*दुर्ग* (DNH) – कोरोना महामारी के कारण , आज देश की अर्थ व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ गई है , इस समस्या से केंद्र और राज्य सरकार , दोनों जूझ रहीं है , सरकार इस विकट परिस्थिति में , आर्थिक स्थिति का सामना और समाधान कैसे कर रही है , इस सच्चाई को सरकार ही अच्छी तरह से जानती है , एक तरफ जहां सरकार , महामारी का सामना कर देश और देशवासियों को बचाने में जुटी हुई है , तो वहीं देश की आर्थिक व्यवस्था को पुनः जीवित करने में भिड़ी हुई है , एक तरह से केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा , दमदारी के साथ , यही प्रयास किया जा रहा है कि , देश की जनता के सामने किसी भी प्रकार की , कोई समस्या ना हो ? हर संभव मदद करने और देने की कोशिश , सरकारों के द्वारा की जा रही है , देश अपना है , समस्या अपनी है , इसका निराकरण भी , हमें ही करना है , और यदि निराकरण कर नहीं सकते है , तो सरकार की मुसीबतों को बढ़ाने का अधिकार भी , हमें नहीं है , यह संकट का समय , कोई आमंत्रित करके ना तो सरकार ने बुलाया है और ना ही लोगो ने ? बिन बुलाए इस महामारी से पूरी दुनिया पीड़ित और प्रताड़ित हो चुकी है , देश पर आईं आपदा सिर्फ देश की नहीं है , और वर्तमान समय में इसका इलाज भी सरकार के पास भी संभव नहीं है , ऐसे में हमें ही , एक जुट होकर , इस महामारी से , अपने दम पर लड़ना है और अपने , आपको सहित अपने परिवार के साथ – साथ , पड़ोसियों तक को इस महामारी से बचाना है , इसलिए देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने , अपने संबोधन में साफ साफ कहा था कि , हमें आत्मनिर्भर बनना है , किसी भी कार्य के लिए , किसी पर आश्रित नहीं होना है , जो कुछ भी करना है , स्वयं को , अपने बलबूते पर करना है ? ये अब अपने ऊपर निर्भर करता है कि , महामारी के इस दौर में परिस्थितियों का सामना और नियमो का पालन करते हुए , कैसे जीना है ? नारा लगाते समय बड़े जोर शोर के साथ कहते है कि , देश हमारा है , हम देश के साथ है ? तो क्या ये समझ लिया जाए कि , नारा सिर्फ नारा था , जब सब लोगो ने कहा तो , भेड़िया दल की तरह , हमने भी कह दिया ? ऐसी सोच बेहद शर्मनाक है , जिसका आत्मविश्वास ही कमजोर हो , वो इस महामारी के दौर को कैसे पराजित कर सकता है , फिर ऐसे लोगो को देश को अपना कहने का कोई अधिकार नहीं ? आज पूरा देश भूख से व्याकुल है ? फिलहाल वो अपने भूख को मिटाने के ही जुगत में है ? देश और देशवासियों के प्रति जिम्मेदारी और समर्पण से , उसका कोई सरोकार नहीं है , लेकिन आज देश के भीतर कई ऐसे लोग भी है , जो देश को और देशवासियों को अपना मानकर , सब कुछ दान कर दिए हैं और कर भी रहे है , भिखारी से लेकर राजा तक , देश को बचाने में जुटे हुए है , रोज देश और देशवासियों के सामने नई – नई मिसाल और कहानियां सामने अा रही है और देखने को मिल रही है , जो अन्न और धन दान नहीं कर पा रहा है , वो अपना मेहनत दान कर रहा