सरोज पांडेय की अनदेखी भाजपा को न पड़ जाए भारी
सरोज पांडेय का दुर्ग की स्थानीय राजनीति में तगड़ा पकड़ है। पिछले चुनाव में भी उनकी अनदेखी ने नतीजा बदल दिया था। शहरी सत्ता पांच सालों के लिए कांग्रेस के हाथ चला गया था।
दुर्ग। दुर्ग नगरीय निकाय चुनाव में सरोज पांडेय की अनदेखी भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। सरोज पांडेय का दुर्ग की स्थानीय राजनीति में तगड़ा पकड़ है। पिछले चुनाव में भी उनकी अनदेखी ने नतीजा बदल दिया था। शहरी सत्ता पांच सालों के लिए कांग्रेस के हाथ चला गया था। आज दुर्ग शहर में भाजपा का बागडौर एक तरह से विधायक गजेंद्र यादव के हाथों में है।
संसद, विधायक और दुर्ग नगर निगम में दो बार महापौर रह चुकी भाजपा की कद्दावर नेता सरोज पांडेय दुर्ग की शहरी राजनीति की आजमाई हुई खिलाड़ी हैं। लंबे समय तक दुर्ग का उनका कार्यक्षेत्र रहा है। यहां उनके समर्थकों का बड़ा वर्ग है। वे दुर्ग के वार्डो की जमीनी हकीकत से वाकिफ हैं।
हालांकि पिछला चुनाव हारने वाली वह भाजपा की इकलौती सांसद प्रत्याशी थी। लेकिन सिर्फ इसी नतीजे से उनकी क्षमता को कमतर नही आंका जा सकता। जनवादी राजनीति की वे माहिर खिलाड़ी है। लोकल चुनाव कैसे जीता जाता है, उन्हें मालूम है।
यह सही है कि विधायक गजेंद्र यादव भजपा के नए चेहरे के रूप में उभरे है, किन्तु किसी भी चुनाव को फतह करने समन्वित प्रयास की दरकार होती है। टीम भावना से ही चुनाव में उल्लेखनीय जीत प्राप्त की जाती हैं। लिहाजा चुनाव की इस बेला में सरोज पांडेय की प्रासंगिकता बरकरार है। पार्टी को उनकी क्षमता का इस्तेमाल करना चाहिए।