चूरू. हिमालय के तराई वाले मैदानी भू भागों सहित मध्य एशिया व यूरोप के शीत प्रदेशों से आने वाले गिद्धों की आवक क्षेत्र में सर्दी बढऩे के साथ ही तालछापर कृष्ण मृग अभयारण्य में शुरू होने वाली है। प्रकृति के सफाई कर्मी कहे जाने वाले गिद्धों की लुप्त हो चुकी कई प्रजातियों का अभयारण्य में दिखना प्रकृति के सुधरने का सुखद संकेत है। एसीएफ दिलीपसिंह ने बताया कि कई देशों के शीत प्रदेशों से धोरों की धरती पर प्रवास के लिए आने वाले दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों के आने की आहट के साथ ही वन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी है। उन्होंने बताया कि अक्टूबर माह के अंतिम दिनों से लेकर नवंबर माह की शुरुआत के दौरान मध्य एशिया, यूरोप, तिब्बत सहित कई अन्य देशों से वल्चर यहां आते हैं, इन देशों में इन दिनों तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है। ऐसे में अक्टूबर से फरवरी तक यहां का मौसम यहां की जलवायु अनुकूल रहती है साथी पशुपालन क्षेत्र होने की वजह से गिद्धों को यह इलाका बहुत भाता है। रेंजर उमेश बागोतिया ने बताया कि गत वर्ष सभी प्रजातियों को मिलाकर करीब 70 गिद्ध ताल छापर आए थे।
यह प्रजातियां पहुंचती है यहां….
क्षेत्रिय वन अधिकारी ने बताया कि यहां आने वाले गिद्धों की करीब 7 प्रजातियां प्रवास पर आती हैं। जिसमें ग्रिफोन, सिनेरियस, यूरेशियन, इजिप्शियन, रेड हैडेड, लोंग बिल्ड व वहाईट बैकड वल्चर तालछापर अभयारण्य में देखने को मिलते हैं। रेंजर बागोतिया ने बताया कि वन विभाग के कार्मिकों को गिद्धों के विचरण करने वाले विशेष स्थानों पर गश्त करने के निर्देश दिए गए हैं। गौरतलब है कि लुप्त हो रही इस चिडिय़ा को देखने के लिए देश के कई इलाकों से पक्षी व पर्यावरण प्रेमीें इन दिनों ताल छापर में अपना डेरा डाले रहते हैं।