है , लोगो की सेवा कर , आज पूरा देश एक जुट है , इस महामारी के दौर में , यदि चीन हमला भी कर दे , तो मुझे विश्वास है कि , चीन पहले ही दौर में हार जाएगा , क्योंकि , देश के भीतर एकजुटता ही ऐसी दिखाई दे रही है , हमें यह अंहकार कभी भी नहीं पालन चाहिए कि , हमारे हाथो में , किसी को पालने और बचाने की ताकत है , हम है तो पूरा संसार है , हमारे सिवाय कोई कुछ नहीं कर सकता ? इस अंहकार की आग में देश नहीं जलेगा , जलेगा अंहकारी ? रावण और कंस की जीवनी की कल्पना करके देख सकते है , आज देश को हमारी आवश्यकता है , जैसे भी हो देश और देशवासियों की मदद करे , तभी इस महामरी से मुकाबला कर छुटकारा पाया जा सकता है , सच्चाई ये भी है कि , पैसों के बिना कुछ भी नहीं हो सकता ? भूख मिटाने के लिए पैसों की ही आवश्यकता होती है , लोग काम भी इसलिए करते है ? आज सच्चाई यह भी है कि , पूरे देश के भीतर करोड़ों लोगो की तनख्वाह रोकी गई है ? लेकिन वो देर सबेरे मिल ही जाएगा ? लेकिन इस महामारी के संकट में , नौकरी से इस्तीफा दे देना ? दलाली कर लोगो की जान को खतरे में डालकर धन कामना ? चोरी लूटपाट करना ? ये ना तो देशहित में है और ना ही जनहित में ? जबकि खुद के हित में तो है ही नहीं ? इस्तीफा देने वालो को , सरकार के , उस एहसान को याद कर लेना चाहिए कि , तुम्हे नौकरी देकर , तुम्हारा और तुम्हारे परिवार के पालन पोषण की , जिम्मेदारी पूरी जिंदगी भर के लिए , ले ली है , सिर्फ एक आवेदन के बलबूते पर ? जब देश और देश की सरकार , तुम्हारे संकट में , तुम्हे नौकरी देकर ,तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की जान बचाकर , तुम्हे संकट से उबारा और तुम्हे सम्मान दिया ? लेकिन जब देश पर संकट आया , तो अपनी जिम्मेदारी से भागकर , मानवता को नकारते हुए , इस्तीफा देकर कोई मानव धर्म नहीं निभाया गया है ? महामारी के इस भयानक संकट की घड़ी , जब लोग बेहिसाब – बेमौत मर रहे है , तब छत्तीसगढ़ के भीतर डाक्टरों के द्वारा , सामूहिक रूप से इस्तीफा दिया जा रहा है कि , दो माह से वेतन नहीं मिला है ? इनसे तो बेहतर मजदूर और गरीब वर्ग है , जो लॉक डाउन के तीन महीनों को फांके में गुजार दिए ? इनसे तो बेहतर वो है , जो अपने जिंदगी भरके भीख में मिले चीजों को मानवता के नाम पर दान कर दिया ? वो बाप इनसे अच्छा है , जो अपनी बेटी की शादी के लिए , इकठ्ठा कर रखे हुए पैसों से लोगो को , आज भी खाना खिला रहा है , रायपुर की वो छात्रा सोनी चौहान अच्छी है , जो सिर्फ मानवता का फर्ज पूरा करने के लिए , सघन कोरोना काल में निशुल्क , ३ से ४ घंटे , मजदूरों का बोझ उठाकर सेवा कर रही थी ? बिलासपुर की सुख मती बाईं ने , अपनी जिंदगी भर की कमाई को दान कर मानव धर्म को पूरा किया , ऐसे हजारों उदाहरण है , जो आज देश की शान बन चुके है और ऐसे लोगो को देश और देशवासि खुले मन से प्रणाम और सलाम करते है , जो अपनी जिम्मेदारी और धर्म को मानवता को समर्पित कर रहे है ?
