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बांग्लादेश में भारत और पाकिस्तान से भी महंगा क्यों है सोना?

बांग्लादेश ज्वैलर्स एसोसिएशन यानी बीएजेयूएस के मुताबिक़, देश में सितंबर 2023 में 22 कैरेट सोने की कीमत पहली बार एक लाख टाका (बांग्लादेश की मुद्रा) तक पहुंच गई. अगले दो साल में यानी अक्टूबर 2025 में इसकी कीमत दो लाख टाका से अधिक हो गई

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हर देश में अलग-अलग सीमा शुल्क इसकी कीमत निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है. कई देश विदेशी मुद्रा भंडार और आयात लागत को संतुलित करने के लिए आधिकारिक तौर पर सोने के आयात को प्रोत्साहित नहीं करते हैं. हालांकि, उनके केंद्रीय बैंक आपातकालीन परिसंपत्ति के रूप में सोने को रिजर्व में रखते हैं.

सोने की कीमत सभी देशों में बढ़ रही है.

लेकिन भारत, पाकिस्तान और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में बांग्लादेश में इसकी कीमत ज्यादा बढ़ रही है.

पिछले दो साल के दौरान बांग्लादेश में गोल्ड की कीमत लगभग दोगुनी हो गई है.

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक़ पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय बाज़ार सोने की कीमत पहली बार 4,200 डॉलर प्रति औंस (31.10 ग्राम) तक पहुंच गई.

सिर्फ़ तीन साल पहले, 2022 की शुरुआत में, यह 2,000 डॉलर से नीचे थी.

2023 से गोल्ड की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं.

अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुताबिक़ बांग्लादेश में भी गोल्ड के दाम बढ़ रहे हैं.

बांग्लादेश ज्वैलर्स एसोसिएशन यानी बीएजेयूएस के मुताबिक़, देश में सितंबर 2023 में 22 कैरेट सोने की कीमत पहली बार एक लाख टाका (बांग्लादेश की मुद्रा) तक पहुंच गई.

अगले दो साल में यानी अक्टूबर 2025 में इसकी कीमत दो लाख टाका से अधिक हो गई.

गोल्ड इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि सोने की कीमतें ग्लोबल इकोनॉमी से जुड़ी होती हैं. यानी अगर युद्ध या आर्थिक मंदी आती है तो गोल्ड की कीमतों पर इसका असर पड़ता है.

और यही वजह है कि पहले कोरोना महामारी और फिर विश्व युद्ध जैसी स्थिति की वजह से पैदा आर्थिक अस्थिरता की वजह से सोने की कीमतें घटी नहीं हैं.

हालांकि लोग बांग्लादेश में पड़ोसी देशों की तुलना में गोल्ड की कीमतें अधिक होने के लिए डॉलर की तुलना में टाका के अवमूल्यन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. साथ ही उनका ये भी मानना है कि व्यापारियों की मुनाफ़ा कमाने की प्रवृत्ति से भी गोल्ड की कीमतें बढ़ रही हैं.

लेकिन ऐसा नहीं है कि कीमतें बढ़ने से सोने की मांग में बहुत ज्यादा कमी नहीं आई है.

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इमरजेंसी एसेट के तौर पर तमाम देशों के केंद्रीय बैंक और बड़े प्राइवेट इनवेस्टर अस्थिर हालात में सोने की ख़रीद बढ़ा देते हैं. इससे सोने का भंडार और बढ़ जाता है.

इससे दुनिया भर में गोल्ड की मांग और उपलब्धता के बीच असंतुलन पैदा हो जाता है.

हालांकि, उनका यह भी मानना है कि निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए सोना खरीदने का अवसर या रुझान कम हो रहा है.

सोने की कीमत क्यों बढ़ रही है?

कोरोना महामारी के बाद के हालात में सोने की कीमत काफ़ी बढ़ी है.

इमेज स्रोत,Getty Images

इमेज कैप्शन,विशेषज्ञों के मुताबिक़ कोरोना महामारी के बाद पैदा आर्थिक हालात में सोना एक सुरक्षित निवेश बन गया है.

भले ही गोल्ड की मांग बढ़ रही हो लेकिन ये भी ध्यान रहे कि इसके उत्पादन की एक सीमा है.

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक़ 2023 में दुनिया भर में 4,898 टन सोने की सप्लाई हुई थी. 2022 में 4751 टन सोने की सप्लाई हुई थी.

हालांकि, अलग-अलग वैश्विक वजहों से कई देशों के केंद्रीय बैंकों और बड़े निजी निवेशकों ने इस दौरान सोने में अपना निवेश ख़ासा बढ़ाया है.

2022 के अंत से, केंद्रीय बैंकों ने मिलकर हर साल 1,000 टन से अधिक सोना खरीदा है.

जो 2010 और 2021 के बीच औसतन 481 टन से अधिक है,

पिछले साल शीर्ष खरीदारों में पोलैंड, तुर्की, भारत, अज़रबैजान और चीन शामिल थे.

विश्लेषकों का मानना ​​है कि चूंकि यह एक फिजिकल एसेट है इसलिए युद्ध और आर्थिक मंदी जैसे वैश्विक हालात सोने की कीमतों को सीधे प्रभावित करते हैं.

उनका कहना है कि कोरोना महामारी के बाद से पैदा हुई वैश्विक आर्थिक मंदी में सोना एक सुरक्षित निवेश माध्यम बन गया है.

फिर रूस-यूक्रेन जैसी दुनिया में युद्ध की कई स्थितियों की वजह से भी अन्य क्षेत्रों की तुलना में सोने में निवेश बढ़ा है.

इससे पहले 2008-09 में सोने की कीमत में बहुत ज़्यादा बढ़ोतरी हुई थी.

वैश्विक वित्तीय संकट और अरब जगत में राजनीतिक अशांति समेत कई वजह से 2011 में सोने की कीमत लगभग दोगुनी होकर 1,917 डॉलर प्रति औंस हो गई. उस समय बांग्लादेश में इसकी कीमत 48,000 टाका थी.


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