दुर्ग। भूपेश सरकार शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करने का भले ही दंभ भर रही हो, मगर जमीनी हकीकत यह हैं कि शिक्षक समुदाय इन 5 सालों में खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। सहायक शिक्षकों के वेतन विसंगति, पदोन्नति जैसे मसलों पर सरकार से शिक्षक समुदाय नाराज है । अभी प्रमोशन के बाद पदोन्नति में पदस्थापना संशोधन के निरस्तीकरण में हजारों शिक्षक प्रभावित हुए हैं। नए शिक्षा मंत्री बनने के बाद रविन्द्र चौबे ने ऐसे ऐसे निर्णय लिए जो शिक्षक समुदाय को आहत कर रहा है । शिक्षक समुदाय को उम्मीद थी कि भूपेश सरकार उनके लिए कुछ अच्छी पहल करेगी, मगर इन 5 सालों में शिक्षकों की उम्मीदें धूमिल हो गई। राज्य में 2 लाख के आसपास शिक्षक हैं। उनके पीछे 15 लाख लोगों का परिवार खड़ा है । इस तरह शिक्षक समुदाय से नाराजगी का मतलब 10 से 15 लाख वोटो का ध्रुवीकरण है। हालांकि अभी चुनाव को 2 महीने शेष है शिक्षकों को अब भी लगता है कि चुनावी पिटारे में उनके लिए कुछ राहत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रखा है। किंतु शिक्षक संघों के ही अंदरूनी सूत्र कहते हैं कि अब भूपेश सरकार से कुछ ज्यादा उम्मीद करना सही नहीं होगा। सरकार का रवैया शिक्षकों के प्रति शुरू से ठीक नहीं रहा है । शिक्षक संघ के नेता शिक्षकों की समस्याएं उठाने के बजाय सरकार की चिरौरी करते नजर आए। कई शिक्षक नेता तो पदस्थापना में संशोधन में लाखों करोड़ों रूपयो के वारे न्यारे कर चुके हैं ।
मालूम हूं की सरकार का पूरा ध्यान इन पांच सालों में स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूलों पर रहा है हिंदी मीडियम की सरकारी स्कूलों में मरम्मत निर्माण आदि के लिए धन तो दिए गए मगर उपेक्षा भी हुई है। ऐसा लगता है मानो, गांव के गरीब बच्चों का ध्यान रखना सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। वही शिक्षक संघों के नेता बीते सालो में दो फाड़ में बंटे नजर आए। एक धड़ सरकार के साथ खड़ा है और दूसरा खिलाफ में। सरकारी तंत्र ने शिक्षको के संगठनों को कमजोर करने में सफलता पाई है, किंतु इस कड़ी में शिक्षको का हित कहीं खो भी गया है।