*हावड़ा के युवक की रायपुर में मौत ?*
रायपुर के टाटीबंध में एक मज़दूर की मौत हो गई। इसका नाम हिफजुल रहमान (29) था। ईद के दिन मुंबई से बस में बैठकर हावड़ा के लिए निकला था। छत्तीसगढ़ की सीमा पर बस बदलकर रायपुर पहुंचा था। 44-45 डिग्री पारा में बस के इस सफर ने उसकी ताकत इतनी छीन ली, कि जब वो रायपुर पहुंचा, तो सड़क के किनारे पहले बैठ गया, फिर सिर को पकड़ा और फिर लेट गया। इसके बाद उठ ही नहीं सका। इस दौरान अपने साथियों से बार-बार कहता रहा, भाई, घर कब पहुंचेंगे। अब उसके साथी उसकी लाश की खबर घर पहुंचाएंगे। लोगों ने देखकर उफ्फ…किया, प्रशासन अलर्ट हुआ, उसके साथ के लोगों को खाना-पानी मिल गया। ये सब 2 घंटे तक चला, फिर सब चले गए। खबर चली कि एक मजदूर की मौत हो गई।
*पिता दूध ढूंढता रहा , और बच्चे की मृत्यु हो गई ?*
लॉकडाउन के दौरान दूसरे प्रदेशों से प्रवासियों की वापसी के बीच बिहार के मुजफ्फरपुर जंक्शन पर एक दर्दनाक हादसा हो गया। दिल्ली से लौटा एक पिता अपने चार साल के भूखे बेटे के लिए दूध ढ़ूंढ़ता रहा, इस बीच उसकी मौत हो गई। घटना के बाद मृत बच्चे के स्वजनों ने जमकर बाल काटा। स्वजनों ने स्टेशन पर बदइंतजामी का आरोप लगाया। उधर, मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन ने बच्चे की मौत का कारण बीमारी बताया। पश्चिमी चंपारण जिले के लौरिया थाने के लंगड़ी निवासी मो. पिंटू के पुत्र मो. इरशाद की मौत मुजफ्फरपुर जंक्शन के प्लेटफॉर्म संख्या एक पर बीेते दिन हुई। उसकी मौत से नाराज स्वजनों ने वहां जमकर हंगामा किया। स्वजन बच्चे की मौत के लिए बदहाल व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराते हुए घर वापसी के लिए वाहन की मांग कर रहे थे। मौके पर तैनात रेलवे के अधिकारी और डीटीओ रजनीश लाल स्वजनों को शांत करने की कोशिश की। डीटीओ की पहल पर प्लेटफॉर्म पर एंबुलेस लाई गई, लेकिन इसके बाद स्वजन मुआवजे की मांग को लेकर अड़ गए। सूचना मिलते ही एडीएम राजेश कुमार और एडीएम आपदा अतुल कुमार वर्मा ने मौके पर पहुंच स्वजनों से बात कर मुआवजे का आश्वासन दिया। लेकिन, स्वजन बतौर मुआवजा नकदी की मांग पर अड़े रहे। बाद में रेल पुलिस ने बयान दर्ज कर स्वजनों को उनके जिले के लिए रवाना किया। जबकि, एडीएम आपदा ने सरकारी प्रावधान के अनुसार मुआवजा का आश्वासन दिया।
*पिता बोले: भूखे बेटे के लिए नहीं दिया दूध ?*
मृत बच्चे के पिता मो. पिंटू ने बताया कि वे अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ दिल्ली के रमा बिहार में पेंट कंपनी में काम करते थे। लॉकडाउन के चलते फंस गए थे। उन्होंने दिल्ली में अपना सारा सामान बेच मकान खाली कर दिया। चार बच्चों समेत 12 लोग दिल्ली से सीतामढ़ी जाने वाली ट्रेन से 10.30 बजे सुबह मुजफ्फरपुर जंक्शन पर उतरे। इसके बाद उन्हें न तो बस मिली और न हीं ट्रेन। वे भूखे बच्चे के लिए दूध की तलाश करते रहे, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। बेटे की मौत के बाद मां जेबा खातून बदहवास दिखी। वह बार-बार बेहोश हो रही थी। जबकि, जेबा की बहन सोनी खातून अपने तीन माह के बच्चे को गर्मी से बचाने का प्रयास कर रही थी। इस संबंध
में मुजफ्फरपुर के जिला सूचना व जनसंपर्क पदाधिकारी कमल सिंह ने बताया कि पश्चिमी चंपारण के बच्चे की मौत बीमारी से हुई है। शव और स्वजनों को एंबुलेंस के जरिये घर भेज दिया गया है।
