शहर को डिस्पोजल कचरा से मुक्त करने के लिए नगर निगम की तरफ से दीदी बर्तन बैंक की योजना बनाई गई थी. मगर केंद्र में ताला लटके रहने के कारण लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है.
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर शहर में डिस्पोजल प्लास्टिक कचरा से मुक्ति के लिए नगर निगम की तरफ से अभिनव पहल करते हुए दीदी बर्तन बैंक की स्थापना तो कर दी गई, मगर केंद्र में ताला लटके रहने और संचालन के प्रति महिला समूहों की तरफ से लापरवाही बरते जाने के कारण लोगों को न तो इसका लाभ मिल पा रहा है और न ही डिस्पोजल कचरा से शहर मुक्त हो पा रहा है. शहर में पॉलिथीन कैरी बैग के उपयोग और भंडारण पर नगर निगम की तरफ से पहले से ही प्रतिबंध लगाया गया है. मगर इसका पालन कराने के लिए न तो अधिकारी ध्यान देते हैं और न ही नगर निगम का मैदानी कर्मचारी.
अम्बिकापुर शहर को डिस्पोजल कचरा से मुक्त करने के लिए नगर निगम की तरफ से दीदी बर्तन बैंक की योजना बनाई गई थी. इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर जरूरत मंदों को छोटे-मोटे कार्यक्रमों के लिए सस्ते दर पर लोटा, थाली, गिलास, चम्मच, कटोरी सहित अन्य बर्तन और समान उपलब्ध कराया जाना था. इसके अलावा लोगों को किसी भी कार्यक्रम में डिस्पोजल सामानों का उपयोग न करने और स्टील के बर्तनों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए निरंतर जागरूकता अभियान चलाने का निर्णय लिया गया था लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया.
बताया जा रहा है कि अम्बिकापुर शहर में पांच दीदी बर्तन बैंक संचालित हैं. जिसमें गोधन इंपोरियम परिसर, सियान सदन, गांधीनगर, चंबोथी तालाब और नया बस स्टैंड में इसका संचालन किया जा रहा है. निगम की तरफ से आठ महिला समूहों के 80 सदस्यों के माध्यम से दीदी बर्तन बैंक का संचालन निजी टेंट हाउस की तर्ज पर किए जाने का दावा किया जा रहा है. मगर जमीनी हकीकत कुछ ओर है. नागरिकों की तरफ से दीदी बर्तन बैंक को प्रतिदिन खोले जाने की आवश्यकता जताई गई है.
महिला समूहों का कहना है कि पूर्व में नियमित रूप से दीदी बर्तन बैंक को खोला जाता था, मगर हर रोज ग्राहकों के नहीं आने के कारण उन्होंने केंद्र को बंद रखने और सामान का ऑर्डर मिलने पर ही खोलने का निर्णय लिया गया है. ताकि समूह की महिलाएं दूसरे कार्यों के माध्यम से भी आय अर्जित कर सकें. इधर केंद्र के सामने संपर्क नंबर नहीं होने के चलते जरूरतमंदों को खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है