गरियाबंद (DNH) :- क्राइम ब्रांच की टीम ने छत्तीसगढ़ के गरियाबंद से दो वन्य जीव तस्करों को गिरफ्तार कर उनके पास से भारी मात्रा में वन्य जीवों के अंग बरामद किए हैं। दोनों तस्करों को उदंती सीतानदी के पास से पकड़ा गया है। पूछताछ में आरोपियों ने वन्यजीव अंगों को बेचने की बात स्वीकार की है। जानकारी के मुताबिक उदंती सीतानदी के पास आज दो वन्य जीव तस्कर पकडे गए हैं। बताया जा रहा है कि इनके पास से बड़ी मात्रा में वन्यजीवों की खाल प्राप्त हुई है। जिनमें बाघ के माथे की हड्डी बाघ की मूंछ हिरण के सींग मयूर की खाल और पंख साही के कांटे खरगोश और बाघ को पकड़ने का फंदा समेत तीर धनुष शामिल है। दरअसल 15 फरवरी को क्राइम ब्रांच ने बाघ की खाल के साथ दो तस्करों को पकड़ा था जिनसे पूछताछ में उन्होंने कुकरार गांव के अपने दो रिश्तेदारों के नाम बताए थे। जिसके बाद गुरुवार को तलाशी वारंट लेकर वन विभाग की टीम कुकरार गांव पहुंची। वहां टीम के द्वारा चलाए गए तलाशी अभियान में वन्यजीवों के कई अवशेष मिले हैं। मामले में दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। जिनमें से एक को जेल भेज दिया गया। वहीं दूसरे से पूछताछ जारी है माना जा रहा है कि इन तस्करों ने मिलकर कई बार वन्यजीवों को शिकार बनाया है और उनके अंगों को बेचने के लिए अपने पास रखा था। उदंती अभयारण्य के एसडीओ ध्रुव का कहना है कि फरवरी में मिली बाघ की खाल और अभी मिली हड्डियों को डीएनए मिलान करवाने हेतु दिल्ली अथवा देहरादून भेजा जाएगा रिपोर्ट आने के बाद ही कहा जा सकेगा कि यह उसी बाघ के शरीर के अंग है वैसे इस बात की पूरी आशंका है की यह उसी बाघ के अंग हो।
जगदलपुर – कोंडागांव वन क्षेत्र में तस्कर है बेखौफ , कर रहे है , वन जीवो के अंगो कि तस्करी ?
कोंडागांव:- छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में अंतर राज्यीयवन्यजीव तस्कर गिरोह के हाथ से दुर्लभ वन्य जीव पैंगोलिन जप्त किया गया है। विभागीय अधिकारियों व वाइल्डलाइफ की टीम ने गोपनीय सूचना के आधार पर तस्करों से बीजापुर के जंगलों से आरोपियों को धर दबोचा। तस्करों से दो जिंदा पेंगुलिन जब्त किए गए थे। वन विभाग की टीम ने कई तस्करों को पकड़ा था और रेस्ट हाउस में पूछताछ के नाम पर 3 दिनों तक रखा। चौथे दिन एक पैंगोलिन की मौत के बाद यह मामला सामने आया। पूछताछ में तस्करों ने बताया कि किसी व्यक्ति से इन पेंगोलिन के विक्रय के लिए 22 लाख रुपये में डील तय हुई थी। अधिकारियों ने इसे विभाग का गोपनीय मामला बताया। संबंधित अधिकारी-कर्मचारी पैंगोलिन को लेकर मीडिया में जानकारी देने से बचते रहे। बाहर तस्करी में प्रयुक्त सफेद कलर की कार क्रमांक ओडी 2 एक्स 3648 तथा पैंगोलिन को खिलाने के लिए दीमक की बांबी कार्टून में रखी थी। विभागीय अधिकारियों ने तीन दिन बाद आनन-फानन में तीन आरोपियों विष्णुपद मंडल पिता सचित चंद्र मंडल उम्र 34 वर्ष निवासी उमरकोट ओडिशा, गोपाल मंडल पिता विधान मंडल 34 वर्ष निवासी सरगुली, जिला नौरंगपुर ओडिशा, जयदेव पिता मेघनाथ उम्र 48 कचारपारा जिला नवरंगपुर ओडिशा को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9/51, 49 /51,43/51,48/51,52/52 के तहत न्यायिक रिमांड पर