*मृत मां के कफन के साथ मासूम बेटे के खेलने का मामला तूल पकड़ा, पटना हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान ?*
पटना हाईकोर्ट ने चार दिन पहले मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर 25 मई को एक मृत महिला संबंधी वाकये को गंभीरता से लेते हुए इसका स्वत: संज्ञान लिया है। पटना हाईकोर्ट यह जानना चाहता है कि क्या सचमुच डेढ़ साल के मासूम रहमत की मां नहीं रही और मासूम बच्चे को इस बात को का ज्ञान नहीं है। वह बच्चा मृत मां के कफन से खेलता रहा। इस दर्दनाक वाकये को मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश एस कुमार की दो सदस्यीय खंडपीठ ने संवेदनापूर्ण बताया। खंडपीठ ने तीन जून तक केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं रेलवे के संबंधित पदाधिकारियों को याचिका में पार्टी बनाने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने कहा कि ये चौंकाने वाली खबर मीडिया में भी आई है। इसमें यह कहा गया है कि डेढ़ साल के मासूम रहमत की मां प्लेटफाॅर्म पर मृत पड़ी थी। मासूम बच्चा को यह मालूम नहीं कि उसकी मां जीवित नहीं है और बच्चा मां के शव को ढंकी गई चादर को हटा कर आंचल समझ कर खेल रहा था।
खंडपीठ यह भी जानना चाहती है कि क्या वह महिला सचमुच अहमदाबाद से आकर कटिहार जा रही थी और भूख से ही वह ट्रेन में मर गई? खंडपीठ ने राज्य सरकार से इस बात की भी जानकारी मांगी है कि क्या उस महिला का पोस्टमार्टम किया गया था? यदि पोस्टमार्टम कराया गया तो उसके मरने का क्या कारण था ? क्या वह महिला अपने भाई-बहन के साथ ट्रेन में सफर कर रही थी ? यदि यह सब अधिकारियों की लापरवाही से घटना हुई तो बेहद चिंताजनक है, जिसे कोर्ट किसी भी हालत में हल्के तरीके से नहीं लेगा। पटना हाईकोर्ट के खंडपीठ ने इस मामले पर अधिवक्ता आशीष गिरि को सहायता देने को कहा है। गौरतलब है कि मीडिया में यह खबर अाई थी कि 25 मई को मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर कटिहार की रहने वाली एक महिला की मौत हो गई थी। वह श्रमिक ट्रेन से आ रही थी। इसका वीडियो बुधवार को साेशल मीडिया पर वायरल भी हुआ था। यह मुद्दा बिहार के सियासी गलियारे में भी छाया हुअा है। अब गुरुवार को पटना हाईकोर्ट ने भी इस पर संज्ञान लिया है।
*डॉक्टरों की लापरवाही और अनदेखी के कारण , कोरोना मरीज की मौत , ऐसा अम्बेडकर हॉस्पिटल में , हमेशा होता है ?*
अम्बेडकर अस्पताल में 28 मई दिन गुरुवार दोपहर एक कोरोना संदिग्ध की मौत हो गई है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिमगा से रेफर किया गया मरीज दो घंटे तक इलाज के लिए तड़पता रहा। लेकिन फॉर्म भरने, एमएलसी बनवाने और कोविड संदिग्ध को कहां भर्ती किया जाए, इसी कश्मकश में मरीज ने दम तोड़ दिया और किसी ने जांच के लिए हाथ तक नहीं लगाया। 40 वर्षीय संजय नामक मरीज को कफ, ठंड, फीवर और सांस लेने की शिकायत पर अम्बेडकर अस्पताल रेफर किया गया। पेशे से ट्रक ड्राइवर होने के कारण मरीज की ट्रैवल हिस्ट्री भी मध्यप्रदेश से थी। इस वजह से उसे कोरोना संदिग्ध माना जा रहा था। 