनुमान लगाना संभव नहीं है।
मौसम विभाग के द्वारा दी गई पूर्व चेतावनी के अनुसार यह अनुमान था कि अम्फान जब समुद्र तट से टकराएगा तब हवा की गति 155 से 165 किमी. प्रति घंटा की होगी। हकीकत में जब साइक्लोन पूर्वी मेदिनीपुर और उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिलों की तरफ बढ़ी, तब उसकी तीव्र रफ़्तार 185 कि.मी. प्रति घंटे की रही। लगभग दो दशकों के बाद ऐसा हुआ की बंगाल की खाड़ी में कोई सुपर साइक्लोन बना हो। आखिरी बार ऐसा सुपर साइक्लोन अक्टूबर 1999 में आया था, जिसकी चपेट में ओडिशा फसा। तब उस सुपर साइक्लोन से 10,000 से अधिक लोगों की जाने गई थी।
भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे में जलवायु वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत रॉक्सी मैथ्यू कोल्ल ने पहले से ही चेतावनी दी थी कि अम्फान की तीव्रता अनुमान से अधिक होगा। उनके अनुसार “हमारे शोध से पता चला है कि महासागरों के अधिक तापमान की वजह से उत्तर हिंद महासागर में चक्रवातों की गति बहुत तेज हो रही है। वर्तमान मामले में बंगाल की खाड़ी काफी अधिक गर्म रही है, जिसकी वजह से पहले एक चक्रवात और फिर बहुत कम समय में ही एक सुपर साइक्लोन आ रहा है।
ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में द क्लाइमेट इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर मार्क हॉउडेन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है, इसलिए बहुत अधिक शक्तिशाली सुपर साइक्लोन जैसे अम्फन का जोखिम बहुत होता है। उन्होंने सीएनए को बताया, भले ही हम हर चक्रवात के संदर्भ में प्रत्यक्ष न कह सके, लेकिन यह एक मुख्य कारक है कि जलवायु परिवर्तन चक्रवात की तीव्रता को बढ़ाती है।
हॉउडेन आगे बताते है, यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन, जो समुद्र की सतह के तापमान को बढ़ा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप चक्रवात की ताकत और तीव्र होती है। आजकल श्रेणी 3, 4 और 5 के चक्रवात अधिक संख्या में हो रहे हैं। यदि चक्रवातों के अनुपात को देखा जाए तो इन श्रेणियों के चक्रवात अधिक हैं। श्रेणी 4 या 5 का चक्रवात मानव जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा है। जब आप उन्हें इतनी तेजी से विकसित होते हुए देखते हैं, तो यह आपको तेजी से अर्जित किये जाने वाली ऊर्जा के बारे में कुछ बताता है। यह ऊर्जा जलवायु से जुड़ी है और यह भयानक है।
इक्कीसवीं सदी में मानवता के सामने बदलती हुई जलवायु का सर्वव्यापी प्रभाव सबसे बड़ी चुनौती है। प्राकृतिक व पारिस्थितिक तंत्रों और प्राकृतिक चक्रों में परिवर्तन जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाला है। इसमें सबसे बड़ा योगदान जीवाश्म कार्बन ईंधन अथवा फॉसिल फ्यूल्स (कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस) की भारी मात्रा में जलना है। विगत 150 वर्षों में मानव समाज ने जिस औद्योगिक विकास व समृद्धि के रास्ते को अपनाया, इसमें धरती के नीचे से खनिज, पेट्रोलियम, आदि का निकला जाना आज खतरनाक साबित हो रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु के बदलती वैश्विक परिदृश्य के पीछे दो कारण है। पहला औद्योगिक समाज की कई गतिविधियों की वजह से जैविक और गैर-नवीकरणीय (नॉन-रिन्यूएबल) संसाधनों का बड़े पैमाने पर विलुप्त होना। दूसरा व्यावसायिक हित की पूर्ति के लिए पारिस्थितिक व पर्यावरण को विनाश करने वाली अत्यंत उपभोक्तावादी विकास प्रणाली, जिसका सीधा दबाव जमीन पर पड़ा। इससे प्रदूषण में तीव्र वृद्धि हुई।
फॉसिल फ्यूल्स के जलने से दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ रहा है। यह जलवायु परिवर्तन के जोखिम को बढ़ाता है। यह भी स्पष्ट है कि जलवायु संरक्षण पहले से कहीं अधिक अब महत्वपूर्ण है। भारत में खनिज, वन और प्राकृतिक वनस्पतियों सहित बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन हैं। यहां पिछले तीन दशकों के दौरान औद्योगीकरण और उत्खनन में विस्फोटक वृद्धि हुई है। इसका परिणाम व्यापार, बाजार और पूंजीनिवेश में साफ दिखता है, और इसमें कई विकसित राष्ट्रों को पीछे छोड़ दिया है।
इसमें दो राय नहीं है कि हिका या अम्फान जैसे चक्रवाती तूफान में जलवायु परिवर्तन की अहम भूमिका है। जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक संकट उस आर्थिक प्रणाली से उत्पन्न होती है, जो व्यापक उत्पादन और खपत पर जोर देती है। जब विकास का मकसद पूंजी का एकत्रीकरण ही रह जाता है, तो विकास शोषण का साधन बन जाता है, असमानताओं को विस्तार करने का काम करती है और प्रकृति के प्रकोप को निमंत्रण देती है। विकास के इस नशे में इंसान पर्यावरण संकट, आजीविका की हानि, पारिस्थितिक की नाजुकता, सांस्कृतिक नुकसान, मौत की कीमत, ग्रीनहाउस प्रभाव, और यहां तक की पूरे पृथ्वी के विनाश को भी एक समस्या के रूप में नहीं मानता।
इसी विकास के लिए भारत के तमाम समुद्र तट से मैंग्रोव वनों को उजाडा गया था। मैंग्रोव तूफानी तरंगों की क्षति को कम करती है। मैंग्रोव के जंगल तूफ़ान की हवा और समुद्री लहरों की ऊंचाई और उससे पैदा होने वाली ऊर्जा को घटा देती है। कैम्ब्रिज विश्वविधालय और वेटलान्ड्स इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई गाइडलाइन्स के अनुसार सुपर साइक्लोन जैसे तूफान जब मैंग्रोव जंगलों की उलझी और 100 मीटर उचाई वाली जड़ व शाखाओं से टकराती है, तब तूफान की ऊर्जा 13 फीसदी से 66 फीसदी घट जाती है। इससे तूफान से होने वाली तबाही कम हो सकती है।
पृथ्वी की जलवायु जिस शक्ति से बदल रही है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इसे रोका जा सकते हैं। ग्रीनपीस जैसे संस्था का माने तो अभी भी कुछ उचित कदम अपनाकर इसे पूर्ववत स्वरूप में कर सकते हैं। इसके लिए दुनिया भर के सरकारों को मुनाफे से ज्यादा लोगों की, असमान आर्थिक विकास से ज्यादा टिकाऊ व्यवस्था की और फॉसिल फ्यूल्स के स्थान पर नवीकरणीय उर्जा को चुनने की जरूरत हैं। कोरोनो वायरस प्रकोप के बीच चक्रवात अम्फान या फिर हिका इस ओर इंगित करती है कि हमें सार्वजनिक और पृथ्वी के स्वास्थ्य में निवेश करने की आवश्यकता है।