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संसार ही समुद्र है और इसमें हमेशा कर्म का मंथन होता है : भरत जी महाराज

संसार ही समुद्र है और इसमें हमेशा कर्म का मंथन होता है : भरत जी महाराज

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-हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल के' नारों से पूरा पांडाल गूंज उठा
दुर्ग। 
स्थानीय किल्ला मंदिर तमेरपारा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस में चित्रकूट से पधारे भरत जी महाराज ने समुद्र मंथन की सुंदर कथा सुनाई उन्होंने कहा यह संसार ही समुद्र है और इसमें हमेशा कर्म का मंथन होता है करने वाले देवता और दैत्य प्रवृत्तियों के लोग होते हैं। कर्म का मंथन करने पर सबसे पहले असफलता का विष प्राप्त होता है लेकिन जो उसमें अडिग रहा तो अंत में उसकी सफलता का अमृत भी मिलता है, समुद्र से निकले हुई अनेक रत्न की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा सब कुछ संसार में उपलब्ध है,

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लक्ष्मी भी उसी को प्राप्त होती है जो उद्योग करता है अर्थात कर्मशील होता है भरत जी महाराज ने राजा बलि की कथा सुनाते हुए कहा की जीव को ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित होना चाहिए तभी भगवान उसके रक्षक यानी चौकीदार बनते हैं। भक्ति मय भजनों में झूमते हुए श्रोताओं को उन्होंने कृष्ण जन्म की बड़ी ही सारस और मार्मिक कथा सुनाई। जब वसुदेव और देवकी अर्थात जीव और सद्बुद्धि का मिलन होता है तो फिर भगवान का प्राकट्य होता है लेकिन उस को भी कंस जैसा अहंकार नष्ट करने का प्रयास करता है। भगवान आते तो मथुरा में है लेकिन कंस रूपी अहंकार का राज्य होने के कारण छोड़कर गोकुल चले जाते हैं, कृष्ण जन्म का आनंद समस्त श्रद्धालु गणों ने लिया, सुंदर झांकियां का भी दर्शन सभी लोगों को हुआ। 

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शबरी मानस मंडली के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में सभी तमेरपारा वासियों का भरपूर सहयोग प्राप्त हो रहा है भारी संख्या में दुर्ग शहर से श्रोता उपस्थित होकर कथा का आनंद ले रहे हैं। कथा के अंत में 'हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल के' नारों से पूरा पांडाल गूंज उठा। सभी लोगों ने उल्लास के साथ नाचते गाते हुए कृष्ण जन्म का आनंद लिया। आज भगवान के बाल चरित्रों का वर्णन होगा जिसमें पूतना वध, तृणावर्त उद्धार कालिय दमन और गोवर्धन पूजा की कथा होगी छप्पन भोग का आयोजन होगा।


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