वह सिर्फ हनीमून पर गया था… और कभी वापस नहीं आया। शादी के 6 दिन बाद लेफ्टिनेंट विनय नारवाल अपनी पत्नी के साथ पहलगाम गए थे। आतंकियों ने गोलियों से छलनी कर दिया — सिर्फ इसलिए कि वह मुसलमान नहीं थे। क्या यह इंसानियत है? क्या यह न्याय है? देश का एक वीर जवान, जिसने देश के लिए कसम खाई थी, आतंकवाद का शिकार बन गया — अपनी नवविवाहित पत्नी की आंखों के सामने।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इस हमले में हरियाणा के करनाल निवासी और भारतीय नौसेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट विनय नारवाल की दर्दनाक मौत हो गई।
सिर्फ छह दिन पहले, 16 अप्रैल को उन्होंने शादी की थी। पत्नी के साथ हनीमून मनाने पहलगाम पहुंचे थे। लेकिन खुशियों से भरी इस यात्रा का अंत मौत के साये में हुआ — गोलियों की गूंज में।
गोलियों की गूंज और चीखों का मातम
चश्मदीदों के मुताबिक, विनय नारवाल और उनकी पत्नी घास के मैदान में बैठे भेलपुरी खा रहे थे। अचानक गोलियों की बौछार शुरू हुई। पत्नी ने भावुक स्वर में बताया, "हम सिर्फ भेलपुरी खा रहे थे… और तभी उसने मेरे पति को गोली मार दी। उसने कहा कि मेरे पति मुसलमान नहीं हैं, और उन्हें गोली मार दी।"
इस बयान ने आतंकियों की सोच और नफरत की गहराई को उजागर कर दिया है।
शरीर छलनी, परिवार बिखरा
लेफ्टिनेंट नारवाल को सीने, गर्दन और बाएं हाथ के पास गोली मारी गई। इतने गंभीर घावों के कारण वह मौके पर ही शहीद हो गए। उनकी उम्र मात्र 26 साल थी।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, वह कोच्चि में तैनात थे और भारतीय नौसेना में दो साल पहले शामिल हुए थे। विनय और उनकी पत्नी ने हनीमून के लिए पहले यूरोप जाने की योजना बनाई थी, लेकिन वीजा न मिलने के कारण कश्मीर आना पड़ा।
टूट चुका है नारवाल परिवार
घटना की सूचना मिलते ही देर रात कुछ लोग उनके करनाल स्थित घर पहुंचे, लेकिन परिवार ने किसी से बात नहीं की। शोक की इस घड़ी में घर का माहौल भारी और चुप्पी से भरा है। मां-पिता, भाई-बहन — सब जैसे स्तब्ध हैं, दुनिया से कट चुके हैं।
इस हमले में कुल 26 लोगों की मौत हुई, जिनमें दो विदेशी नागरिक भी शामिल हैं। यह हमला न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि आतंक का निशाना कोई भी बन सकता है — चाहे वो एक नवविवाहित जोड़ा ही क्यों न हो।
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