दुर्ग। एक समय था जब संचार का सर्वश्रेष्ठ माध्यम डाक सेवाएं हुआ करती थीं। इस दौर में जब संचार में जबरदस्त क्रांति आई, दुर्ग स्थित पटेल चौक जिले की मुख्य शाखा जो संपूर्ण जिले का प्रतिनिधित्व करती है, यहां सुविधाओं के लाले पड़े हुए हैं। जनसेवाओ को अधिकारी झांकने तक नहीं आते। रायपुर और भिलाई के बड़े अधिकारी तो फोन भी नहीं उठाते हैं।
यदि आप कोई डाक बुक करने आता है, तो अधिकांश बिल रु 41.30 पैसे या रु 61.70 पैसे जैसा बनता है। काउंटर में बैठने वालों के पास चिल्लर तो होता ही नहीं, अलबत्ता लोगों का समय खराब होता है। क्योंकि डिजिटल पेमेंट होने की व्यवस्था होते हुए भी यहां डिजिटल पेमेंट की व्यवस्था नहीं है। रसीद की प्रिंटिंग मशीन पुरानी और खराब हो गई है उसमें सही ढंग से प्रिंट नहीं होता। लेकिन उसे बदला नहीं जा रहा है। वजन तोलने की मशीन में 10 ग्राम का भी वजन इस मशीन से लिया जाता है तथा 20 किलो का वजन लिया जाता है, जो कि कुछ भी वजन बताती है। उस मशीन का सत्यापन भी नहीं हुआ है। यहां वजन इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि यदि लिफाफे या पैकेट का वजन 1 ग्राम भी ज्यादा हो गया तो उपभोक्ता को 20 से 40 रु ज्यादा देने पड़ सकते हैं।
शहर के जागरूक नागरिक ने बताया कि एक जनरेटर गेट के बाहर रखा रखा सड़ गया है। लाइट बंद होने पर सब कुछ बंद हो जाता है। कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। सर्वर कभी भी डाउन हो जाता है। यह रोजमर्रा की बात है। पब्लिक अफसोस करने के अलावा कुछ भी नहीं कर पाती। किसी भी खिड़की पर यह नहीं लिखा गया है कि यह किस बाबत है। लोग भटकते रहते हैं, डाक बुकिंग के लिए दो काउंटर हैं, उसमें भी अधिकांश समय एक काउंटर पर तो कोई बैठता ही नहीं है। परंतु उसमें बहुत से और भी काम होते हैं इसलिए लोगों के घंटो खराब होते रहते हैं, और उसमें भी ऐसे नोसिखिये लोगों को बिठा दिया जाता है जिन्हें बुकिंग करने का आईडिया ही नहीं है। न ही ट्रेनिंग मिली है। नियम के अनुसार एक स्पीड पोस्ट बुकिंग की अवधि अधिकतम 3 मिनट की है, जिसका पालन हो ही नहीं रहा है।