108 के कर्मचारी मरीज को लेकर 11:15 बजे अम्बेडकर अस्पताल पहुंचे और 11:29 बजे ओपीडी की पर्ची कटवाई। वहीं, परिजन नहीं होने से मरीज का एमएलसी करवाया गया। इसके बाद कोविड स्क्रीनिंग सेक्शन, कोविड ओपीडी और आइसोलेशन वार्ड के बीच दो घंटे तक मरीज को घुमाया गया। इसके बावजूद कहीं भी किसी डॉक्टर ने मरीज को हाथ तक नहीं लगाया। अंतत: मरीज ने दम तोड़ दिया और आइसोलेशन वार्ड के बाहर बिना मरीज को हाथ लगाए ही बॉडी से कोई रिएक्शन नहीं मिलता देख उसे मृत घोषित कर दिया। पर्ची बनते तक जिंदा रहा मरीज : 108 के ईएमटी बसंत वर्मा ने बताया कि मरीज को सांस लेने में तकलीफ थी और वह रास्तेभर बातचीत करते हुए आया। वहीं, पर्ची बनने तक मरीज ठीक था। जैसे जैसे देरी होती गई, मरीज अचेत होता गया और वह स्ट्रेचर से नीचे एंबुलेंस के फ्लोर पर गिर गया और बेसुध हो गया।
पीपीई किट पहनने में ही बिता दिए एक घंटे : कोविड ओपीडी के डॉक्टर्स एंबुलेंस में पड़े मरीज को देखने सीढ़ियों से उतरे तक नहीं। जबकि मरीज को स्ट्रेचर से ऊपर ले जाने के लिए वार्ड ब्वॉय और अन्य स्टाफ ने पीपीई किट पहनने में ही एक घंटे का वक्त लगा दिया।
108 कर्मियों को भी नहीं दिए गए सुरक्षा उपकरण : कोरोना सस्पेक्ट मानकर सिमगा सीएचसी से मरीज को रेफर तो कर दिया गया। लेकिन 108 के कर्मचािरयों को न तो ग्लब्स दिए गए और न ही किसी प्रकार के सुरक्षा उपकरण। ऐसे में अचेत होकर एम्बुलेंस के फ्लोर पर गिरने के बाद किसी ने भी मरीज को हाथ तक नहीं लगाया और वह एक घंटे से ज्यादा समय तक उसी अवस्था में पड़ा रह गया।
मरीज पहले से ही सीरियस था “मामले की पूरी जानकारी ताे नहीं है, लेकिन इतना मालू्म है कि पेशेंट पहले से ही सीरियस था। फिर भी मैं एक बार चेक करवा लेता हूं। इएमटी-पायलट ऐसा बाेल रहे हैं, कि मरीज यहां आने और पर्ची कटवाने तक ठीक था ताे उनसे भी बात की जाएगी।”
*सुप्रीम कोर्ट का आदेश , कोरोना मरीज का मुफ्त इलाज करे ?*
सुप्रीम कोर्ट ने 27 मई दिन बुधवार को आदेश दिया था कि जिन अस्पतालों को सरकार की ओर से मुफ्त या रियायती जमीन मिली है, उन्हें कोरोना का इलाज भी मुफ्त में करना चाहिए। भास्कर की पड़ताल में पता चला कि पिछले दो दशक में राजधानी के 4 अस्पतालों को सरकार की ओर से रियायत के साथ 30 साल के लिए जमीन दी गई, लेकिन इनमें से दो में अब तक अस्पताल ही नहीं खोले गए। केवल दो अस्पताल-श्री नारायणा और छत्तीसगढ़ नेत्र चिकित्सालय चल रहे हैं। दोनों के संचालकों का कहना है कि वे पहले से ही अनुबंध की शर्तों के अनुरूप मुफ्त इलाज कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सरकार की गाइडलाइन आई तो वे कोरोना का भी मुफ्त इलाज करने के लिए तैयार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन अस्पतालों को मुफ्त में कोरोना का इलाज करने कहा है, जिन्हें सरकार ने मुफ्त में या कम कीमत पर जमीन दी है। कोर्ट ने सरकार को ऐसे अस्पतालों को चिह्नित करने के निर्देश दिए हैं, जहां कोरोना मरीजों का इलाज किया जा सके। भास्कर ने ऐसे अस्पतालों की जानकारी जुटाई है। इसके मुताबिक श्री नारायणा हॉस्पिटल (हेल्थटेक), रायपुर स्टोन क्लीनिक, छग नेत्र चिकित्सालय और पं. रविशंकर शुक्ल हॉस्पिटल बूढ़ापारा के लिए रियायती जमीन दी है। इनमें रायपुर स्टोन क्लीनिक और पं. रविशंकर शुक्ल हॉस्पिटल शुरू नहीं हुए हैं। वकील सचिन जैन ने सुप्रीम कोर्ट में प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज में खर्च पर लगाम लगाने के लिए याचिका लगाई थी। जैन ने आरोप लगाया था कि कई निजी