जम्मू-कश्मीर में प्राकृतिक आपदाओं से तीर्थयात्रा सवालों के घेरे में
जम्मू-कश्मीर | जम्मू-कश्मीर में हाल ही में आई प्राकृतिक आपदाओं ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। किश्तवाड़ जिले की मचैल माता यात्रा और कटरा स्थित वैष्णो देवी यात्रा के दौरान बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं में करीब 100 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। इन हादसों ने प्रदेश के राजनीतिक माहौल को भी गर्मा दिया है।
14 अगस्त को किश्तवाड़ जिले के चिशोटी क्षेत्र में अचानक आई बाढ़ ने मचैल माता मंदिर की ओर जा रहे श्रद्धालुओं को अपनी चपेट में ले लिया। देवी दुर्गा को समर्पित यह प्रमुख धार्मिक स्थल हर साल हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस आपदा में अब तक 60 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है, जबकि कई लापता हैं। राहत-बचाव कार्यों में सेना और एनडीआरएफ लगी हुई है, लेकिन दुर्गम इलाके के कारण मुश्किलें बढ़ी हुई हैं।
कटरा से वैष्णो देवी मंदिर जाने वाले 12 किमी लंबे मार्ग पर भारी बारिश और भूस्खलन के चलते मंगलवार को बड़ा हादसा हुआ। इसमें 35 श्रद्धालु मारे गए और कई घायल हो गए। बताया जा रहा है कि क्षेत्र में लगातार बारिश और बादल फटने की चेतावनी पहले से ही जारी थी, बावजूद इसके यात्रा को नहीं रोका गया।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दोनों घटनाओं की उच्च स्तरीय जांच समिति गठित करने और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह हादसे प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा हैं।
उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को सीधे जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने सवाल उठाया कि जब मौसम विभाग ने पहले ही चेतावनी जारी कर दी थी, तो यात्राएं क्यों जारी रखी गईं? इसे उन्होंने "आपराधिक लापरवाही" बताया।
अब तक उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से कोई औपचारिक बयान सामने नहीं आया है। इससे प्रशासन की भूमिका पर सवाल और गहराते जा रहे हैं। इससे पहले भी वैष्णो देवी यात्रा के दौरान भगदड़ की घटना में कई श्रद्धालु अपनी जान गंवा चुके हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम चेतावनियों को नजरअंदाज करना प्रशासन की बड़ी गलती रही। अब मांग उठ रही है कि भविष्य में तीर्थ यात्राओं को केवल मौसम पूर्वानुमान और सुरक्षा मानकों के आधार पर ही अनुमति दी जाए।
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