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सुप्रीम कोर्ट ने की जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर की तीखी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने की जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर की तीखी टिप्पणी

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-कहा-यह याचिका इस तरह दायर नहीं की जानी चाहिए थी
नईदिल्ली
 । सुप्रीम कोर्ट ने घर में बेहिसाब नकदी मिलने के मामले में फंसे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की याचिका पर सोमवार को सुनवाई की। इसमें कोर्ट ने याचिका दायर करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह याचिका इस तरह दायर नहीं की जानी चाहिए थी। न्यायाधीश का मुख्य मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के पास है। जस्टिस वर्मा ने याचिका दायर कर इस मामले में गठित 3 न्यायाधीशों वाली जांच समिति की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की थी।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, यह याचिका इतनी लापरवाही से दायर नहीं की जानी चाहिए थी। कृपया देखें, पक्षकार यहां रजिस्ट्रार जनरल हैं, महासचिव नहीं। पहला पक्ष सुप्रीम कोर्ट है क्योंकि आपकी शिकायत उल्लेखित प्रक्रिया के खिलाफ है। बता दें कि जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में तीन प्रतिवादी बनाए हैं। इनमें पहले नंबर पर भारत संघ, दूसरे पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय और तीसरे पर भी सुप्रीम कोर्ट है।
जस्टिस दत्ता ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच करने वाले 3 न्यायाधीशों की समिति की रिपोर्ट याचिका के साथ संलग्न नहीं की गई थी। उन्होंने पूछा, तीन न्यायाधीशों के पैनल की रिपोर्ट कहां है? इस पर जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि रिपोर्ट तो पहले से ही सार्वजनिक है। इस पर जस्टिस दत्ता ने स्पष्ट किया कि याचिका के साथ जांच रिपोर्ट आवश्यक रूप से लगाई जानी चाहिए थी।
सिब्बल ने कहा, अनुच्छेद-124 के तहत जब तक कदाचार सिद्ध न हो जाए, तब तक संसद में भी न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा नहीं हो सकती। इसी तरह टेप जारी करना, वेबसाइट पर डालना, न्यायाधीशों के विरुद्ध मीडिया में आरोप, जनता द्वारा निष्कर्ष आदि भी निषिद्ध हैं। इसके बाद भी लोकसभा और राज्यसभा में महाभियोग के लिए प्रस्ताव दिया गया है। अगर, प्रक्रिया ऐसा करने की अनुमति देती है, तो यह संविधान पीठ के निर्णय का उल्लंघन है।
सिब्बल ने कहा, मामले में अब तक जो कुछ भी हुआ है वह संवैधानिक ढांचे के पूरी तरह विपरीत है। न्यायाधीशों पर किसी भी चर्चा की अनुमति, यहां तक कि संसद में भी कदाचार को साबित करने के बाद ही दी जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या जस्टिस वर्मा मुख्य न्यायाधीश की तथ्य-खोजी समिति के सामने पेश हुए थे? क्या उन्हें अनुकूल निष्कर्ष की उम्मीद थी? वह उस समिति के खिलाफ सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं आए? इस पर सिब्बल ने कहा, जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच में तथ्यान्वेषी रिपोर्ट का कोई सबूत नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, समिति की रिपोर्ट को राष्ट्रपति को भेजना अवैध क्यों था, जबकि वह न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
कोर्ट ने सिब्बल से तथ्यान्वेषी समिति की रिपोर्ट को रिकार्ड पर रखने के निर्देश देते हुए पूछा कि क्या वह संसद महाभियोग प्रस्ताव रखे जाने के बाद कोई निर्देश पारित कर सकता है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई 30 जुलाई तक स्थगित कर दी।
जस्टिस वर्मा ने याचिका में तर्क दिया कि जांच समिति की कार्यवाही ने एक व्यक्ति और एक संवैधानिक पदाधिकारी, दोनों के रूप में उनके अधिकारों का उल्लंघन किया है। समिति ने महत्वपूर्ण तथ्यों की जांच के बिना कार्यवाही समाप्त कर दी तथा गलती से सबूत का भार उन पर डाल दिया। उन्होंने समिति की सिफारिश को रद्द करने के साथ पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा की गई महाभियोग की सिफारिश को भी रद्द करने की मांग की है।
बता दें कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार जल्द ही लोकसभा में प्रस्ताव लाएगी। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा सभी दल एकजुट होकर न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने पर सहमत हुए हैं। न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के अनुसार, लोकसभा में प्रक्रिया पूरी होने के बाद यह मामला राज्यसभा में जाएगा। इस नोटिस पर सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्ष के 150 से अधिक सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं।


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