अस्पताल संकट के समय में भी कोरोना के मरीजों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। जो प्राइवेट अस्पताल सरकारी जमीन पर बने हैं या चैरिटेबल संस्थान की कैटेगरी में आते हैं, सरकार को उनसे कहना चाहिए कि कम से कम कोरोना के मरीजों का जनहित में फ्री या फिर बिना मुनाफा कमाए इलाज करें। सरकार ने जिन अस्पतालों को रियायत पर जमीन दी थी, उन्हें ओपीडी में 15% मरीजों का फ्री इलाज करने और गंभीर मरीज होने पर इनकी सर्जरी या इलाज निशुल्क करने की शर्त रखी थी। इसके अलावा बिजली बिल, सम्पत्ति कर, भूभाटक आदि का पूरा भुगतान करना था। अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि सरकार ने जो भी शर्त रखी है, उस आधार पर इलाज किया जा रहा है। बीपीएल कार्ड धारी मरीजों से इलाज के पैसे नहीं लिए जाते।
इन अस्पतालों को रियायती दरों पर मिली जमीन
श्री नारायणा हॉस्पिटल1.50 एकड़
रायपुर स्टोन क्लीनिक 2 एकड़
छग नेत्र चिकित्सालय1.5 एकड़
रविशंकर शुक्ल हॉस्पिटल 3 एकड़
अस्पताल संचालक तैयार
सरकार कहे तो फ्री इलाज
“हमारे अस्पताल में गरीबों का फ्री इलाज हो रहा है। सरकार आदेश देगी तो कोरोना मरीजों का भी फ्री इलाज किया जाएगा।”
-डॉ. सुनील खेमका, एमडी श्री नारायणा हॉस्पिटल
अब भी मुफ्त इलाज जारी
“जिनके पास बीपीएल कार्ड हैं, उनकी फ्री सर्जरी की जाती है। कई बार चेहरा देखकर जरूरतमंदों का फ्री इलाज कर देते हैं।”
*सिर्फ पैसों के खातिर , अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे है डॉक्टर , संकट के समय में 275 डॉक्टरों ने दिया इस्तीफा , पैसा आज नहीं तो कल मिल ही जाएगा ?*
कोरोना मरीजों के इलाज के लिए ड्यूटी लगाए जाने के बाद भी दो माह से वेतन नहीं देने से नाराज रायपुर, सिम्स बिलासपुर, राजनांदगांव व रायगढ़ मेडिकल कॉलेज के 275 जूनियर रेसीडेंट (जेआर) ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया है। इनमें रायपुर मेडिकल कॉलेज के 25 जेआर शामिल हैं। इतनी बड़ी संख्या में इस्तीफे के बाद शासन ने 2014 बैच में एडमिशन लेने वाले 361 एमबीबीएस डॉक्टरों की दो साल की ग्रामीण सेवा के लिए पोस्टिंग कर दी है। इनमें ज्यादातर वही डॉक्टर हैं, जिन्होंने सामूहिक या व्यक्तिगत इस्तीफा दिया है। अब उन्हें संबंधित अस्पतालों में ड्यूटी ज्वाइन करनी होगी। शेष| बुधवार को नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर के 15 से ज्यादा जेआर ने वेतन नहीं मिलने का हवाला देते हुए डीन को इस्तीफा सौंप दिया था। बुधवार को 20 जेआर ने और इस्तीफा दे दिया। इसके बाद सिम्स के 95, रायगढ़ के 50 व राजनांदगांव के जेआर ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया। इससे मेडिकल कॉलेजों में कोरोना ओपीडी से लेकर आईपीडी में इलाज प्रभावित होने की आशंका थी। शासन ने शाम तक उन्हीं डॉक्टरों की पोस्टिंग विभिन्न अस्पतालों में कर दी है। ये पोस्टिंग एमबीबीएस के बाद दो साल की अनिवार्य सेवा के तहत की गई है। प्रदेश में कोरोना के मरीज आने के बाद मार्च में ही इंटर्नशिप पूरी करने वाले 383 डॉक्टरों को सीधे जेआर बना दिया गया था। नियमानुसार यह गलत था लेकिन मरीजों के इलाज में दिक्कत न हो इसलिए उन्हें जेआर बना दिया गया। उनका वेतनमान तय नहीं किया गया। इस वजह से दो माह से वेतन नहीं मिला। रायगढ़ में जरूर 60 हजार वेतन देने की चर्चा थी, लेकिन रायपुर समेत किसी भी मेडिकल कॉलेज के जेआर को दो माह का वेतन नहीं मिला है। इस्तीफा देने वाले आल इंडिया के नहीं बल्कि स्टेट कोटे के तहत एडमिशन लेने वाले छात्र हैं। 2015 से आल इंडिया कोटे के तहत एडमिशन लेने वालों के लिए दो साल की ग्रामीण सेवा अनिवार्य कर दी गई है।
