आर्यिका रत्न 105 सौभाग्यमति माताजी के सानिध्य में होगा संपूर्ण धार्मिक कार्यक्रम, प्रदेशभर से जुटेगे जैन समाज के लोग
दुर्ग। श्री दिगंबर जैन पंचायत दुर्ग ने विश्व के कल्याणार्थ विशेष धार्मिक पहल की हैं। जिसके तहत जैन समाज के प्रमुख मंत्र णमोकार महामंत्र के सवा लाख सामूहिक जाप अनुष्ठान का 14 सितंबर से 16 सितंबर तक और विश्वशांति महायज्ञ का 17 सितंबर को पूरे विधिविधान के साथ भव्य आयोजन किया गया हैं। इस तरह का धार्मिक आयोजन दुर्ग शहर में पहली बार हो रहा है। जो आर्यिका रत्न 105 सौभाग्यमति माताजी के सानिध्य में संपन्न होगा। णमोकार महामंत्र का सामूहिक जाप प्रतिदिन सुबह 8:30 बजे से 9:30 बजे तक और शाम 7:30 बजे से 8:30 तक किया जाएगा। यह संपूर्ण धार्मिक कार्यक्रम दिगंबर जैन मंदिर (बड़ा मंदिर) बनियापारा दुर्ग में संपादित होगा। णमोकार महामंत्र के जप और विश्व शांति महायज्ञ में प्रदेशभर से जैन समाज के श्रद्धालु हजारों की संख्या में शामिल होंगे।
फलस्वरुप आयोजन की भव्य तैयारी छतरपुर (म प्र) से पधारे बाल ब्रह्मचारी पंकज शास्त्री के निर्देशन में अंतिम चरण पर है। यह बातें श्री दिगंबर जैन पंचायत दुर्ग के अध्यक्ष ज्ञानचंद पाटनी और मंत्री व चातुर्मास के संयोजक संदीप लुहाडिया ने मंगलवार को मीडिया से चर्चा में कही। इस दौरान पंचायत के उपाध्यक्ष सुरेश जैन, उप मंत्री रमेश सेठी, कोषाध्यक्ष महेंद्र पाटनी, चातुर्मास संयोजक विजय जैन, सजल काला, स्वागत अध्यक्ष राकेश छाबड़ा, प्रचार-प्रसार प्रभारी मनीष बडज़ात्या, विमल बडज़ात्या, इंदर पाटनी, महेश पटोले भी मौजूद थे।
चर्चा में दिगंबर जैन पंचायत दुर्ग के अध्यक्ष ज्ञानचंद पाटनी ने बताया कि 24 वे चातुर्मास के आर्यिका रत्न 105 सौभाग्यमति माताजी सुमितनाथ जिनालाय में विराजमान है। पर्यूषण पर्व 19 सितंबर से 28 सितंबर तक चलेगा। इस अवसर पर माताजी के सानिध्य में कई बड़े कार्यक्रम संपन्न होंगे। प्रर्यूषण पर्व की समाप्ति पर 30 सितंबर को भव्य रथयात्रा निकाली जाएगी। 21 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक कल्पदुम महामंडल विधान की जाएगी। जिनके पात्रों का चयन विश्वशांति महायज्ञ के दौरान 17 सितंबर को किया जाएगा। श्री दिगंबर जैन पंचायत दुर्ग के मंत्री और चातुर्मास समिति के संयोजक संदीप लोहाडिया ने चर्चा में बताया कि आर्यिका रत्न 105 सौभाग्यमति माताजी ने साढे सात सौ किलोमीटर की पदयात्रा कर दुर्ग में चातुर्मास के लिए मंगल प्रवेश किया है। पदयात्रा पूरी करने में उन्हें 15 दिनों का समय लगा है। माताजी का जन्म मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में हुआ था। उन्होंने मात्र 17 वर्ष की उम्र में गृह त्याग कर 20 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की। उन्हें मात्र 26 वर्ष की उम्र में गणिनि की पद प्राप्त करने का गौरव मिला हैं।
- त्याग करने से मिलता है सुख- सौभाग्यमति माताजी
आर्यिका रत्न 105 सौभाग्यमति माताजी ने त्याग विषय पर अपना संदेश देते हए कहा कि पृथ्वी का कण-कण हमें त्याग करने का संदेश देती हैं। त्याग करने से सुख मिलता है। मृत्यु के पहले त्याग करनेे वाला व्यक्ति बैरागी होता है। त्याग का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है। जितना हम त्याग करेगे, उतना अधिक हमें सफलता मिलेगी। सौभाग्यमति माताजी ने मीडिया के सवालों के जवाब में कहा कि मंत्रो का जाप हमें उर्जावान व शक्तिवान बनाती है। जो मंत्रो की अराधना करता है। उनकी सहायता स्वयं ईश्वर करते हैं। उन्होंने कहा कि साधु-संतो की संख्या जरूर बढ रही है। यह भी सच है कि उसी तेजी से समाज में अप्रिय घटनाएं भी बढ़ रही हैं। साधु संतो की यह संख्या इसलिए बढ़ी है ताकि वे अपने अच्छे संदेशों से समाज में बुराईयों का अंत कर सके। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म को कोई मिटाना नहीं सकता हैं। सनातन धर्म वर्तमान परिस्थिति में भले ही परेशान हो सकता है, लेकिन कभी पराजित नहीं होगा। उन्होंने साधु संतो के राजनीति में आने से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा कि राजनीति में धर्मनीति का आना अच्छा है, लेकिन धर्मनीति में राजनीति की घूसपैठ ठीक नही हैं।