दुर्ग – छत्तीसगढ़ के भीतर सक्रिय है मवेशी तस्कर ? जो गौ तस्करी से लेकर वन जीवो का वर्षो से कर रहे है तस्करी ? वन क्षेत्रों के साथ – साथ , दुर्ग , भिलाई , रायपुर , सहित अन्य शहरी क्षेत्रों में सक्रिय है तस्कर ? जिला अधिकारियों के सांठ – गांठ के बिना कुछ भी संभव नहीं है , इस सच्चाई को स्वीकार करे सरकार ? गांव के कोटवार से लेकर थानेदार तक के करते है सहयोग तस्करो को ? इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि , बिलासपुर – रायपुर – महासमुंद सहित अन्य शहरों के मुस्तैद व्यापारियों , महाराष्ट्र , यू पी , तक पहुंचाकर दे रहे है मवेशियों को ? अकेले दुर्ग जिला सहित आस पास के गांवों के कई प्रमुख मवेशी बाजार , तस्करो की तस्करी के कारण , खो चुके है , अपना आस्तित्व और बंद हो चुके है बाजार ? तस्करो की तस्करी और प्रशासन की तस्करो के मिलीभगत को कुरेदती हुई सच्चाई – देवेन्द्र कुमार बघेल की कलम से , एक पूरी विस्तृत रिपोर्ट – – –
१९ – ५ २०२० दिन मंगलवार को अल सुबह खबर मिली की , एक ट्रक में , क्रमांक एम एच १४ जी एम १५६१ में लगभग २० मवेशियों को भरकर , देवरी महाराष्ट्र की ओर ले जाया जा रहा है , इस सूचना को पाते ही , दुर्ग बजरंग दल के सदस्य सक्रिय हो गए , सदस्यों ने ट्रक का पीछा किया और उसे बाफना टोल प्लाजा के पास पकड़ लिया गया , लेकिन दो तस्कर भागने में कामयाब हो गए ? मोहननगर दुर्ग थानाप्रभारी को सूचना दी गई , जब ट्रक को देखा गया तो उसने लगभग २० मवेशी भरे हुए थे , जिन्हें उतार कर , छातागढ़ के गौशाला में ले जाया गया और वहां तुरन्त सबसे पहले खाने की व्यवस्था की गई , तत्पश्चात सभी मवेशियों का इलाज किया गया , अब इस पूरे मामले की जांच करे , तो कई ऐसी बाते सामने आती है , जो सीधे तौर पर प्रशासनिक अधिकारियों के सांठ – गांठ को उजागर करती है और यही सच्चाई भी है ? ट्रक कई थाना और थानाक्षेत्रों को पार करती हुई दुर्ग की सीमा तक पहुंची थी ? ट्रक का नम्बर फर्जी था ? जो अक्सर रहता है ? मुख्य तस्कर कभी भी ट्रक के साथ नहीं होता ? वो हमेशा ट्रक के आगे – पीछे अन्य वाहनों से गाड़ी पर और रास्ते पर नजर रखे रहता है ? यदि सांठ गांठ का समय आता है , तभी वह सामने आता है , वर्ना हजारों रुपए ड्रायवर के साथ में बैठे व्यक्ति के पास होता है ? ट्रक टोल प्लाजा भी पार कर दुर्ग पहुंचा था ? कई थाना मुख्य मार्ग पर ही है , जवान हमेशा सड़को पर ही रहते है ? मिलीभगत के बदौलत ही ट्रक अन्य राज्यो तक पहुंचती है ? वर्ना संभव नहीं की , एक सायकल भी , नजरे बचाकर निकल जाय ?
वर्षो से हो रही है , बिना खौफ के तस्करी ?
