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श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण मात्र से दूर होते हैं समस्त कष्ट: संत निरंजन महाराज

श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण मात्र से दूर होते हैं समस्त कष्ट: संत निरंजन महाराज

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उतई। पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू  धर्मपत्नी श्रीमती स्व.कमला देवी साहू की पुण्य स्मृति में आयोजित ग्राम पाऊवारा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा श्रोता गणों ने कथा का रसपान किया।
कथा वाचक संत निरंजन महाराज जी ने बताया की ईश्वर का ध्यान करते हुए जीवन की कर्तव्य कर्म को करना ही पूजा है। यशोदा माता के दधि मंथन का भाव देते हुए भगवान का ध्यान करना' साधक की स्थिति को दर्शाता है। अपने व्यहारिक कर्तब्य कर्म को करते हुए भगवान का ध्यान करते रहना ही साधक की अवस्था है। यशोदा का दधिमंथन मन वचन कर्म से पूजा  बन गयी। 
यशोदा साधक है दधि मंथन साधन है और बाल कृष्ण  साध्य है। जीव को मिले हुए साधन के माध्यम से परमात्मा तक पहुंचना होता है। श्री कृष्ण गोकुल से वृन्दावन जा बसे और बाल सखाओ के साथ गोचारण लीला किये पशुधन की रक्षा करते हुए खेल -खेल में असुरों को संहार किये। गोवर्धन लीला के माध्यम से पर्यावरण रक्षा का शंखनाद किये। मथुरा से गोकुल और गोकुल से वृन्दावन निवास कर गोप गोपियों के साथ प्रेम लीला किये। यमुना जब प्रदूषण दूर करने कालिया से संघर्ष कर यमुना को निर्मल किया।

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अपनी लीलाओं के माध्यम से भगवान, निरंतर जीवन को गतिशील रखने रखते हुए समग्र जीवन को महोत्सव बनाया। वृन्दावन में गोपियों के साथ रासलीला कर पूर्ण प्रेम का स्वरूप दिखाया। कंस के अत्याचार से मुक्त किये  इन सभी लीलाओ को भगवान हंसते गाते हुए सम्पूर्ण विश्व को आनन्द का संदेश दिया। जीव का अपने स्वरूप में स्थित होना ही रास है जीवात्मा का परमात्मा इसे मिलना ही रस रूप  ईश्वर से मिलना है प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति का अधिकार है,यदि जीवन  को आनन्दमय बनाना है तो भगवान कृष्ण के उन दिव्य लीलाओ का चिन्तन करें। भागवत में भगवान कृष्ण का स्वरूप इतना सहज और सरल बताया गया है कि उनके संग-संग रहने वाले गोपी ग्वाल भी यह नही समझ पाये कि कृष्ण लीलावतार भगवान है। यही हम सभी मनुष्य की दशा है साथ- साथ रहने वाले ईश्वर को भूलकर कर अपने द्वारा रचित संसार में सुख ढूंढते है। भगवान मनुष्य को प्रत्येक परिस्थियों में प्रसन्न रहकर जीने का संदेश देते हैं।

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रुख्मिणी श्रीकृष्ण मंगल में श्रोता झूम उठे...
रुख्मिणी मंगल के प्रसंग पर महाराज जी सार भाव देते हुए बतायें कि यह शरीर ही रूक आत्मा मठिन है इसी शरीर मे आतम न्चिन्तन करते हुए आत्मा कृष्ण का अनुभव कर सकता है। 
भगवान के गुण, रूप लीला' को सत्संग के माध्यम से सुनकर रुखमनी अपना जीवन बचपन से ही श्रीकृष्ण जी को समर्पित कर दी। जरासन्ध आदि असुरो की पराजित कर स्वयं भगवान रुख्मिणी का हरण किये और समुद्र मे द्धारिका बसाकर  संसार में गृहस्थ जीवन को सुखी से बनाने का उपाय बताये।
इस अवसर पर पूर्व मंत्री रमशीला साहू, पूर्व विधायक डॉ दयाराम साहू,पूर्व अध्यक्ष जिला सहकारी समिति दुर्ग राजेन्द्र साहू, दुर्ग लोकसभा सांसद की पत्नी रजनी बघेल, जिला पंचायत सदस्य नीशू चन्द्रकार, खेद राम साहू,जिला पंचायत सदस्य शशि प्रभा गायकवाड़, पूर्व महापौर शंकर लाल ताम्रकार, तहसील पाटन साहू संघ ललेश्वर साहू, पूर्व मंडी अध्यक्ष अश्वनी साहू,दिव्या कलिहारी, जिला अध्यक्ष दुर्ग शहर धीरज बाकलीवाल, नीलू ठाकुर, पूर्व सरपंच राजश्री चन्द्रकार, मंजु यदु, रेखा चतुर्वेदी, ललेश्वरी साहू, जगदीश दीपक साहू, दिलीप साहू, रोशन साहू, गोवर्धन बारले, विकास चन्द्रकार, चुन्नीलाल चन्द्रकार सहित सैकड़ो की संख्या में भागवत कथा में शामिल हुये।


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