पीपीई किट नहीं देने की शिकायत
जिन्हें जेआर बनाया गया था, उनकी ड्यूटी कोरोना ओपीडी से लेकर वार्ड में लगाई गई थी। जेआर की शिकायत है, उन्हें पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की ड्यूटी करनी पड़ रही है। कोरोना ओपीडी के पीपीई किट, ग्लब्स व फेस शील्ड तक नहीं दिया गया। वार्ड में भी लापरवाही बरती गई। ओपीडी में मरीज उन्हीं के भरोसे थे। जबकि सीनियर कंसल्टेंट नजर ही नहीं आ रहे थे। जेआर ने इस्तीफे में इस बात का जिक्र किया है कि उन्हें लापरवाही के बीच ड्यूटी कराई जा रही थी।
*छत्तीसगढ़ सरकार अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग , कोरोना मरीजों के प्रति है गंभीर , गर्भवती महिलाओं के लिए , अलग से सेंटर ।*
सीएम भूपेश बघेल ने क्वारेंटाइन सेंटर में रही रहीं गर्भवती महिलाओं की हर दिन जांच करने और अच्छी देखभाल के साथ प्रसव संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराने कहा है। गर्भवती महिलाओं के लिए अलग से क्वारेंटाइन सेंटर बनाए जाएंगे, जहां नियमित जांच, चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होंगी। क्वारेंटाइन सेंटर में व्यवस्था नहीं होने पर सिविल अस्पताल में अलग वार्ड या कमरों में गर्भवती महिलाओं को रखने कहा गया है। सीएम ने कहा है कि महिलाएं यदि अपने पति को साथ रखना चाहते हैं तो उन्हें अनुमति दी जाए। सीएम के निर्देश के बाद स्वास्थ्य विभाग ने सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने सभी सीएमएचओ को लिखा है कि कोराेना संक्रमण गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए खतरनाक व जानलेवा है। प्रवासी मजदूरों के लिए संचालित क्वारेंटाइन सेंटर में गर्भवती महिलाओं को भी अन्य महिलाओं के साथ रखा जा रहा है। गर्भवती महिलाओं में संक्रमण की अधिक संभावना है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को डॉक्टरी सलाह और उनकी सहमति से अलग क्वारेंटाइन सेंटर में रखा जाए। इनके लिए क्वारेंटाइन सेंटर ब्लॉक और जिला स्तर पर चिह्नांकित कर बड़े कस्बों में ही बनाने कहा गया है। वहां भोजन व स्वच्छ पेयजल, स्नानगृह व शौचालय की अनिवार्य व्यवस्था सुनिश्चित करने कहा गया है। क्वारेंटाइन सेंटर में दो बिस्तरों के बीच एक से दो मीटर का अंतर रखने कहा गया है।
*सीएम ने एम्स को दी रोबोट नर्स, कोरोना वार्ड में किया इस्तेमाल ।*
सीएम भूपेश ने रोबोट नर्स एम्स रायपुर को सौंपा। इसका उपयोग कोरोना वार्ड में किया जाएगा। बघेल ने अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित रोबोट नर्स की खोज के लिए शोभा टाह फाउण्डेशन बिलासपुर की सराहना की। यह रोबोट नर्स एक बार में 90 फीट की लंबाई तक मरीज तक आवश्यक दवाइंयां, कपड़े सहित खान-पान की सामग्रियों को पहुंचाने के साथ-साथ वापस लाने की सुविधा से युक्त है। इस अवसर पर टाह फाउण्डेशन के सतीश कुमार, अमर गिदवानी तथा एम्स रायपुर के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. करण पीपरे आदि उपस्थित थे।