शर्म आती है तब छत्तीसगढ़ सहित पूरे हिन्दुस्तान में गौ वंश की तस्करी हो रही हो , वो भी खुलेआम ? तस्करी क्यों होती है , आज देश की सरकार और नागरिक , सब जानते है ? हंसते हैं वो लोग , जब गाय हमारी माता है , कहकर नारा लगाते है और इसी नारा पर , यह भी ताना मारा जाता है कि , तुम तो अपनी मां को ही बेच देते हो मरने के लिए ? ये एक कड़वी सच्चाई है , ऐसी स्थिति में गौ वंश की तस्करी की रोकथाम पूरे हिन्दुस्तान में होना चाहिए , क्योंकि , जब गाय हमारी माता है , तो क्यों हम , हमारी माता को चंद पैसे के लालच में बेचकर , उसे मरने दे , इस गैरकानूनी कारोबार के कारण , आज छत्तीसगढ़ सहित पूरे हिन्दुस्तान में गौ वंश में भारी कमी आई है , आज प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल , इस कारोबार को रोकने और गौ वंश की रक्षा कर , उत्पत्ति को बढ़ाने के लिए , पूरे प्रदेश के भीतर गौ शाला का निर्माण कर गौ रक्षक पदस्थ किए गए है , यह योजना प्रदेश गांव – गांव में संचालित हो रही है , सरकार का मूल उद्देश्य यही है , इनका पालन कर , इनसे प्राप्त चीजों का इस्तेमाल कर फायदा उठाया जाए , देश की सर्वोच्च अदालत भी स्वीकार कर चुकी है कि , गौ माता संपूर्ण रूप से एक मेडिकल हास्पिटल है , जिसकी एक एक छोड़ी गई चीज पूर्ण रूप से दवाई है , जबकि हमारे सभी ग्रंथ , ये स्वीकारते है कि , हिन्दू धर्म के ३३ करोड़ देवी देवताओं का वास गाय में होता है , तो क्यों ना छत्तीसगढ़ के भीतर हो रही गौ माता की तस्करी को , सच में हमारी माता है कहकर , शपथ बद्ध होकर रोके और मुख्यमंत्री के जनहित योजना को आगे बढ़ाने में सहायक बने ।
कई मवेशी बाजार बंद हो गए और छत्तीसगढ़ के भीतर तस्कर सक्रिय हो गए ?
एक समय था अकेले दुर्ग जिले के भीतर , मवेशियों का बाजार , जिले के कई गांवों में लगता था , जिनमें से प्रमुख उतई का बाजार था , इसके बाद खेरथा बाजार और करही भदर का नाम आता था , लेकिन आज ये सभी बाजार , अपना आस्तित्व खो चुके हैं , कारण था तस्करो की सक्रियता , जो ऊंची कीमत पर मवेशी को खरीद लेते थे और आगे उससे भी ऊंची कीमत पर बेच देते थे ? परिणाम यह हुआ कि , जो मूल व्यापारी थे , उन्हें नुक़सान होने लगा और कारोबार भी धीरे धीरे ख़त्म होने लगा , किसानों के पास अन्य संसाधन उपलब्ध होने लगे , बाहर से आने वाले व्यापारी भी मंहगाई को देखकर आना बंद कर दिया और इसी बात का फायदा तस्कर उठाने लगे , जो ग्रामीण क्षेत्रों के मवेशियों के साथ साथ , वन जीवो और उनके अंगों की तस्करी लगे , कुछ दिनों बाद तस्करो ने , अपने कारोबार को पूरे छत्तीसगढ़ के भीतर फैला दिया और फिर प्रशासनिक अधिकारियों के संरक्षण में , तस्करी का कारोबार खुलेआम – खुलकर होने लगा , जो आज तक बेखौफ हो रहा है ? अधिकारियों की मिलीभगत पर दावा करते हुए , एक प्रेस के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ननकी राम कंवर ने कहा था कि , बिना अधिकारियों के सांठ गांठ के बिना कोई भी व्यक्ति , जंगल से एक दातुन भी नहीं चुरा सकता ? सब कुछ अधिकारियों की मिलीभगत और संरक्षण में होता है ? तब ननकी राम कंवर भा जा पा शासन काल में वन मंत्री पद पर पदस्थ थे तस्करो की वर्षो से सक्रियता का अंदाजा , उनके पूर्व में किए गए कारनामों को देखकर और उसका अवलोकन कर लगाया जा सकता है कि , वे अपनी जड़े कहां तक फैला चुके है , जमा चुके है , सच ये भी है कि , तस्करो की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन कुकुरमुत्तों की तरह हर बार नए रूप में सामने आए , आओ देखे तस्करो के पूर्व गैर कानूनी कारोबार के जड़ो को कहां तक गई हैं ?