ओडिशा में नक्सली गतिविधियों को लेकर सीमा सुरक्षा बल ने बड़ा दावा किया है। बीएसएफ के आईजी ने कहा कि बीते वर्षों में ओडिशा में नक्सलियों की गतिविधियों में काफी कमी आई है। अब यहां केवल प्रतिबंधित संगठन के केवल 60-70 सदस्य ही सक्रिय हैं। बीएसएफ मार्च 2026 तक राज्य को नक्सलवाद से मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
एक दिसंबर को बीएसएफ के स्थापना दिवस से पहले आईजी (फ्रंटियर मुख्यालय विशेष ऑपरेशन) सीडी अग्रवाल ने कहा कि ओडिशा में अधिकांश सक्रिय नक्सली पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ से हैं। इनमें केवल सात ओडिशा से हैं और वे नेतृत्वकारी भूमिका में नहीं हैं। आईजी ने कहा कि नक्सली गतिविधियों को कम करने के मामले में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। कालाहांडी, कंधमाल और बौध के घने जंगलों में आईईडी का खतरा बना हुआ है। वहीं नक्सलियों से जुड़े मादक पदार्थों की तस्करी, गांजा की खेती का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव बाधा बन रहा है।
उन्होंने कहा कि बीएसएफ को पहली बार ओडिशा में 2010 में तैनात किया गया था, जब नक्सली हिंसा अपने चरम पर थी। बीएसएफ ने यहां खतरनाक इलाकों में नक्सलियों के विरोध में अभियान चलाए और 250-300 नक्सलियों को मार गिराया। बड़ी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद किए। साथ ही कट्टर नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने में मदद की है। साल 2024 में तीन खूंखार नक्सलियों को ढेर कर दिया गया और 24 कट्टर नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। वहीं राज्य में 34 आईईडी, 117 ग्रेनेड और भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद जब्त किया गया।
अग्रवाल ने कहा कि सीमा सुरक्षा बल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि एक कटे हुए क्षेत्र को स्वाभिमान अंचल में बदलना है। हम ओडिशा पुलिस और खुफिया एजेंसियों के साथ बेहतर समन्वय, ड्रोन और सेटेलाइट निगरानी जैसी उन्नत तकनीकों के प्रयोग और सामुदायिक सहभागिता को मजबूत करने के साथ मार्च 2026 तक ओडिशा से नक्सलवाद को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया कि 2010 से ओडिशा में नक्सलियों से लड़ते हुए बीएसएफ के चौदह जवानों ने अपनी जान गंवाई है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार ओडिशा के सात जिले कालाहांडी, कंधमाल, बोलनगीर, मलकानगिरी, नबरंगपुर, नुआपाड़ा और रायगढ़ा को वामपंथी उग्रवाद क्षेत्र माना गया है। वहीं नक्सली गतिविधियां ज्यादातर कालाहांडी, कंधमाल, बौध, नयागढ़ (केकेबीएन) क्षेत्र तक सीमित हैं।