महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले में बसे बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों ने भारत सरकार से नागरिकता देने की गुहार लगाई है। गडचिरोली में बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों की संख्या लगभग 50 हजार तक पहुंच गई है। यह सभी लोग 1964 में बांग्लादेश से भारत आए थे। 6 दशक बीत जाने के बाद भी यह सभी शरणार्थी नक्सल प्रभावित इस इलाके में संघर्ष कर रहे हैं।
बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं ये शरणार्थी
यहां जीवन यापन करना इन बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए बड़ी चुनौती है। यह लोग बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली, शिक्षा और चिकित्सा सेवा से वंचित हैं। अपने हक के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। गडचिरोली में बसे ये शरणार्थी सालों से भूमि स्वामित्व, बंगाली माध्यम में शिक्षा, जाति प्रमाणपत्र, आरक्षण और नागरिकता जैसे अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू होने के बाद इन शरणार्थियों के लिए नागरिकता हासिल करना और कठिन हो गया है।
‘इन बांग्लादेशी हिंदुओं ने भारत को अपनी मां माना’
‘निखिल भारत बंगाली शरणार्थी समन्वय समिति’ पिछले कई वर्षों से इन बंगाली हिंदुओं के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुभोध बिस्वास का कहना है, “कोई भी अपनी धरती छोड़कर नहीं जाना चाहता। बांग्लादेश के हिंदुओं ने भारत को अपनी मां माना, इसलिए यहां आए। लेकिन अब यहां हमें भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। हमारे पास न जमीन का मालिकाना हक है, न जाति प्रमाणपत्र, न नागरिकता। हम CAA की शर्तों को पूरा नहीं कर सकते।”
क्या कहते हैं बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी:
- एक शरणार्थी बिधान बेपारी ने बताया कि वह 1964 में भारत आए थे। उस समय के हालात बेहद कठिन थे। बिधान बेपारी कहते हैं, “हमारे साथ करीब 20 लाख लोग आए थे, कुछ लोग 1964 से पहले भी आ चुके थे। हमें यहां जमीन दी गई, लेकिन आज भी 80% लोग नागरिकता से वंचित हैं। हमें न्याय मिलना चाहिए और सरकार को हमारी नागरिकता सुनिश्चित करनी चाहिए।”
- महिला शरणार्थी महारानी शुक्लन ने कहा, “जब मेरे पिता हमें बांग्लादेश से हिंसा से बचाकर भारत लाए थे तब मैं एक साल की थी । हमें यहां रहने के लिए जमीन और जानवर दिए गए थे, लेकिन हम अब भी गरीब हैं। हमारे पास जाति प्रमाणपत्र नहीं है। हम केंद्र सरकार से अपील करते हैं कि हमें जाति प्रमाणपत्र दिया जाए।”
CAA के बाद नागरिकता पाना हुआ मुश्किल
CAA लागू होने के बाद इन शरणार्थियों के लिए नागरिकता प्राप्त करना और मुश्किल हो गया है। जहां एक ओर ये बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थी भारत को अपनी मातृभूमि मानते हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपनी पहचान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इन शरणार्थियों का कहना है कि नागरिकता उनका अधिकार है, और केंद्र सरकार को उन्हें यह अधिकार देना चाहिए।