जेल भेजा गया । पैंगोलिन, फोलीडाटा गण का स्तनधारी प्राणी है। इसके शरीर में कैरोटीन के शल्क बनी होती है। जिससे यह अन्य प्राणियों से अपनी रक्षा करती है। फोलीडाटा गण का शल्क वाला अकेला अकेला स्तनधारी प्राणी है, जिसके मुख्य आहार चींटी और दीमक हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसके अंगों की कीमत लाखों में है। कोंडागांव में जब्त किए गए पैंगोलिन का प्रति किलो एक लाख की दर से विक्रेय तय हुआ था। मृत पेंगोलीन नौ किलो व जीवित 13 किलो का है। डिल 22 लाख में तय हुई थी।
जिले में बढ़ रहा वन्य जीवों के शिकार और तस्करी का मामला, वन विभाग अधिकारीयों को भनक तक नहीं ।
कवर्धा :- जिले में वन विभाग की लापरवाही व अनदेखी के कारण अब वन्य प्राणी भी सुरक्षित नहीं है। वनों में वन्य प्राणीयों की सामान्य मौत के अलावा शिकार से भी इनकी संख्या कम होती जा रही है, जिसे रोक पाने में वन अमला नाकाम साबित हो चुका है।जिले में नौ वन परिक्षेत्र है। साथ ही एक भोरमदेव अभयारण्य भी है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से कबीरधाम के वन जुडे हुएं हैं, इसके कारण यहां वन्य प्राणियों की संख्या अधिक है। वहीं वन्य प्राणी भोरमेदव के जंगल को अपना सुरक्षित स्थान भी मानते हैं। इसके कारण वन्य जीव की संख्या अधिक होती है, लेकिन इन वन्य जीवों की सुरक्षा करने में वन अमला नाकाम साबित हो रहा है। इसके कारण शिकारियों के जंगुल में फंस जाते हैं। शिकारी खाने के लिए हिरण प्रजाति के कोटरी का भी शिकार कर रहे हैं, लेकिन इसकी भनक तक वन विभाग के अधिकारियों को नहीं लग पाती। छुटपुट शिकारियों पर कार्यवाई कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। कुछ दिन पहले ही लोहारा वन परिक्षेत्र में कोटरी के गोस को खाने की तैयारी थी। जिसे वाइल्ड लाईफ की टीम ने पकड़ा था, लेकिन जिले के वन अधिकारीयों को इसकी भनक तक नहीं लग पाती है।
दो साल में 8 प्रकरण , क्या वन्य जीवो की मौत और तस्करी की जानकारी अधिकारियों को नहीं होती ?
वर्ष 2011 से वन्यजीवों के शिकार की संख्या बढ़ती गई। वर्ष 2016 में 3 व वर्ष 2017 में 5 वन्य प्राणीयों के शिकार होने का प्रकरण वन विभाग ने तैयार किया । शिकार मुख्य रूप से जानवरों के खाल, दांत, नाखून, बाल सहित अन्य अंगों के लिए करते हैं, ताकि इसे मोटे दाम पर बेचा जा सके। इसके अलावा शाकाहर जानवरों का शिकार खाने के लिए किया जाता है। वन क्षेत्र में बड़ी संख्या में वन्य जीवों की मौत हो रही है, जिसकी जानकारी वन विभाग के अधिकारीयों तक को नहीं होती। इनके आंकड़ों से कहीं अधिक वन प्राणीयों की मौत शिकार के लिए हो जाती है। गर्मी के दिनों में शहर की ओर आने से ही वन्य जीव की मौत हो जाती है। वहीं कुछ शिकारी खेत व जंगल में करंट फैलाकर भी शिकार कर रहे हैं। जिसकी भी एकाद कार्यवाई कर विभाग अपने जिम्मेदारी से मुंह फेर लेता है। कवर्धा के एसडीओ भोरमदेव अभयारण्य के एके मिश्रा ने कहा जिले में शिकार बहुत कम होते हैं। केवल कोटरी का शिकार खाने के लिए करते हैं। कुछ आरोपी भी पकड़ाएं हैं। अधिकतर वन्य जीव शहर की ओर आ जाते हैं। इसी दौरान किसी घटना में ही उनकी मौत होती है। अधिकारी लगातर इस ओर ध्यान रखे हुए हैं।